स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Sunday 8 September 2013 09:31:39 AM
नई दिल्ली। जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद सेंट पीटर्सबर्ग से स्वदेश लौटते हुए विमान में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक मीडिया वक्तव्य में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में ग्रुप-20 सम्मेलन के निष्कर्ष अत्यंत विचारणीय हैं और जी-20 देशों की यह बैठक अत्यंत सफल रही है। नेताओं की घोषणा और सेंट पीटर्सबर्ग कार्य योजना बैठक में व्यक्त किए गए भारत के विचारों के अनुरूप रही है। तत्संबंधी दस्तावेज मीडिया ने भी देखे हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स नेताओं के साथ उनकी बैठक भी अत्यंत उपयोगी रही। नेताओं ने 100 अरब डॉलर के करंसी रिज़र्व समझौते की पुष्टि की। ब्रिक्स बैंक की स्थापना की दिशा में भी प्रगति हुई है, ब्रिक्स की अगली बैठक में इस बारे में ठोस प्रस्ताव पेश किया जाएगा। जी-20 सम्मेलन के अवसर पर उन्हें जापान के प्रधानमंत्री और वहां के उप प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री के साथ संक्षिप्त विचार विमर्श का मौका भी मिला और दोनों देशों के बीच स्वैप समझौते की सीमा 15 अरब डॉलर से बढ़ा कर 50 अरब डॉलर करने के बारे में सहमति हुई। यह समझौता हमारी मुद्रा के लिए द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में काम करेगा। जी-20 सम्मेलन से भारत को क्या लाभ हुआ है? के उत्तर में उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जी-20 सम्मेलन अच्छी पद्धतियों के बारे में एक निबंध की तरह है, जिसका हमें अनुशीलन करना है, नेताओं की घोषणा और कार्य योजना में हमारे इन विचारों को शामिल किया गया है कि विश्व की अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में नहीं है और उन सभी देशों को विकास प्रक्रिया बहाल करने के लिए एकजुट होकर प्रयास अवश्य करने होंगे, जिनकी अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक मामलों के कारण प्रभावित हुई हैं।
उन्होंने कहा कि लोस काबोस में हमने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि बुनियादी ढांचा विकास एक ऐसा विषय है, जो आर्थिक वृद्धि और विकास प्रक्रिया में तेजी लाने में योगदान कर सकता है। सम्मेलन की कार्य योजना और विश्व बैंक के अध्यक्ष के विचारों में भारत के दृष्टिकोण की पुष्टि हुई है और यही वजह है कि विश्व बुनियादी ढांचा वित्तीय सुविधा की दिशा में सोचा जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो इससे हमें बड़ी मदद मिलेगी।
आपके विचार में ब्रिक्स देशों की विश्व अर्थव्यवस्था में क्या भूमिका हो सकती है और भारत का इसमें क्या योगदान है? प्रश्न पर उन्होंने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स एक महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और भारत मिल कर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद और व्यापार के महत्वपूर्ण हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं, इसलिए इन देशों के भीतर अथवा इन देशों की विकास प्रक्रिया में जो कुछ होता है, उसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है, ब्रिक्स देश 100 अरब डॉलर के करंसी रिज़र्व समझौते पर सहमत हो गए हैं, ब्रिक्स बैंक स्थापित करने का भी प्रस्ताव है, जिसकी पूंजी 50 अरब डॉलर होगी। इस बारे में ठोस प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है जिसे ब्रिक्स के अगले सम्मेलन में पेश किया जाएगा।
जापान स्वैप की सीमा बढ़ा कर 50 अरब डॉलर करने और सौ अरब डॉलर के ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व फंड की बदौलत इन दोनों घटकों का भारतीय करंसी बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा तथा चालू खाता घाटा कम करने के लिए घरेलू स्तर पर क्या किया जाना चाहिए? सवाल पर प्रधानमंत्री ने कहा कि जापान के साथ हुआ हमारा समझौता मार्जिन की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है, जिससे हमें मदद मिलेगी, लेकिन अंततः हमें अपनी अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्वों को मजबूत बनाना होगा, पिछले सप्ताह संसद में महत्वपूर्ण आर्थिक कानून पारित किया है, इससे हमारी अर्थव्यवस्था में विश्वास बहाल होगा और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि राजकोषीय घाटा 4.8 प्रतिशत से अधिक न हो, चालू खाता घाटा कम करने के लिए भी जो कुछ किया जा सकता है हम करेंगे।
