दिनेश शर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र में राज्यपाल का अभिभाषण यदि नहीं पढ़ने दिया जाए तो अंदाजा लगाइए कि विधानसभा में ऐसे अवसरों का किस हद तक पतन हो चुका है और विधानसभा सत्र से पहले सर्व दलीय बैठक बुलाने का क्या मतलब रह जाता है। राज्यपाल के अभिभाषण के ऐतिहासिक अवसर और कार्यवाही देखने के लिए बुद्धिजीवी, विद्यार्थी, जन समस्याओं जैसे विभिन्न विषयों पर शोध करने वाले, विशिष्ट महानुभाव दर्शक दीर्घाओं में आते हैं, मगर उन्हें अब वह वातावरण देखने को नहीं मिलता जो महर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन जैसी अनेक राजनीतिक महान विभूतियों के समय स्थापित हुआ था। सोमवार को विधानसभा सत्र में राज्यपाल बीएल जोशी पूर्व की तरह अपना अभिभाषण ही नहीं पढ़ सके। मुख्य विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी ने राज्यपाल के विधानसभा मंडप के आसन पर पहुंचते ही, जो हंगामा बरपाया उससे विधानसभा की सारी व्यवस्थाएं तार-तार हो गईं। बैनर-कागज के गोले और मेजों पर चढ़कर विरोध करने के रूप में जो भी हुआ, वह विपक्ष का एक बड़ा ही गैर जिम्मेदाराना व्यवहार माना गया है।
दरअसल बसपा को यह पता था, कि राज्यपाल बीएल जोशी के अभिभाषण में पूर्ववर्ती सरकार की कार्यप्रणाली पर तीखी प्रतिक्रियाओं के साथ उसे भ्रष्टतम जंगल राज कहा गया है, जिसमें जनता को पांच साल में पत्थरों, मूर्तियों एवं स्मारकों के अलावा कुछ भी नहीं मिला है। राजनीति के अधोपतन के चलते राज्य को शर्मसार कर देने वाली घटनाएं हुई हैं, निर्दोष लोगों का उत्पीड़न और भ्रष्टाचार चरम पर रहा है। बसपा ने इस अभिभाषण से क्रुद्ध होकर इससे निपटने के तरीके को भी एक तरह से अमर्यादित बना दिया है, यही कारण है कि बाकी विपक्ष ने अभिभाषण पर आपत्ति तो की मगर इस तरह हंगामें में बसपा का साथ नहीं दिया और उसकी आलोचना की। ध्यान रहे कि विधानसभा में बसपा मुख्य विपक्ष दल है और स्वामी प्रसाद मौर्य नेता विरोधी दल हैं। बसपा ने पहले अभिभाषण का बहिष्कार किया फिर दूसरी बार दिन भर के लिए सदन का त्याग किया। सत्र के पहले दिन की कार्यवाही में बसपा ने जो किया, वह प्रदेश एवं देश की जनता ने भी टीवी चैनलों पर भी देख लिया है।
विधानसभा मंडप की खूबसूरती और उसकी वास्तुकला को देखिए, उसके भीतर की छटा को निहारिए, माननीयों के मंडप में बैठने के शानदार और सुसज्जित प्रबंध को देखिए और देखिए उस आसन को जो माननीय विधानसभा अध्यक्ष के लिए है, यह एक सर्वज्ञपीठ कही जाती है, यह एक सर्वालौकिक वातावरण है, जिससे विधि विधान और मर्यादाओं का एक सर्वोत्तम संदेश निकलता है, मगर सुनिए और देखिए उनमें से कुछ महानुभावों का व्यवहार, जो राज्य की जनता ने वहां अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजे हैं, उनमें से अनेक किस प्रकार अपने व्यवहार से उस क्षेत्र की जनता का पूरे मंडप में उपहास उड़वाते हैं। क्या यह मंडप इस विचार के साथ स्थापित किया गया है कि यहां आकर कुछ ‘माननीय’ इसकी मर्यादा और उसके गौरवशाली इतिहास को तार-तार करेंगे? जनहित के विषयों को उठाने या अपनी बात मनवाने के लिए या विरोध प्रकट करने के लिए अमर्यादित व्यवहार करेंगे? उनकी प्राथमिकता उनकी बात स्पष्टरूप से विधानसभा की कार्यवाही में दर्ज होने की होनी चाहिए।
बसपा ने विधानसभा से बहिष्कार और हंगामें का कारण यूं तो यह बताया है कि राज्यपाल के अभिभाषण में किसानों की आत्महत्या और भूख से मौतों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल नहीं किया गया है, मगर वास्तविकता यह है कि अभिभाषण में तत्कालीन बसपा सरकार को पांच साल में भ्रष्टाचार और जंगलराज का गवाह बताए जाने से बसपा बौखलाई हुई थी और इस अभिभाषण को वह समाजवादी पार्टी का अपने ऊपर राजनीतिक हमला मान रही है। राज्यपाल ने जैसे ही विधानसभा में प्रवेश किया, बसपा विधायक हाथों में सरकार विरोधी बैनर और नारे लिखी टोपियां पहनकर जबरदस्त शोर-शराबे के साथ अपनी मेजों पर चढ़ गए। उनके बैनरों पर लिखा था कि लूट डकैती हत्या की सरकार को बर्खास्त करो। एक बैनर में लिखा था उत्तर प्रदेश में स्थानांतरण एक उद्योग बन गया है। विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने विनम्रता से बसपा सदस्यों को काफी समझाने और अभिभाषण पूरा होने देने का आग्रह किया, लेकिन बसपा ने जैसे पहले से तय किया हुआ था कि अभिभाषण पर उसे क्या करना है।
