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Monday 21 October 2013 08:46:41 AM
नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद संत केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के स्वामी चिन्मयानंद महाराज, जूना अखाड़ा के सचिव स्वामी देवानंद महाराज, महा मंडलेश्वरयतींद्रानंद गिरि, डॉ रामेश्वर दास वैष्णव एवं प्रांतीय मार्गदर्शक मंडलों की दो दिवसीय बैठक में देश भर से आए लगभग 1000 संतों ने सामूहिक रूप से हिंदू समाज पर हो रहे दमन की कठोर शब्दों की निंदा की है। सभी विषयों पर संतों ने निश्चय किया कि भारत के गांव-गांव में सघन जन-जागरण अभियान चलाया जाएगा। इन सभी विषयों पर समाज को जागृत किया जाएगा, जिससे कि हिंदू समाज अपने जीवन मूल्यों की रक्षा कर सके और श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हो तथा भारत आध्यात्मिक राष्ट्र बनकर विश्व के उच्चतम शिखर पर विराजमान हो। इस अवसर पर महा मंडलेश्वर हरिओम शरण, डॉ रामेश्वर दास वैष्णव, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ प्रवीणभाई तोगड़िया एवं ओमप्रकाश सिंहल मौजूद थे। प्रथम सत्र की अध्यक्षता स्वामी विवेकानंद महाराज मेरठ ने की द्वितीय सत्र की अध्यक्षता स्वामी कमलनयन दास अयोध्या ने की। संपूर्ण सत्रों की अध्यक्षता महा मंडलेश्वर विशोकानंद महाराज बीकानेर ने की।
संतों की यह सभा 19 व 20 अक्टूबर को महाशय चुन्नीलाल सरस्वती बाल मंदिर में हुई। बैठक में संकल्प लिया गया कि हिंदू समाज के दमन को अब और अधिक सहन नहीं किया जाएगा। बैठक में चार प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित किए गए। प्रथम प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा संतों की अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा यात्रा तथा राम मंदिर निर्माण संकल्प सभा और कार्यक्रमों के आयोजन पर लगाए गए प्रतिबंध की कड़े शब्दों में भर्त्सना की गई। संतों ने कहा कि 90 के दशक में रामभक्तों को गोली चलवाकर मौत के घाट उतारने वाली समाजवादी सरकार फिर से उसी रास्ते पर चल पड़ी है। बैठक में पारित दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि वर्तमान भारतीय राजनीति को जो सेक्युलरवाद का बुखार चढ़ा हुआ है, उसके कारण राष्ट्र का बहुत नुकसान हुआ है, अधिकांश राजनीति दल एवं राजनेता धर्मनिरपेक्षता का राग अलापने में लगे हैं, जो देश और धर्म के लिए हानिकारक है।
तृतीय प्रस्ताव में चिंता व्यक्त की गई कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषदसोनिया गांधी की जेबी संस्था है, जिसने हिंदू विरोधी वामपंथी मुस्लिम एवं इसाईयों के साथ विचार करके सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011 नामक कानून तैयार किया, जिसकी धाराएं धीरे-धीरे निरापराध हिंदू समाज को कानून की बेड़ियों में जकड़ देंगी। चतुर्थ एवं अंतिम प्रस्ताव में हिंदू जीवन मूल्यों एवं मानबिंदुओं को नष्ट करने वाली सरकारी नीतियों के प्रति चिंता व्यक्त की है। सरकार हिंदु मानबिंदुओं पर लगातार कुठाराघात करने में लगी है। इसे संत समाज सहन नहीं करेगा। सभी विषयों पर संतों ने निश्चय किया कि भारत के गांव-गांव में सघन जन-जागरण अभियान चलाया जाएगा। इन सभी विषयों पर समाज को जागृत किया जाएगा, जिससे कि हिंदू समाज अपने जीवन मूल्यों की रक्षा कर सके और श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हो तथा भारत आध्यात्मिक राष्ट्र बनकर विश्व के उच्चतम शिखर पर विराजमान हो।