मुद्राओं के दुष्प्रभाव को देखते हुए इस समस्या से कैसे निपटा जाएगा? अंतिम घोषणा के खंड 14 में लगता है यह सुझाव दिया गया है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सभी देशों के सेंट्रल बैंक मूल्य स्थिरता सहित घरेलू मानदंडों से निर्देशित रहेंगे और संबद्ध रोल बैक टैपरिंग्स से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि अमरीका और यूरो जोन जैसे देशों की अपरंपरागत मौद्रिक नीतियों के गैर इरादतन प्रभावों के बारे में भारत ने जो सुझाव दिया है, उसकी व्यापक सराहना हुई है, लेकिन मैं तत्काल ठोस कार्रवाई की उम्मीद नहीं करता, क्योंकि सेंट्रल बैंक घरेलू कानूनों के अनुसार बने हैं, कुछ को आजादी है, कुछ को सीमित अधिकार सौंपे गए हैं, लेकिन कुल मिला कर यह आम धारणा थी कि वैश्विक आर्थिक नीतियों, बृहत् आर्थिक नीतियों पर विचार करते समय, उदाहरण के लिए आपसी विकास प्रक्रिया में, राष्ट्रों को यह विचार विमर्श करना चाहिए कि मौद्रिक नीतियों को किस तरह आकार दिया जाता है, चिंताएं क्या हैं और कैसे उन्हें उदार बनाया जाए ताकि वे अन्य देशों को प्रभावित न करें।
आगामी अमरीका, आसियान, रूस और चीन की यात्राओं से भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजारों को क्या फायदा होने की उम्मीद है? प्रधानमंत्री ने कहा कि ये सभी देश महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार हैं और इसलिए इन बैठकों में ऐसे प्रयास किए जाएंगे, जिनसे सहयोग की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अनुकूल माहौल बने, पूरी उम्मीद है कि जिन देशों की यात्राएं की जानी हैं उनके साथ व्यापार और निवेश जैसे मामलों में सहयोग का बेहतर वातावरण बनेगा। आज से ठीक तीन सप्ताह बाद आप संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए न्यूयार्क में होंगे, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ बैठक की संभावनाओं को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं, भारत में यह विचार व्यक्त किया जा रहा है कि आपको नवाज शरीफ के साथ बैठक से बचना चाहिए इस सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं हमेशा कहता रहा हूं कि हम मित्रों का चयन कर सकते हैं, लेकिन पड़ोसियों के बारे में हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, इसलिए सामान्य हालात में मुझे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने में खुशी होती, जिनका मैं सम्मान करता हूं, उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों के विकास के बारे में अच्छी बातें तो कहीं हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ जटिल वास्तविकताएं हैं, यदि आतंक की कार्रवाइयां नहीं रुकतीं, आतंक की बात करने वाले खुले घूमते रहें, मु़बई हमलों के अपराधियों को कानून के तले लाने की दिशा में कोई प्रगति न हो, तो मुझे उनसे मिलने के बारे में निर्णय लेने से पहले बहुत कुछ सोचना होगा।
अफगानिस्तान में एक महिला लेखिका की हत्या पर उन्होंने कहा कि इस हमले की खबर सुन कर और सुष्मिता बैनर्जी की मृत्यु पर उन्हें बहुत दुख पहुंचा है, वे लंबे अरसे से अफगानिस्तान में रह रही थीं और महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य कर रही थीं, ऐसी नेक महिला के तालिबान की हिंसा का शिकार होने पर मुझे गहरा आघात पहुंचा है, यह सही है कि तालिबान के संकट से अफगानिस्तान को अभी निजात नहीं मिली है, अफगानिस्तान के लोगों और वहां की सरकार को अंततः यह निश्चय करना ही होगा कि क्या वे तालिबान की विचार धारा, विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्वीकार करेंगे या जीवन के प्रति अपना सही नजरिया तय करेंगे।
संसदीय चुनाव में क्या आप ममता बनर्जी के साथ गठजोड़ करने जा रहे हैं? के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई स्थायी मित्र और स्थायी शत्रु नहीं होता और कई तरह से राजनीति में एक सप्ताह भी कभी कभी सामान्य से लंबी अवधि लगता है, इसलिए मैं गठबंधनों की संभावनाओं से इंकार नहीं करता। एक समय ममता बनर्जी कांग्रेस पार्टी की अत्यंत सम्मानित सदस्य थीं। तृणमूल की नेता के नाते भी हम उन्हें सरकार में रख कर बड़े खुश थे, हम समान विचारधारा और धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों को फिर से मिल कर काम करना चाहिए और देश की राजनीति में धार्मिक तत्वों को बढ़ावा देने की नीति पर बल देना चाहिए।
क्या आपको तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बनना संभव लगता है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी में अनेक लोग राहुल गांधी का नेतृत्व पसंद करते हैं और एक सवाल यह भी कि आप स्वयं आगे बढ़ कर यह क्यों नहीं कहते कि मैं हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हूं, जैसा कि आपने टू-जी मुद्दे पर किया था पर प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने अपने आचरण के बारे में किसी को सवाल करने से नहीं रोका है, जहां तक आपके पहले प्रश्न का सवाल है, मैंने हमेशा कहा है कि 2014 के चुनाव के बाद राहुल जी प्रधानमंत्री पद के आदर्श उम्मीदवार हैं, मुझे राहुल गांधी के नेतृत्व के अंतर्गत कांग्रेस पार्टी के लिए काम करने में खुशी होगी। तेलंगाना मुद्दे के साथ विदर्भ को अलग राज्य बनाने या महाराष्ट्र की डिवीजन बनाने के प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।