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Wednesday 18 September 2013 08:28:58 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच ने हुमायूं के मकबरे का जीर्णोद्धार पूरा होने पर कहा है कि हमारी विरासत विशेषकर स्मारक लोगों के लिए बोझ नहीं हैं, अभिनव उपायों के माध्यम से यह आस-पास रह रहे लोगों के लिए आजीविका के रूप हैं। उन्होंने कहा कि हम विरासत के जीर्णोद्धार में स्थानीय समुदाय के भागीदार बनने का जश्न मना रहे हैं, यह स्मारकों और पुरातत्वों की ओर हमारे सामान्य दृष्टिकोण में आ रहे बदलाव पर आधारित है। आगाखान ट्रस्ट के प्रयासों से 'स्थापना जैसी रक्षा' दृष्टिकोण से जीर्णोद्धार एवं पुन:स्थापन में नाटकीय परिवर्तन आया है। वैश्विक विरासत हुमायूं के मकबरे का जीर्णोद्धार कार्य समाप्त हो गया है, जो पिछले सात सालों से चल रहा था।
चंद्रेश कुमारी कटोच ने कहा कि यह कार्यक्रम यह स्वीकार करने का है कि आने वाले दिनों में निजी-जन भागीदारी अधिक से अधिक शोहरत अर्जित करेगी। सरकार कई जिम्मेदारियों और सीमित संसाधनों के बीच संघर्ष कर रही है, निजी क्षेत्र के भागीदारी से सरकार का भार कम होगा। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हम भारत में वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत पाकर भाग्यशाली हैं, इस कारण ही हम पर ढेरों जिम्मेदारियां हैं। यह हमारे पूर्वजों की संपदा नहीं है, जिसको हम व्यर्थ ही गंवा दें, यह हमारे बच्चों और आगामी पीढ़ी की विरासत है और यह हमारा कर्तव्य है कि हम सुनिश्चित करें, जो हमारे पास जीवनभर है, हम उसको नष्ट न करें।
संस्कृति मंत्री ने कहा कि मुझे दुख होता है, जब मै देखती हूं कि विकास के नाम पर बेशकीमती स्मारकों का विनाश अथवा चित्र बनाकर उनका विरुप किया जा रहा है। लोगों व विरासत के बीच भावनात्मक संबंध स्थापित करना ही समय की मांग है, केवल समुदाय से इनकी रक्षा व बचाव की जिम्मेदारी लेने पर ही हम सफल हो सकते हैं। इस संबंध में आगाखान ट्रस्ट ने अतुलनीय कार्य किया है। हुमायूं के मकबरे की पुन:स्थापना धीरे तो अवश्य हुई, परंतु स्थिर हुई। समुदाय को प्रसिद्ध संत हजरत निजामुद्दीन के साथ अपने संबंधों के बारे में जागरूक करने के बजाय उन्हें कार्य में शामिल रखा गया।
उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में हुमायूं के मकबरे की आवश्यकता व महत्व को समझना जरूरी है, यह उन पहले स्मारकों में से एक है, जिसमें भवन निर्माण में भारतीय और विदेशी तत्वों को शामिल किया गया, जो बेहद नायाब है। इस भवन का इतिहासकारों ने स्वागत किया और ताजमहल से पूर्ववर्ती बताया। कुछ का विश्वास है कि यहां वह कार्यशाला थी, जहां कारीगरों ने ताज के निर्माण से पूर्व अपने कौशल को निखारने का कार्य किया था, यह इसीलिए है कि सांस्कृतिक क्षेत्र में निजी-जन भागीदारी युग का प्रारंभ हुमायूं के मकबरे की पुन:स्थापना के साथ ही हुआ है, यह स्मारक भारतीय इतिहास की गाथा में मार्गदर्शक होगा व जीर्णोद्धार के क्षेत्र में नयी रणनीति अपनाने का परिणाम होगा।