आगामी कार्यक्रम देवोत्थानी एकादशी गीता जयंती 13 नवंबर 2013 से 11 दिसंबर 2013 तक संपूर्ण देश में जन-जागरण किया जाएगा, जिसमें संत एक-एक जिले को गोद लेकर सघन जन-जागरण अभियान चलाएंगे, तत्पश्चात् निर्णय हेतु 1-2 फरवरी 2014 को प्रयाग में संगम तट पर मार्गदर्शक मंडल की बैठक में आगामी कार्य योजना निश्चित की जाएगी। बैठक में पारित प्रस्ताव में राम विरोधी सरकार की निंदा की गई है। कहा गया है कि पुराणों के एक काल में ऐसे ही हिरण्य कश्यप ने निरंकुशता का साम्राज्य निर्माण किया और यज्ञ-हवन व राम नाम लेने पर भी प्रतिबंध लगाया था। वर्तमान में भी मुस्लिम तुष्टीकरण में जीने वाली केंद्र व राज्य सरकारें इसी प्रकार का घिनौना व्यवहार करते हुए भारत के हिंदू समाज की श्रद्धाओं और परंपराओं को नष्ट करने का कार्य कर रही हैं।
संतों ने कहा कि उत्तर प्रदेश भारत की तीर्थभूमि है, जहां प्रयाग, काशी, मथुरा व अयोध्या जैसे पावन तीर्थ विद्यमान हैं। इसी उत्तर प्रदेश में चलने वाली समाजवादी सरकार ने हिरण्य कश्यप का बाना धारण करते हुए अयोध्या में संतो की 84 कोसी पदयात्रा को प्रतिबंधित कर हिंदू नागरिकों के मौलिक व धार्मिक अधिकारों पर कुठाराघात किया है, 84 कोसी पदयात्रा के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के संत-महात्माओं ने जैसे ही उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया, वैसे ही राज्य सरकार के पुलिसकर्मी उन्हें इस प्रकार से गिरफ्तार कर रहे थे, जैसे ये संत-महात्मा नहीं होकर कोई चोर-डाकू हों, इसलिए जो सरकार संतों को भी अयोध्याधाम की 84 कोसी परिक्रमा न करने दे तो इस प्रकार की सरकार और हिरण्य कश्यप, कंस और जरासंध की सरकारों में कोई भी अंतर नहीं रह जाता है।
विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के संतों ने हरिद्वार की पुण्यभूमि में विचार-विमर्श कर 84 कोसी परिक्रमा और 18 अक्टूबर 2013 को महर्षि वाल्मीकि के पावन जन्मदिन पर संपूर्ण देश में श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण का संकल्प लेने का निश्चय किया था। उसी के अनुसार देश में लगभग एक लाख स्थानों पर संकल्प सभाओं का आयोजन हुआ, परंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने संकल्प सभाओं पर प्रतिबंध लगाकर हिरण्य कश्यप की निरंकुशता और तानाशाही का परिचय दिया है। यह वही समाजवादी पार्टी की सरकार है, जिसके पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां चलवाकर उन्हें मौत के मुंह में भेजा था। यह सरकार रामकाज विरोधी, संत विरोधी, जेहादी मुस्लिमों का तुष्टीकरण करने वाली पापियों की सरकार है। यह सरकार हिंदुओं के मौलिक अधिकारों को कुचलने वाली, संविधान विरोधी सरकार है, इसलिए संत समाज इस सरकार व इसके नेतृत्व की घोर निंदा करता है और रामभक्त, राष्ट्रभक्त जनता का आह्वान करता है कि ऐसी सरकार के विरुद्ध सर्वत्र निंदा का प्रस्ताव पारित करें और हिंदू विरोधी उत्तर प्रदेश की सरकार का डटकर विरोध करें।
