स्वतंत्र आवाज़
word map

जेलों में सुधार पर विशेष ध्‍यान की जरूरत

एशियन एवं पेसिफिक कांफ्रेंस ऑफ करेक्‍शनर ए‍डमि‍नीस्‍ट्रेटर्स

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 27 September 2013 08:19:15 AM

jail

नई ‌दिल्‍ली। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि आपराधिक न्‍याय प्रणाली, विशेषकर जेल एवं सुधारात्‍मक प्रशासन से समाज की अपेक्षाएं कहीं व्‍यापक विविध और कभी-कभी द्वंदात्‍मक भी हो जाती हैं। उन्‍होंने यहां 33वीं एशियन एवं पेसिफिक कांफ्रेंस ऑफ करेक्‍शनर ए‍डमि‍नीस्‍ट्रेटर्स (एपीसीसीए) का उद्घाटन करते हुए कहा कि विश्‍व के अधिकांश देशों में कारागार लोगों पर दंडात्‍मक उपाय के रूप में व्‍यवहाररत है, जिन्‍हें किसी आपराधिक कृत्‍य का दोषी पाया गया है, तथापि जेल भेजने पर जोर दिये जाने के प्रतिकूल प्रभाव होते हैं। यह न केवल व्‍यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि उनके परिवार भी इनसे प्रभावित होते हैं, जेल जाने का सदमा परिवार के सदस्‍यों के साथ-साथ उनके परिवारों की आर्थिक स्थि‍ति पर भी होता है, अंत: जेल के वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करके इसका कार्यान्‍वयन करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि यह भी महत्‍वपूर्ण है कि बच्‍चों, महिलाओं और कैदियों सहित समर्थ समूह पर उनकी गतिविधियों पर विशेष ध्‍यान दिये जाने की जरूरत है और इन्‍हें जेल सुधार कार्यक्रमों में भी शामिल किया जाना चाहिए।
केंद्रीय गृहमंत्री ने बताया कि देशभर में जेलों में कैदियों की रहने की स्थितियों को और मानवीय बनाने के लिए बेहतर सुविधाओं के निर्माण हेतु केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत धन मुहैया कराया गया है। उन्‍होंने कहा कि वे देश में सुधारात्‍मक सेवा प्रणाली की समस्‍याओं और चुनौतियों से परिचित हैं, जेलों में कैद अधिकांश लोग समाज के अल्‍प विशेषाधिकार प्राप्‍त वर्गों से आते हैं और उनमें से अधिकांश पहली बार दोषी होते हैं, जो तकनीकी अथवा कानून के छोटे उल्‍लंघन के फलस्‍वरूप जेल भेजे जाते हैं और कैदियों की जनसंख्‍या का इनका 90 प्रतिशत हिस्‍सा है। मोटे तौर पर इनमें से दो तिहाई विचाराधीन कैदी होते हैं और यह अनुपात स्थिर रहता है। जेलों में रह रहे कैदियों की अनुपात दर 2005 में 145.4 प्रतिशत से कुछ घटकर वर्ष 2012 में 112.2 प्रतिशत हो गई है। भारत में प्रति लाख इनकी संख्‍या आस्‍ट्रेलिया में 130, यूके में 149 तथा अमरीका में 716 की तुलना में 32 व्‍यक्ति है। सुशील कुमार शिंदे ने इस तथ्‍य पर प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त की कि भारतीय जेलों में दोषियों के सुधार और पुनर्वास को केंद्र बिंदू बनाकर बड़ी संख्‍या में नवोन्‍मेषी पहल शुरू की है, कुछ एक उपायों को सराहा गया है।
उन्‍होंने कहा कि देश में ऐसी जेले हैं, जहां रह रहे लोग आय और अध्‍ययन को प्रोत्‍साहन देने के लिए अर्ध-उन्‍मुक्‍त सुविधाएं पैट्रोल पंपों, दुकानों, कृषि उत्‍पादों तथा जेल में बने सामान की सार्वजनिक स्‍थानों पर प्रदर्शनी के जरिये कारोबार कर रहे हैं। निमित अकादमिक शिक्षा, दूरस्‍थ शिक्षा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्‍थाओं तथा अन्‍य व्यवसायिक सुविधाओं जैसे कंप्‍यूटर साक्षरता की सुविधा अनेक राज्‍यों के कैदियों को उपलब्‍ध करा रहे हैं, जिससे कि वे जेल से छूटने के बाद दक्षता के साथ अपनी आजीविका कमा सकें। जेल से छूटे कैदियों को नवोन्‍मेषी योजनाओं का भी सहारा दिया जा रहा है, ताकि वे अपनी आजीविका कमाने वाली इकाईयां स्‍थापित कर सकें। पेंटिंग, ड्राइंग, शिल्‍पकला, गायन, नृत्‍य तथा नाट्यकला के क्षेत्र में अपराधियों के विशेष कौशल को कायम रखने की दृष्टि से भी इन रोज़गारों के अंतर्गत धन उपलब्‍ध कराया जा रहा है। कुछ राज्‍यों ने जेल से छूटे कैदियों के पुनर्वास के लिए सरकारी नौकरियों में रोज़गार देने के लिए नियमों में परिवर्तन किये हैं, बशर्ते कि वे अपनी सज़ा के दौरान पर्याप्‍त अकादमिक अथवा व्‍यवसायिक कौशल हासिल कर लें, किंतु उन्‍हें नैतिक पतन से अंतर्गत अपराध का दोषी न पाया गया हो।
