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Friday 4 October 2013 09:01:45 AM
लखनऊ। हुकूमत की सियासत ने सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया है और उसके साथ दिलों में भी दूरियां कर दी हैं, रेजिडेंसी इस बात की आज भी गवाह है कि यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब में पले बढ़े लोगों ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला बोला था, मगरसांप्रदायिकता देश को कमज़ोर बना रही है। ये बातें राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन सभागार में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से पोषित, कालीचरण पीजी कालेज, अंतराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान एवं जैन विद्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार “अवध का इतिहास एवं संस्कृति तथा अवध में बुद्धवाद और जैनवाद का विकास” के उद्घाटन सत्र में लखनऊ के सांसद लालजी टंडन ने मुख्य अतिथि के रूप में कहीं।
लालजी टंडन ने कहा कि यह शहर है-नफासत, नजाकत, अदब और तहजीब का। इस शहर की रवायत है-आपसी सौहार्द और गंगा जमुनी संस्कृति। इस तरह अवध की संस्कृति ही देश को सांप्रदायिक सौहार्द से खुशहाल बना सकती है। सेमिनार में मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रोफेसर एसएनआर रिज़वी ने कहा कि प्राचीन काल से ही अवध की अपनी राजनैतिक व सांस्कृतिक पहचान रही है, मुगल बादशाहों की उदारवादी नीतियों ने मिश्रित संस्कृति को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि स्वर्णिम अतीत के आधार पर युवा भविष्य का निर्माण करें, निरंतर विकास ही जीवन का नियम है, जो खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता बरकार रखने की कोशिश करता है, वो खुद को गलत दिशा में पहुंचा देता है, अवध को संवारने में प्रबुद्ध नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, पुराने शहर की चारदिवारियां इसकी तहज़ीब की दासता सुनाती हैं, आज युवा इस सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक हैं और यही इसे भविष्य में सुरक्षित एवं संरक्षित रख सकते हैं।
सेमिनार के विशिष्ट अतिथि और भारतीय इतिहास कांग्रेस के महासचिव प्रोफेसरएसजेडएच जाफरी ने कहा कि अवध की ऐतिहासिक धरोहरें, कलाएं, परंपराएं, रीति-रिवाज़, भाषा-शैली और आपसी भाईचारा अवध की विशिष्ट पहचान है, अवध क्षेत्र से जुड़ा हर व्यक्ति सांस्कृतिक व्यक्तित्व का धनी होता है, संकुचित दृष्टिकोण को त्याग कर ही हम मानवता की बात सोच सकते हैं। टाइम्स आफ इंडिया के राजनैतिक संपादक अरविंद सिंह बिष्ट ने विशिष्ट अतिथि के रुप में अवध के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर प्रकाश डाला। आयोजन सचिव एवं प्राचार्य डॉ देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि इस सेमिनार के माध्यम से बौद्ध एवं जैन दर्शन में निर्दिष्ट सामाजिक समरस्ता पर विचार-विमर्श के साथ-साथ शहर-ए-लखनऊ की अदब एवं तहजीब व अवध क्षेत्र की मिश्रित संस्कृति पर दो दिन में मंथन किया जायेगा। निष्कर्ष स्वरूप निकले सुझावो को केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं संबंधित विभागों को भेजा जायेगा।
सेमिनार में प्रमुख रूप से कालीचरण विद्यालय इंडाऊमेंट ट्रस्ट के प्रबंधक विनोद धौन, वरिष्ठ अधिवक्ता निर्मल सेठ, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एमपी सिंह, मेडिकल कालेज के प्रोफसर आरके टंडन अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह, जैन विद्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ राकेश सिंह, इतिहासकार योगेश प्रवीन ने विचार रखे। प्रमुख से डॉ दिलीप कुमार, डॉ मीना कुमारी, डॉ सुभाष चंद्र पांडेय, डॉ पंकज सिंह, डॉ डीसीडीआर पांडेय, डॉ वीएन मिश्र, डॉ अर्चना मिश्रा, डॉ अल्का द्विवेदी, डॉ राज कुमार सिंह, डॉ मनोज कुमार पांडेय, डॉ संतोष पांडेय, अरून कुमार सिंह, डॉ श्वेता पांडेय, डॉ दीपमाला वर्मा, डॉव लीना सिंह, डॉ प्रतीश वैश्य, डॉ रश्मि मिश्रा, डॉ शांतनु श्रीवास्तव, डॉ शोभा श्रीवास्तव, डॉ वैशाली अग्रवाल, डॉ हरनाम सिंह, डॉ बबिता पांडेय, डॉ रूपेश गुप्ता एवं कार्यालय अधीक्षक सत्य प्रकाश प्रसाद, मनोज कुमार यादव, सुरेश कुमार वर्मा, समस्त कार्यालय स्टॉफ एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शोध छात्र, छात्राएं उपस्थित रहे। सेमिनार का संचालन वाणिज्य विभाग के शिक्षक कमलेश कुमार शुक्ला एवं छात्रा कुमारी अंशू मेहरोत्रा ने किया। आभार ज्ञापन वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ दिलीप कुमार ने किया।