प्रस्ताव में कहा गया है कि भारतीय राजनीति में सेक्युलरवाद का बुखार चढ़ा हुआ है। अधिकतम राजनीतिक दल और राजनेता धर्मनिरपेक्षता का गान करते हुए धर्म अर्थात् राष्ट्र की धारणा शक्ति को नकार कर न्याय, नीति, सद्कर्मों को बिसराकर, राष्ट्रीय मानबिंदुओं और मूल्यों से परे हटकर वोट प्राप्ति हेतु सेक्युलरवाद के नाम पर शेष भारत का भी इस्लामीकरण करने में लगे हैं। राष्ट्रीय मूल्यों को नकारने के कारण भारत की जनता महंगाई की मार झेल रही है। कोई भी राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक धरोहर को छोड़कर उत्थान का स्वांग करेगा तो वहां सांस्कृति नहीं विकृति का निर्माण होगा। आज भारत में भ्रष्टाचार, दुराचार के साथ कालेधन के रूप में विकारों के विकराल स्वरूप का निर्माण हो गया है। संत समाज लंबे काल से अनुभव कर रहा है कि वर्तमान के सत्ताधीश 'सर्वेभवंतु सुखिन:' के लक्ष्य से भटक गये हैं, इसलिए राष्ट्रीय व मानवीय चारित्र्य का उत्थान न होकर विकारों का ही तांडव हो रहा है। समय की मांग है कि भारत में पुन: राष्ट्रधर्म का उदय हो। भ्रष्टाचार, कदाचार करने वाली सत्ता को उखाड़कर भारतीय आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की स्थापना की जाए और धर्मनिरपेक्षता के नारे लगाने वालों को सत्ता से हटाकर राष्ट्रवादियों को सत्ता सौंपी जाए। संत समाज संपूर्ण राष्ट्रभक्त, रामभक्त भारतीय समाज का आह्वान करता है कि भाषाई, सांप्रदायिक व जातीय भावनाओं से ऊपर उठकर अपने कर्त्तव्य का निर्धारण करें, क्योंकि चुनाव का समय आ रहा है, यही करणीय समय है, इसलिए वर्तमान के भ्रष्टाचारी शासकों को हटाकर राष्ट्रभक्तों को सत्ता पर बिठाएं और भारतीय राष्ट्र में अखंडता व उत्थान के नए युग का आरंभ करें।
संतों का कहना है कि समाज भारत में चल रही सरकारी नीतियों के कारण अत्यंत चिंतित है। भारतीय समाज के महर्षियों ने अपने अंतस्थ में ध्यान और समाधि से प्राणवंत श्रेष्ठताओं को जाना और उन्हीं के आधार पर संस्कारों की परंपरा का आरंभ किया था, जिसके कारण भारत में आर्य संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। इन श्रेष्ठ मूल्यों के कारण भारत में एक श्रेष्ठ शिक्षा परंपरा आरंभ हुई। इस शिक्षा परंपरा के कारण भारत विश्वगुरु के रूप में अधिष्ठिापित हुआ था। विश्व के मानव यहां की जीवन रचना को देखकर अचंभित थे। इस भारत में परस्त्री में माँ का दर्शन करने, पर धन को मिट्टी मानने और प्रत्येक प्राणी आत्मरूप है, यह व्यवहार की कार्यकृति थी, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् सत्ता की नीतियां हिंदुओं के मूल्यों और मानबिंदुओं को भंजित करने वाली बनी हैं। हिंदू समाज के अनेक मानबिंदु हैं, इनमें गो-माता, गंगा माता हमारे मठ-मंदिर व मूर्तियां हैं। इसके साथ ही हमारे पवित्र ग्रंथ व भारत माता और संपूर्ण कन्याएं व स्त्रियां हमारे मानबिंदु हैं। इन सभी मानबिंदुओं के प्रति श्रद्धा-भक्ति, निष्ठा निर्माण के स्थान पर सत्ताधारियों ने इन्हें क्रमश: नष्ट करने की नीतियां बनाई हैं। गोमाताओं को काट-काट कर संपूर्ण हिंदू समाज और संतों को प्रताड़ित करने का पापकर्म चला रखा है। सत्ता के भूखों ने गंगा जैसी मोक्षदायिनी नदी को प्रदूषित ही नहीं किया, बल्कि उसकी अविरलता और निर्मलता पर भी प्रहार किया है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रांतीय सरकारों ने देश की श्रेष्ठ परंपराओं को नकारकर हिंदू समाज के श्रद्धास्पद मंदिरों पर कब्जाकर उसकी संपदा का दुरुपयोग करते हुए विधर्मियों के पोषण