दिनेश शर्मा
Saturday 14 September 2013 09:44:01 AM
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने अपने लोकप्रिय नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को आखिर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर अपनी ओर से महासमर का ऐलान कर ही दिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और अन्य एक-दो नेता भी नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा के विरोध में थे, इसके बावजूद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने समय की नब्ज़ पकड़ते हुए भाजपा मुख्यालय पर पूर्व निर्धारित शुक्रवार की शाम को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राज्यसभा में भाजपा के नेता अरुण जेटली सहित अन्य सभी बड़े नेताओं की मौजूदगी में हिंदुत्व के कट्टर पक्षधर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। कांग्रेस, सपा और बसपा सहित अनेक राजनीतिक दलों में इस घोषणा से काफी हलचल है।
भाजपा नेतृत्व चाहता था कि नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा भी भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ही करें, लेकिन वे तो संसदीय बोर्ड की बैठक में भी नहीं आए और उन्होंने उल्टे भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को उनके काम-काज के तरीके पर एक चिट्ठी लिखकर मीडिया को जारी कर दी, जिसे मीडिया के लोग चौबीस घंटे से नमक-मिर्च के साथ अपने चैनलों पर अपने-अपने विश्लेषणों के साथ चला रहे हैं। अब जो भी हो, सोशल मीडिया पर टिप्पणियों पर गौर करें कि भाजपा के नेताओं को यह गहराई से समझ लेना चाहिए कि लोकसभा में वह अपने दम पर बहुमत के लिए आगे बढ़ चुकी है, जिसमें यह बड़ी शर्त जुड़ी है कि यदि 'भाजपा' चुनाव लड़ी, तो उसने आज ही आगामी लोकसभा में अपने बहुमत का आकड़ा पार कर लिया है और यदि 'भाजपा नेताओं के प्रत्याशी' चुनाव लड़े तो वह आगे भी बैसाखियों के सहारे ही खड़े रहने से ज्यादा उम्मीद न करे।
पहले बात उस घटनाक्रम की, जो कल शाम भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में लालकृष्ण आडवाणी के नहीं आने से शुरू हुआ। बैठक में अस्वस्थता के चलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं आए, इस विवशता को सभी स्वीकार करते हैं, किंतु लालकृष्ण आडवाणी किस दुविधा में नहीं आए? जबकि संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य वहां मौजूद थे, यह स्थिति भाजपा के लिए बेहद गंभीर बनीं और उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के नहीं आने के बावजूद नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के फैसले पर मोहर लगा दी। इसकी घोषणा भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस फैसले के तुरंत बाद बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में की। इसके तुरंत बाद नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी से मिलने उनके घर भी पहुंचे। इसी समय लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी नाराजगी की चिट्ठी लिख कर एक विवाद को जन्म दे दिया है। उन्होंने इस चिट्ठी में यह सावधानी जरूर बरती है कि उसमें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने पर नाराजगी नहीं दिखा कर, बल्कि राजनाथ सिंह के काम-काज के तरीके पर दुख के साथ आपत्ति उठाई है।
लालकृष्ण आडवाणी भलि-भांति जानते हैं कि देश में इस समय नरेंद्र मोदी के नाम की लहर चल रही है, यूपीए डांवाडोल है और भाजपा के लिए इस बार वास्तव में अनुकूल माहौल है, लेकिन यह माहौल इनके नेतृत्व के लिए नहीं है, बल्कि नरेंद्र मोदी के लिए है, जबकि वे उकसावे की राजनीति की चपेट में हैं और इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं। वे यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इस समय भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से भाजपा के कई फायदे हैं, जिनमें एक तो यही है कि इसके बाद एनडीए के सहयोगियों को उसमें बने रहने का फैसला करने, सीटों के बंटवारे का पूरा समय और अवसर मिला है और यही अवसर उनके लिए भी है, जो बदली हुई स्थितियों में भाजपा में रहना जाना या आना चाहते हैं। ऐसी भी खबरें आई हैं कि दूसरे राजनीतिक दलों के नेता भाजपा में आना चाहते हैं और वह इसी घोषणा के प्रतीक्षा में चुपचाप थे।
लोकसभा चुनाव की राजनीति का असली खेल अब शुरू हो चुका है। यह चुनाव देशभर का है, किंतु इसमें सबसे मुश्किल भरा समय उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी का आया है, जिसके सामने अब मुसलमान वोटों को अपने से जोड़े रखने की बड़ी चुनौती आ गई है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों के कारण मुसलमान उससे सार्वजनिक रूप से नाराजगी प्रकट कर चुका है, भाजपा में नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी घोषित हो जाने के बाद राष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए मुसलमान कांग्रेस के साथ ही जाना पसंद करेंगे। कुछ राज्यों में जल्दी ही चुनाव होने जा रहे हैं, जिससे मुसलमानों की पसंद और मजबूरी की तस्वीर और भी साफ हो जाएगी। देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी का फैसला करने में उत्तर प्रदेश की बड़ी भूमिका रहती आई है, इस बार तो और भी ज्यादा है।
