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Sunday 20 October 2013 10:55:51 AM
नई दिल्ली। रूस और चीन की यात्रा पर रवाना होते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक वक्तव्य में कहा है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन के निमंत्रण पर मास्को में 14वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना और उसके बाद प्रधानमंत्री ली खुछियांग के निमंत्रण पर चीन की यात्रा पर पेइचिंग जाना उनकी बहुत महत्वपूर्ण यात्राएं हैं। मैं इन यात्राओं का इस्तेमाल आपसी भागीदारी को हर संभव तरीके से और मजबूत करने के लिए करूंगा। उन्होंने कहा कि रूस के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2000 से निरंतर किया जा रहा है, यह सम्मेलन हमारी विशेष और गौरवान्वित कार्यनीतिक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है, रूस के साथ हमारे संबंध बेजोड़, व्यापक और सुदृढ़ रहे हैं, रक्षा, परमाणु ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, हाइड्रोकार्बन, व्यापार एवं निवेश जैसे क्षेत्रों में हमारा सहयोग निरंतर बढ़ रहा है, दोनों देशों के बीच नागरिकों के स्तर पर आदान-प्रदान में भी वृद्धि हुई है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं राष्ट्रपति पुतिन को इस बात से अवगत कराऊंगा कि हम रूस के साथ संबंधों को कितना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों के बारे में भारत और रूस के विचारों में समाभिरूपता रही है और अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आपसी हित के मुद्दों पर भारत हमेशा रूस के नजरिए को महत्वपूर्ण मानता है। पश्चिम एशिया में संघर्ष और अशांति, विशेषकर हमारे पड़ोस में अफगानिस्तान में जारी लड़ाई सहित मैं राष्ट्रपति पुतिन के साथ विविध अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर व्यापक चर्चा करने का इच्छुक हूं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में हम रूस के साथ सलाह-मशविरा और समन्वय बढ़ाने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा कि मास्को स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस ने मुझे इस यात्रा के दौरान डाक्टरेट की मानद उपाधि देने का निर्णय किया है, मैं इस सद्भावना से सम्मानित महसूस कर रहा हूं, जो हमारे दोनों देशों के बीच संबंधों का प्रमाण भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरा अगला लक्ष्य पेइचिंग होगा, जिससे मुझे चीन के नए नेताओं के साथ बातचीत जारी रखने का मौका मिलेगा, जिन्होंने इस वर्ष के प्रारंभ में सत्ता की बागढ़ोर संभाली थी। उन्होंने कहा कि चीन की मेरी यात्रा प्रधानमंत्री ली खुछियांग की मई में हुई भारत यात्रा के जवाब में हो रही है, जो प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा थी। उन्होंने कहा कि चीन हमारा सबसे बड़ा पड़ोसी है और हमारे प्रमुख व्यापार भागीदारों में से एक है, प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले 9 वर्ष के कार्यकाल में मैंने चीन के नेताओं के साथ मिल कर काम किया है, ताकि एक कार्यनीतिक और सहयोगात्मक भागीदारी कायम की जा सके और दोनों देशों के बीच सहयोग एवं वार्तालाप तथा द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान के लिए एक व्यापक व्यवस्था कायम की जा सके। सीमा पर शांति एवं स्थिरता कायम रखने के बारे में हमारे बीच एक महत्वपूर्ण सहमति हुई है और भारत-चीन सीमा विवाद के समाधान की दिशा में प्रारंभिक प्रगति भी हुई है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले और सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले राष्ट्रों के नाते भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय, वैश्विक और आर्थिक हितों के बारे में समानुरूपता निरंतर बढ़ रही है, जिसे विकास की हमारी आकांक्षाओं से गति मिली है और उभरते हुए कार्यनीतिक वातावरण से आकार मिला है। भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण, मित्रतापूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों ने दोनों देशों और बृहतर क्षेत्र के लिए स्थिरता का आधार प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि चीन यात्रा के दौरान मैं चीनी वार्ताकारों के साथ बातचीत करूंगा कि समान कार्यनीतिक हितों को एकजुट बनाने के तौर-तरीके क्या हो सकते हैं। पेइचिंग में सेंट्रल पार्टी स्कूल में एक व्याख्यान में चीन के भावी नेताओं के साथ भारत-चीन गतिशीलता के नए युग के बारे में अपने विचार भी व्यक्त करूंगा। पूरा यकीन है कि इस यात्रा से हमारे दो सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदारों के साथ संबंध और सुदृढ़ होंगे और एक स्थिर बाहरी वातावरण में भारत की वृद्धि, खुशहाली और विकास के नए कार्यनीतिक अवसर पैदा होंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे आपसी सहयोग के क्षेत्रों की सूची व्यापक और प्रभावशाली है। व्यापार, निवेश, बुनियादी ढांचा, सीमा पार नदियां, ऊर्जा, कृषि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, युवा मामले और लोगों के स्तर पर संबंध तथा ऐसे ही अन्य विषय इस सूची में शामिल हैं। अपने सहयोग को गतिशीलता प्रदान करने के लिए हम उप-क्षेत्रीय संपर्क जैसे नए रास्तों की निरंतर खोज कर रहे हैं, उम्मीद है कि इस यात्रा के दौरान इनमें से कई क्षेत्रों में संबंधों का और विस्तार होगा। भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक मुद्दे हैं और कुछ चिंताजनक क्षेत्र भी हैं। दोनों सरकारें ईमानदारी और परिपक्वता के साथ उनका समाधान करने के उपाय कर रहीं हैं। इन उपायों में यह ध्यान रखा जा रहा है कि मैत्री और सहयोग के समग्र वातावरण पर असर न पड़े, मैं इनमें से कुछ मुद्दों पर कार्यनीतिक वार्तालाप के हिस्से के रूप में विचार-विमर्श करूंगा और ऐसा करते समय मेरा नज़रिया प्रगतिशील और समस्या-समाधान करने वाला होगा।