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Tuesday 22 October 2013 08:23:55 AM
नई दिल्ली। कहानीकार दुष्यंत अपनी कहानियों में बिल्कुल नए ज़माने की सच्चाइयों का संधान करते हैं और इसके लिए वे किसी भी पारंपरिक शिल्प को जस का तस स्वीकार नहीं करते। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कालेज की हिंदी साहित्य सभा के 'रचना पाठ और लेखक से मिलिए' कार्यक्रम कहानीकार दुष्यंत के पहले कहानी संग्रह 'जुलाई की एक रात' पर परिसंवाद में कथाकार और आलोचक रामेश्वर राय ने कहा कि दुष्यंत अपनी कहानियों में जिन जीवन स्थितियों की चर्चा करते हैं, वे हमें स्वीकार नहीं होने पर भी उन पर बात करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उत्तर आधुनिकता ने हमारे मूल्यों को छिन्न-भिन्न किया है और दुष्यंत की रचनाशीलता इन्हीं स्थितियों के चित्रण में प्रकट हुई है।
हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता पल्लव ने कहा कि शिल्प की दृष्टि से ये कहानियां चौंकाने वाली हैं, क्योंकि छोटे कलेवर में किसी घटना या स्थिति का वर्णन संक्षेप में किया गया है। उन्होंने कहा कि इन कहानियों में भारतीय युवा के समक्ष आ रहे नए संघर्षों का सुंदर चित्रण आया है, वहीं प्रेम और स्त्री-पुरुष संबंधों की पारंपरिक अवधारणाओं के विपरीत यहां नई सच्चाइयां देखी जा सकती हैं। पल्लव ने जिस एक और पक्ष की तरफ ध्यान दिलाया, वह यह था कि दुष्यंत ने राजस्थान के उन क्षेत्रों और उन लोगों को भी अपनी कहानियों में स्थान दिया है, जो तथाकथित मुख्यधारा से बाहर हैं। कवि और 'धरती' के संपादक शैलेंद्र चौहान ने कहा कि इधर के युवा रचनाकारों में विचारधारा की कमी से ऐसी रचनाएं आ रही हैं, जिन्हें परिपक्व नहीं कहा जा सकता। उन्होंने दुष्यंत को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वे अपनी कहानियों में नए जीवन प्रसंगों और संघर्षों को स्थान देंगे।
आयोजन में दुष्यंत ने अपने कहानी संग्रह 'जुलाई की एक रात' से कुछ कहानियों और कहानी अंशों का पाठ किया। उन्होंने यहां 'हीरियो उर्फ़ हीरा है सदा के लिए', 'ताला, चाबी, दरवाज़ा और संदूक' तथा 'प्रेम का देह्गीत' का पाठ किया। बाद में युवा श्रोताओं से मुखातिब होते हुए उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वे आदर्शीकृत स्थितियों का गुणगान करने में विश्वास नहीं रखते, अपितु अपने समय और जीवन को सही-सही देखना-समझना ही उनका रचनात्मक लक्ष्य है। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग की वरिष्ठ आचार्य डॉ विजया सती ने की। उन्होंने कहा कि उन्हें दुष्यंत की कहानियां पसंद आई हैं, क्योंकि दुष्यंत अत्यंत सहज ढंग से अपनी रचना का निर्माण करते हैं।
पेंगुइन बुक्स के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में पुस्तक प्रदर्शनी भी पर्याप्त आकर्षण का केंद्र रही। विभाग की तरफ से डॉ अरविंद संबल ने दुष्यंत का शाल भेंटकर अभिनंदन किया। संयोजन पूर्णिमा वत्स ने किया तथा हिंदी साहित्य सभा के संयोजक श्वेतांशु शेखर ने आभार व्यक्त किया। आयोजन में डॉ रचना सिंह, डॉ हरींद्र कुमार, डॉ अभय रंजन, डॉ रवि रंजन सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।