इस राज्य में एक और राजनीतिक शक्ति है, जिसे बहुजन समाज पार्टी और उसकी अध्यक्ष मायावती माना जाता है, वह इस समय समाजवादी पार्टी से विधान सभा चुनाव में पराजित होकर सत्ता से बाहर है। इन दोनों राजनीतिक दलों को उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक घमासान का सामना करना होगा, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र भाई मोदी ने यदि लखनऊ संसदीय क्षेत्र से भी चुनाव लड़ा तो सपा और बसपा के लिए उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव का सामना कोई आसान नहीं होगा। जहां तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रश्न है, तो वह बेहाल है और उसके साथ मुसलमानों के खड़े होते ही मुकाबला बंट जाना है, जिसका लाभ भाजपा के पक्ष में जाता दिखाई देगा। समाजवादी पार्टी भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को अपनी तरफ करने के लिए हर वो रणनीति अपनाएगी, जिससे वे कांग्रेस की ओर न जाएं, चाहे उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक दंगो का इतिहास ही क्यों न बन जाए।
उत्तर प्रदेश में इस समय जो वातावरण है, वह स्वत: ही भाजपा के पक्ष में जा रहा है, जिसका पूरा लाभ नरेंद्र मोदी को मिलना तय है। दूसरी ओर भाजपा क्या पूरा देश मानता है कि लालकृष्ण आडवाणी के भाजपा में बड़े योगदान और उनकी भाजपा में आज भी बड़ी उपयोगिता के बावजूद उनकी लोकप्रियता का प्रभामंडल उनसे दूर होता दिख रहा है, जिसके कारण स्पष्ट हैं, जो उनको नहीं दिख रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी उन कारणों की अनदेखी कर उस सम्मान की उपेक्षा कर गए हैं, जो उन्हें कल शाम नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवाद घोषित करने पर प्राप्त होता। बहरहाल प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने संवाददाताओं से कहा कि भाजपा को मैं विश्वास दिलाता हूं कि 2013-14 के लोकसभा चुनाव में पार्टी विजयी हो, उसके लिए मैं कोई परिश्रम और कोई कमी उठा नहीं रखूंगा। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया है कि वह सामान्य मानवीय आकांक्षाओं पर भी खरे उतरेंगे।
नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ खुश है, जबकि दूसरे राजनीतिक दलों में भारी हलचल है और वहां से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। बिहार में लंबे समय तक भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार चलाने वाले जनता दल यू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भाजपा के इस फैसले को विनाशकाले विपरीत बुद्धि कहा है, तो नरेंद्र मोदी के सियासी किरदार पर तीखे सवाल उठाते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि देश मोदी को कभी कबूल नहीं करेगा। दिग्विजय सिंह ने इंदौर में कर्मचारी भविष्य निधि कर्मचारी संघ के कार्यक्रम में कहा कि जिस व्यक्ति ने निजी महत्वाकांक्षा के कारण अपने ही गठबंधन को तोड़ दिया और अपनी ही पार्टी में विवाद खड़ा कर दिया, वह शख्स न तो कभी देश को एक रख पायेगा, न ही देश उसे स्वीकार करेगा। कांग्रेस महासचिव कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के लिये कोई मुद्दा नहीं है, जबकि भाजपा के इस फैसले की सबसे ज्यादा हड़बड़ाहट कांग्रेस में है।
देश की राजनीति में मात्र 12 बरस में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के कट्टर हिंदुवादी चेहरे के तौर पर उभरे नरेंद्र मोदी को उनके आलोचक भले ही विभाजनकारी मानते हों, लेकिन 2002 के गोधरा दंगों की बदनामी झेल रहे नरेंद्र मोदी को भाजपा ने लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर उन्हें सीधे राष्ट्रीय भूमिका में ला खड़ा किया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मामूली स्वयं सेवक बनकर प्रचारक हुए नरेंद्र मोदी इस 17 सितंबर को 63 बरस के होने जा रहे हैं। भाजपा के भीतर विरोध और अन्य तमाम दुश्वारियों और दुष्प्रचार के बावजूद वह 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने में कामयाब तो हो गए हैं। अब देखना है कि वे राष्ट्रीय परिदृश्य पर नई जिम्मेदारी को कैसे निभाते हैं। यह नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का ही कमाल है कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह देश भी उन्हें नई जिम्मेदारी देने को आगे आ रहा है और नरेंद्र मोदी को भी यह हमेशा याद रखना होगा कि भारत दुनिया का विशाल लोकतांत्रिक और धर्मनिर्पेक्ष देश है, जो इसकी प्रचंड ताकत है, जिसका दुनिया लोहा मानती है और इसी स्वरूप में मानती रहेगी।