यिशले डी
Monday 7 October 2013 08:32:19 AM
गंगटोक। बच्चों को स्कूल में पोषणयुक्त भोजन प्रदान करने से दो प्रमुख समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलती है-मध्यान्ह भोजन मिलने से बच्चों का पेट तो भरता ही है साथ ही वह अपनी पढ़ाई भी बेहतर ढंग से कर सकते हैं। सिक्किम में मध्यान्ह भोजन योजना प्रबंधन ने यह कर दिखाया है। सिक्किम में प्राइमरी स्तर पर (कक्षा 1-5) बच्चों को 2002 से और कक्षा 6-8 के बच्चों को 2008 से स्कूलों में गर्मागर्म पका हुआ मध्यान्ह भोजन दिया जा रहा है। इससे न केवल बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या कम करने में मदद मिली है, बल्कि स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, खासतौर से लड़कियां बड़ी संख्या में दाखिला ले रही हैं। इससे छात्रों के स्वास्थ्य में सुधार में मदद मिली है और परिवार के लोगों को भूख और कुपोषण की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिला है।
विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार कक्षा 6-8 तक स्कूल में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2008 में जब पका हुआ खाना देना शुरू किया गया, उस वक्त 11,178 लड़कों और 14,285 लड़कियों ने दाखिला लिया था। शैक्षणिक सत्र 2013 में यह संख्या बढ़कर 17,559 लड़के और 18,151 लड़कियों तक पहुंच गईं। प्राइमरी शिक्षा के लिए दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में मामूली गिरावट आई। दाखिला लेने वाले लड़कों की संख्या 2008 में 30,941 और लड़कियों की संख्या 31,524 थीं, लेकिन यह 2013 में गिरकर 23,593 लड़के और 23,785 लड़कियों तक पहुंच गईं। सिक्किम के मानव संसाधन विकास विभाग के निदेशक (मध्यान्ह भोजन) एमपी सुब्बा ने बताया कि यह गिरावट इसलिए आई है, क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना चाहते हैं।
कुल मिलाकर ये आंकड़े काफी अच्छी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, लेकिन सिक्किम का मध्यान्ह भोजन प्रकोष्ठ सिर्फ आंकड़ों के आधार पर इसे सफल नहीं मानता। उसका कहना है कि मध्यान्ह भोजन योजना की सफलता का आकलन यह देखकर लगाया जा सकता है कि बच्चे कितने ह्ष्ट-पुष्ट हुए हैं और उन्हें खाना खाने में कितना मजा आता है।
सिक्किम में मध्यान्ह भोजन की सफलता का क्या राज है? एमपी सुब्बा ने बताया कि बाहरी एजेंसियों के साथ-साथ विभाग के अधिकारी, स्कूल प्रमुख, स्कूल प्रबंधन विकास समितियां, स्कूल प्रबंध समितियां और पंचायतें नियमित जांच करके यह सुनिश्चित करती हैं कि भोजन अच्छी तरह पका है या नहीं और इसे साफ-सुथरे माहौल में बनाया गया है। बच्चों को खाना खिलाने से पहले अध्यापक उसे चख कर देखते ही हैं।
योजना के बारे में एक बाहरी निगरानी एजेंसी ‘हिमालयन एजुकेशनल सोसाइटी’ ने सिक्किम के पश्चिमी और दक्षिणी जिलों के स्कूलों में 2011-12 में सर्वेक्षण कराया था। सोसाइटी ने पाया कि स्कूलों में दिये गये भोजन को 95 प्रतिशत छात्र पसंद करते हैं। यहां तक कि जो अध्यापक अपना लंच लेकर नहीं आते, वह भी इसे मजे से खाते हैं। विभाग को दी गई सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि भोजन को साफ-सुथरे तरीके से पकाया जाता है, हालांकि दूर-दराज के कुछ स्कूलों से शिकायत मिली थी कि उनके यहां खाद्यान्न की आपूर्ति में देरी होती है। सिर्फ इतना ही नहीं मध्यान्ह भोजन प्रकोष्ठ ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए सिक्किम में हर सप्ताह व्यंजनों की सूची में बदलाव किया है। राज्य में सबसे पहले चावल और मसूर की दाल देना शुरू किया गया। नए व्यंजनों में चावल, खिचड़ी, दाल, पत्तेदार सब्जियां, खीर, अचार आदि शामिल है। भोजन बच्चों की पसंद के अनुसार बनाया जाता है। सभी स्कूलों को सख्त हिदायत है कि वे महीने में एक बार बच्चों को अंडा या मांस अवश्य दें।
उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय-सिक्किम के लिए मध्यान्ह भोजन योजना निगरानी संस्थान ने उत्तरी जिले में अपने छमाही (1 अप्रैल, 2012 से 30 सितंबर 2012 तक) सर्वेक्षण में पाया कि 18 सितंबर 2011 को आये भयंकर भूकंप के बाद वूंग प्राइमरी स्कूल और नामोक जूनियर हाई-स्कूल ने छात्रों के साथ सलाह करके व्यंजन सूची को अंतिम रूप दिया।
बच्चों के लिए सूक्ष्म पोषण तत्व, विटामिन ए, कीड़े निकालने की दवा, आयरन और फोलिक एसिड आदि का प्रावधान करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के पोषण प्रकोष्ठ और खाद्य और पोषण विभाग के साथ हर वर्ष सलाह-मशवरा किया जाता है और उनके विशेषज्ञों का इस्तेमाल स्कूलों के साझेदारों को शिक्षित करने के लिए किया जाता है। मध्यान्ह भोजन प्रकोष्ठ के सहायक परियोजना समन्वयक पेमा टी भूटिया का मानना है कि इस योजना से विभिन्न जातियों के बच्चों को एक दूसरे के साथ सामाजिक संबंध सुधारने में मदद मिली है और वे एक साथ बैठकर एक ही तरह का भोजन करते हैं।
इस योजना का एक सकारात्मक पहलू यह है कि सिक्किम में आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर अथवा स्व-सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं-जिनमें अधिकतर अनुसूचित जाति अनुसूचित जन-जाति पिछड़े समुदायों की हैं-वह खाना पकाती हैं और सहायक का काम करती हैं। जून 2013 में प्राइमरी स्कूल के बच्चों का खाना पकाने पर प्रति-दिन प्रति बच्चा दर 3.45 रूपये और उच्च प्राथमिक स्तर पर 4.65 रूपये खर्च आ रहा था, लेकिन जुलाई 2013 में इसे बढ़ाकर उच्च प्राथमिक स्कूल के लिए पांच रूपये और प्राइमरी स्कूल के लिए 3.66 रूपये कर दिया गया है। सरकार हर वर्ष खाना पकाने की लागत में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि करती है। सिक्किम 2011 में देश का पहला राज्य बन गया था, जिसने सबसे पहले पीडीएस लागू किया, जिसमें अनाज भारतीय खाद्य निगम के भंडारगृहों से खरीदा जाता है और उसे जिलों में और उसके बाद स्कूलों में भेजा जाता है। सिक्किम में 879 सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले 85,300 बच्चों को प्रति दिन पका हुआ भोजन दिया जाता है। इनमें मठों से जुड़े 85 स्कूल और 12 संस्कृत पाठशालाएं हैं।
कभी-कभी मॉनसून के दौरान सड़कें बंद होने के कारण खाद्यान्न पहुंचने में थोड़ी देरी देखने को मिली है, ऐसी समस्याओं को कम करने के लिए स्कूल प्रमुखों को सलाह दी गई है कि वे इस अवधि में खाद्यान्न का अतिरिक्त भंडार रखें। मध्यान्ह भोजन योजना उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 2001 में शुरू की गई थी, जिसमें उसने सभी सरकारों को निर्देश दिया था कि वे प्राइमरी स्कूलों के सभी बच्चों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराएं। केंद्र सरकार मुफ्त अनाज (चावल) और खाद्यान्नों, परिवहन लागत, भोजन पकाने में आने वाली लागत और मध्यान्ह भोजन योजना से जुड़े रसोइयों और सहायकों को मानदेय देने के लिए धनराशि प्रदान कर रही है। भोजन पकाने में आने वाली लागत और रसोईयों तथा सहायकों के लिए राज्य सरकार अपना अनिवार्य 10 प्रतिशत अंश देती है।