की दुष्ट नीति चला रखी है। आज केंद्रीय सरकार सत्तालोलुपों की सरकार है। इस सरकार का आचरण बहुसंख्यक हिंदू समाज को अल्पसंख्यक बनाने का है। यह सरकार हिंदुत्व को नष्ट करके इस देश में मूल्यहीनता के निर्माण में लगी है। वर्तमान सत्ताधीशों की सांप्रदायिक-तुष्टीकरण नीति के कारण श्रीराम जन्मभूमि पर भव्यमंदिर निर्माण का अवसर अभी तक नहीं आ सका है। हिंदूसमाज के मन में वहां भव्य राम मंदिर है, जबकि उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने भी एक स्वर से माना है कि जहां श्रीरामलला विराजित हैं, वही राम जन्मभूमि है, केंद्र सरकार की बारी है कि उसने सर्वोच्च न्यायालय में राम जन्मभूमि के बारे जो शपथ पत्र दिया था, उसका पालन करते हुए सत्तर एकड़ भूमि श्रीराम मंदिर निर्माण हेतु हिंदू समाज को प्रदान करे। संत समाज का सुविचारित मत है कि विदेश परस्ती से ग्रसित होने के कारण भारतीय भाषाओं के स्थान पर विदेशी अंग्रेजी भाषा को बालकों पर थोप कर नई पीढ़ी को भारतीयता से दूर किया जा रहा है। संत समाज भारत की एकता, अखंडता के लिए समान नागरिक संहिता की अनिवार्यता अनुभव करता है और ऋषि कश्यप के कश्मीर में जहां देशद्रोह के साथ अलगाववाद खुलकर चल रहा है, यदि समाप्त करना है तो उसे जन्म देने वाली धारा 370 को समाप्त करना चाहिए। इसी प्रकार जो धर्मांतरण चल रहा है, उसे रोकने हेतु केंद्रीय धर्मांतरण विरूद्ध कानून बनाकर देश धर्म की रक्षा की जाए।
सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक -2011 लाने के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को आड़े हाथों लेते हुए संतों ने कहा है कि सोनिया गांधी ने भारत के हिंदू विरोधी वामपंथी, मुस्लिम एवं ईसाइयों के साथ विचार-विमर्श कर इस विधेयक का निर्माण किया है। इस विधेयक की सभी धाराएं अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमानों का संरक्षण करते हुए हिंदू समाज को एक अपराधी समाज मानकर चलती हैं। इस विधेयक में बहुसंख्यक हिंदूसमाज को 'अन्य' के नाम से संबोधित किया गया है और अल्पसंख्यकों को समूह कहा गया है। विधेयक से यह ध्वनि निकलती है कि हिंदू कोई बाहरी जाति है, जो भारत में जबरन बस गयी है। यह विधेयक अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को हिंदू समाज से अलग कर हिंदुओं को तोड़ने का सोचा-समझा षड़यंत्र है। विधेयक में अन्य अर्थात् हिंदुओं के अपराध को ही अपराध माना गया है। समूह अर्थात् अल्पसंख्यकों के अपराध पर यह कानून लागू नहीं होता है। अभी यह विधेयक भारत सरकार के पास विद्यमान है, इसे कभी भी संसद में रखकर पारित करवाने का प्रयास हो सकता है। यथार्थ में यह विधेयक भारत के संविधान व समाज की चिंता न करते हुए केवल मुस्लिम एवं ईसाइयों के हितों की चिंता करता है, इससे देश में सत्ता की तानशाही आरंभ हो जाएगी, यह भारत की एकता, अखंडता को भंजित कर देगा। संतों ने चिंता जताई है कि इस विधेयक की धाराएं इतनी खतरनाक हैं कि हिंदू समाज अपनी बहन-बेटियों के शील की भी रक्षा नहीं कर सकेगा। विधेयक में जो धाराएं जोड़ी गई हैं, उनमें कहीं पर भी हिंदुओं का संरक्षण नहीं है। संत समाज ने इस विधेयक का रोषपूर्ण शब्दों में विरोध करते हुए सभी राजनीतिक दलों, नेताओं, सांसदों से आग्रह किया है कि वे इस सांप्रदायिक व राष्ट्रविरोधी विधेयक का जोरदार विरोध करें।