विधानसभा के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि राज्यपाल के भाषण से या सत्ता पक्ष की किसी कार्रवाई से विपक्ष असहज है, तो उसे उतनी ही शक्तिशाली एवं सैंयत भाषा से विरोध प्रकट करने की योग्यता भी प्रकट करनी चाहिए। विधानसभा में चुनकर आए नए सदस्यों को इसीलिए विधानसभा की कार्यशालाएं आयोजित करके उन्हें बताया और समझाया जाता है कि उनका कार्य कितना संवेदशील और लोकहित के महत्व का है और उनको अपनी बात कहते समय किस प्रकार से सदन में आचरण करना चाहिए। ऐसा अनुकरणीय उदाहरण कुछ ही माननीय प्रस्तुत कर पाते हैं, मगर अधिकांश इसमें विफल ही देखे गए हैं। अभिभाषण और आसन की उपेक्षा एवं विधानसभा सत्रों में हंगामा तो एक परंपरा का रूप लेती जा रही है। पिछली विधानसभा में लोकतंत्र और विधानसभा में महत्वपूर्ण मामलों पर बहस की उपेक्षा का एक ही उदाहरण काफी है, जब देखा गया कि उत्तर प्रदेश राज्य के विभाजन का प्रस्ताव बिना बहस के पांच मिनट में ही पारित हो गया एवं और भी कई विधेयकों पर सामान्य चर्चा तक नहीं हुई। उस समय भी विपक्ष था, लेकिन उसने रोष प्रकट करने के लिए ऐसा अराजक सा आचरण नहीं किया, हां, बहुत समय पहले विधानसभा मंडप में एक बार हिंसा अवश्य हुई थी जिसके बाद फिर सुधार हुआ और अब फिर ऐसा ही वातावरण विकसित हो रहा है।
विधानसभा में बैठते आए सदस्यों का अभिमत है कि संवैधानिक एवं विशिष्ट पदों पर बैठने वाले महानुभावों से हमेशा यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अच्छे व्यवहार से दूसरों को प्रेरित और प्रभावित करें एवं विरोध के मर्यादित तरीकों को प्रोत्साहित करें। अभिभाषण तो विधानसभा की कार्यवाही का हिस्सा बन चुका है और वह सत्ता पक्ष के पास पर्याप्त बहुमत से पारित भी हो जाएगा, लेकिन इसके विरोध में बोले जाने वाले बसपा के भी तर्कपूर्ण तथ्य एवं शब्द भाषण के रूप में मौजूद होते तो वे भी अभिभाषण के साथ साए की तरह रहते, मगर मुख्य विपक्ष ने इस अवसर को यूं ही गवा दिया। विधानसभा मंडप में आरोपों का प्रतिवाद करने का हथियार तो तथ्यों, शब्दों एवं तर्कों में मौजूद है, कागज़ के गोले बनाकर फेंकने या मेजों पर चढ़कर चिल्लाने, आसन को निशाना बनाने जैसे अशिष्ट व्यवहार में मौजूद नहीं होता। बसपा इसे ही विरोध का आदर्श तरीका स्थापित करना चाहती है, यदि विपक्ष की शक्तिशाली और संयत भूमिका में रहकर यह विरोध किया जाता तो कैसा होता? पूर्ववर्ती बसपा सरकार में विधानसभा का इतिहास उठाकर देखें तो उसमें लोकतंत्र तो कहीं नज़र ही नहीं आया। सत्ता पक्ष के सदस्य बसपा की तरह उत्तेजित नहीं हुए और शांत बने रहे, इसकी उन्हें दाद देनी होगी, क्योंकि देखा गया कि बसपा ने बार-बार अपने व्यवहार से सदन में सत्ता पक्ष के सदस्यों को उत्तेजित किया।
बहरहाल राज्यपाल बीएल जोशी ने अपने अभिभाषण में राज्य सरकार की भावी योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य की बारहवीं पंचवर्षीय योजना में विकास दर दस प्रतिशत करने और क्षेत्रीय विषमताओं को कम कर प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश, अन्य प्रदेशों की तुलना में विकास की दौड़ में काफी पीछे छूट गया है, जबकि राज्य की जनता पानी, बिजली जैसी अवस्थापना सुविधाओं के लिए सरकार की ओर देख रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने शपथ ग्रहण के बाद ही चुनावी घोषणा पत्र पर अमल शुरू कर दिया है। अभिभाषण में सरकार की योजनाओं का खुलासा भी किया गया है किंतु खेद है कि राज्यपाल अपने अभिभाषण की पहली और आखिरी लाइन ही पढ़ पाए, जिससे सदस्य अभिभाषण को महामहिम राज्यपाल के मुख से पूरा होने से फिर वंचित रह गए।