गृहमंत्री ने राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी का कथन दोहराते हुए कहा कि कोई भी अपराध बीमार मस्तिष्‍क की उपज होता है और जेल का वातावरण उसके उपचार और देखभाल के लिए एक अस्‍पताल के रूप में होना चाहिए उन्‍होंने ये भी कहा कि इस सम्‍मेलन के उद्देश्‍य में भी यही भावना परिलक्षित हो रही है। इससे पूर्व गृह राज्‍य मंत्री मुल्‍ला पल्‍ली रामचंद्रन ने कहा कि विभिन्‍न देशों में वर्तमान सुधारात्‍मक शासन अनेक दशकों एवं शताब्‍दियों में तैयार हुआ है, फिर भी हम उत्‍तरोत्‍तर नई समस्‍याओं और चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। राज्‍य मंत्री ने कहा कि तेजी से बदल रहे सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्‍य में कहीं प्रभावी एवं प्रगतिशील सुधारात्‍मक उपायों की आवश्यकता है। रामचंद्रन ने कहा कि हम सभी के लिए यह अति महत्‍वपूर्ण है कि हम सुनिश्चित करें कि कैदियों को मानवीय सम्‍मान के मूलभूत न्‍यूनतम आवश्‍यकताओं के अधिकार, कानूनी सहायता तक पहुंच, सार्थक एवं लाभप्रद काम के अधिकार तथा नियत तिथि को उनकी रिहाई के अधिकार से उन्‍हें वंचित न करें।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि हम सार्वभौमिक दृष्टिकोण के पक्षधर हैं कि कैद की प्रवृति तभी उचित है, जब यह अपराध के प्रति समाज को बचाने की दिशा में अग्रसर हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किये गये हैं कि जेल से छूटने वाले अपराधी बेहतर नागरिक बनकर बाहर आएं, यह एक सतत प्रक्रिया है और हमें सभी वर्ग के कैदियों को बेहतर संव्‍यवहार देना है और उनके रहने तथा सुधारात्‍मक प्रशासन के लिए तैनात जेलकर्मियों की कार्य की अवस्‍थाओं को बे‍हतर बनाना है। प्रबंधन की नई तकनीक लागू करके हम अपनी जेल प्रणाली में भी सुधार के प्रयास कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि चाहे वह दोषारोपित हो अथवा विचाराधीन बंदी हो, उसके इंसान होने तथा मूलभूत मानवाधिकारों एवं संविधान में प्रदत्‍त मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इन सिद्धांतों के अनुरूप भारत में जेल सुधारों के संबंध में भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी घोषणा पत्र पर भी हस्‍ताक्षर किये हैं।
एपीसीसीए का सम्‍मेलन सुधारात्‍मक उपायों के लिए एक महत्‍वपूर्ण मंच है, जहां सब अन्‍य लोगों के विचार और अनुभव से सीख लेंगे तथा सुधारात्‍मक प्रशासन तथा कल्‍याण के क्षेत्र में नवोन्‍मेषी विचारों को आत्‍मसात करेंगे। तेईस सदस्‍य देशों के प्रतिनिधियों के अलावा इस सम्‍मेलन में सुधारात्‍मक प्रशासन की देखरेख कर रहे राज्‍य, संघ शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं। सदस्‍य देशों में बारी-बारी के आधार पर प्रतिवर्ष यह सम्‍मेलन आयोजित किया जाता है, जिसमें एशिया पेसिफिक क्षेत्र में जेल सुधारों के संबंध में सदस्‍य देशों से विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है। यह सम्‍मेलन सुधार में लगे अधिकारियों को अपने ज्ञान का विस्‍तार करने तथा विभिन्‍न देशों में अपनाई जा रही पद्धतियों के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने का एक अवसर प्रदान करता है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]