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Friday 1 November 2013 10:37:12 AM
नई दिल्ली। जैसाकि आप देखते आ रहे हैं कि किस प्रकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए सरकार के मंत्रियों एवं कांग्रेस के अघोषित और घोषित प्रवक्ताओं में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र भाई मोदी के हर बयान पर टीवी चैनलों पर आकर तुरंत सफाई देने या उस पर प्रतिक्रिया देने की अफरातफरी और जल्दबाज़ी रहती है, वैसी ही अब भारत सरकार में भी दिखाई दे रही है। नर्मदा में सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर उनकी विशाल प्रतिमा के शिलान्यास के अवसर पर नरेंद्र मोदी ने इतना कह दिया कि गुजरात फैक्टर के कारण भारत सरकार की ओर से देशभर के अखबारों में सरदार पटेल की जयंती पर विज्ञापन भरे पड़े हैं, भारत सरकार के दृश्य प्रचार निदेशालय यानी डीएवीपी ने वर्ष 1998 से वर्ष 2013 के दौरान सरदार पटेल पर जारी किए गए विज्ञापनों का ब्यौरा ही जारी कर दिया।
डीएवीपी ने सफाई देते हुए कहा है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय, सरदार वल्लभभाई पटेल सहित प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं की जयंती पर नियमित रूप से विज्ञापन जारी करता रहा है। सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन मीडिया इकाई, विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) ने समाचार पत्रों को जारी जो विज्ञापन जारी किए हैं, उनका ब्यौरा इस प्रकार है-वर्ष 1998-2003 के दौरान इस अवसर पर 2164 समाचार पत्रों को विज्ञापन दिए गए। वर्ष 1999, 2000 और 2001 के दौरान कोई विज्ञापन जारी नहीं किया गया, तथापि वर्ष 2004-2013 के दौरान 20,915 समाचार पत्रों को विज्ञापन दिए गए थे। वर्ष 2008 में कोई विज्ञापन नहीं दिया गया।
सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस पर अपने कथन में कहा है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने राष्ट्र निर्माण में प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं के योगदान को सदा स्मरण करने की नीति का अनुसरण किया है और उसके लिए विज्ञापन जारी किए हैं। युवाओं में विश्वास और प्रेरणा पैदा करने के लिए सरदार पटेल की जयंती पर विज्ञापन जारी करना महान नेताओं के प्रति आभार प्रकट करने की इस मंत्रालय की जारी नीति का एक हिस्सा है। ध्यान रहे कि ये वही मनीष तिवारी हैं जो कहा करते हैं कि कौन मोदी और मोदी को कोई नहीं जानता। यह पटेल जयंती पर विज्ञापनों के इस ब्यौरे की क्या जरूरत पड़ी? क्या ये ब्यौरा नरेंद्र मोदी ने मांगा था? उस दिन वह केवल यह कह रहे थे कि कांग्रेस किस तरह सरदार पटेल की उपेक्षा करती आ रही है। उसके नेताओं और अधिकारियों को भी लग रहा है कि देश में नरेंद्र मोदी के पक्ष में हवा चल पड़ी है और अब एनडीए का केंद्र की सत्ता में आना निश्चित है।
दरअसल यह इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस किस कदर नरेंद्र मोदी से डरी हुई है। आज उसका हर नेता मोदी-मोदी कर रहा है। मोदी के हर शब्द पर बोलने और अपने को सेक्यूलर साबित करने की होड़ लग जाती है। दूसरे दलों में भी यही हाल है। नरेंद्र मोदी की दिनो-दिन बढ़ती लोकप्रियता को लेकर काफी हलचल है। बिहार में जद-यू के चिंतन शिविर में जद-यू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने तो मुख्यमंत्री नितीश कुमार और शरद यादव सहित कई बड़े नेताओं की मौजूदगी में नरेंद्र मोदी की तारीफ ही कर डाली और यहां तक कह दिया कि मोदी को कम आंककर चलने की भूल नहीं करनी चाहिए। ये श्रीमान नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक माने जाते हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और उनका कुनबा केवल नरेंद्र मोदी से ही घबराया हुआ है। इन्हें मोदी के कारण लोकसभा चुनाव में अपने सफाए का डर है, जिसमें यह डर प्रमुख है कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हुए तो उत्तर प्रदेश में उनके राजपुत्र अखिलेश यादव की सरकार का एक दिन भी चलना मुश्किल हो जाएगा और राज्य में मध्यावधि चुनाव को कोई रोक नहीं पाएगा।
तीसरे मोर्चे का शो करने के लिए मुलायम सिंह यादव के साथ उनतीस अक्टूबर को दिल्ली में एकत्र हुए कुछ दलों के नेता जब अपना-अपना भाषण कर लिए और प्रश्न आया कि इसका नेता कौन हो तो सब चुप्पी मार गए। मुलायम सिंह यादव ने समझा कि कोई उनका नाम आगे करेगा, मगर वहां किसी की कोई प्रतिक्रिया ही सामने नहीं आई। इस मोर्चे की तभी हवा भी निकल गई, जब सबने कह दिया कि चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए वह तैयार नहीं हैं। तीसरे मोर्चे का वैसे भी कोई खास महत्व नहीं था, क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बहुजन समाज पार्टी इसमें शामिल ही नहीं थी। यही वो फैक्टर है, जो तीसरे मोर्चे पर बड़ा भारी प्रश्नचिन्ह है और इसी फैक्टर ने देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक उपयोगिता सीमित कर दी है। इसलिए कहा जा रहा है कि एक तरफ नरेंद्र मोदी हैं और दूसरी ओर कांग्रेस एवं उसमें फंसे मुलायम हैं, जो मोदी के भय से ग्रस्त नज़र आते हैं, जिसका प्रमाण सबके सामने है।