इला बनर्जी
Friday 21 December 2012 06:57:32 AM
बहुत जिद्दी लड़के के विषय में लोग अक्सर कहते हैं -'देखो न छोकरे की जिद! आकाश का चांद पकड़ना जैसा असंभव है, वैसा ही इस छोकरे की जिद पूरी करना है' पर मेरा खयाल है कि कुछ दिन बाद माता-पिता अपने पुत्र की जिद की तुलना 'चांद पकड़ने' से नहीं करेंगे। क्योंकि अब चांद हमारी पहुंच के भीतर आ चुका है। मनुष्य ने चांद में राकेट भिजवाये हैं, चांद का जो हिस्सा पृथ्वी से दिखाई देता है उसका फोटो भी उतारा है। कई साल पूर्व रूस के उड़ाकों ने राकेट पर बैठकर पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाया था।
चांद ही क्यों, अब दूसरे ग्रहों की यात्रा करने लगे हैं। इन ग्रहों पर जाने के लिए टिकट भी पहले से ही धड़ल्ले से बिकने लगेंगे।
आज मनुष्य के मन में इतनी उत्सुकता है कि किस ग्रह में हम पहले पहुंचेंगे। किस ग्रह में हम जैसे मनुष्य हैं? इस तरह के हजारों प्रश्न आज हमारे मन में उठते हैं।
एक शब्द में इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जा सकता। कठिनाई यह है कि हमारी पृथ्वी सौर मंडल की है। सूर्य के परिवार में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटों हैं। अत्यंत छोटे-छोटे करीब 1500 ग्रह और भी हैं। इनकी स्थिति मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीचों बीच है। इनके भी अपने-अपने कुछ उपग्रह हैं। जैसे पृथ्वी का एक अर्थात् चांद, मंगल के दो, बृहस्पति के ग्यारह, शनि के नौ, यूरेनस के चार एवं नेपच्यून का एक।
यह तो हुई एक सौर मंडल के परिवारों की सूची। इसी प्रकार ब्रह्मांड में न जाने कितने सौर मंडल हैं और उनका परिवार है। आधुनिक खगोलशास्त्र ने सौर मंडल के ग्रह-उपग्रहों के संबंध में जितना पता लगाया है, उसका कुछ हवाला मैं यहां दे रही हूं। इससे एक ग्रह से अन्य ग्रहों की यात्रा की संभावना के संबंध में जो सहज प्रश्न उठता है उसका कुछ समाधान होगा।
राकेट के द्वारा चन्द्रलोक में सोवियत रूस ने अपनी विजय-पताका फहराई है। मैं इसी चन्द्रलोक से अपनी यात्रा शुरू करती हूं। चन्द्रलोक में पहाड़ और गहरे गढ़ों के अलावा कुछ नहीं है पर समुद्र की तरह इन बड़े-बड़े गढ़ों में एक बूंद भी पानी न मिलेगा। इसी प्रकार पर्वतों में घास-फूस, लता-पेड़-पौधे इत्यादि भी न मिलेंगे। चन्द्रलोक में वायुमंडल भी नहीं है। वहां के समुद्र, तालाब या नदी में पानी होता तो वह सूर्य के प्रकाश से जगमगा उठता। इसके अलावा यह जल सूर्य की गरमी पाकर भाप बनता और मेघों को उत्पन्न करता। पर आज तक चन्द्रलोक की ऊपरी सतह पर मेघ जमते नहीं दिखे।
यहां का तापमान 120 डिग्री सेंटीग्रेड है और इस तापमान में कार्बन द्विओषिद (डाय आक्साइड) एवं अन्य भारी गैस तो रह सकती है; परंतु ओषजन या प्राणवायु एवं अन्य हल्की, गैसों का सर्वथा अभाव है। अतएव सहज ही समझ में आ जाता है कि यदि मनुष्य चन्द्रलोक में अपना डेरा डाले तो वह नैसर्गिक रूप से वहां खड़ा न रह सकेगा।
अब शुक्रग्रह की यात्रा की जाए। यह ग्रह सूर्य से काफी निकट है। परंतु इस ग्रह में सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता। इसी से वहां रात दिन नाम की कोई चीज ही नहीं है। शुक्र के आठवें हिस्से के तीन हिस्सों में आधे में हमेशा दिन एवं उसी परिमाण में आधे में हमेशा रात्रि रहती है। हां, बाकी पांच हिस्सों में क्रम से रात-दिन का फेरा लगता है। हमारी पृथ्वी का तापमान 42 या 43 डिग्री सेंटीग्रेड होते ही हम गर्मी से बेचैन हो जाते हैं; परंतु शुक्र का जो हिस्सा चिर-दिवस का है उसका तापमान 400 डिग्री सेंटीग्रेड है। उसका जो हिस्सा चिर-रात्रि का है वहां वैसी ही कड़ाके की ठंड है। इस ठंड में कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता। जिस हिस्से में क्रम से रात और दिन होते हैं वहां भी भयंकर गर्मी पड़ती है। चन्द्रलोक की तरह यहां भी कार्बन द्विओषिद की तरह कोई भारी गैस है, अर्थात् ओषजन वायु जैसी हलकी हवा यहां भी नहीं है। यहां वायुमंडल नहीं है। जल से भरी भाप या बादल भी इसकी ऊपरी सतह पर नहीं हैं।
अब बृहस्पति, शनि, यूरेनस एवं नेपच्यून इन बड़े ग्रहों की यात्रा की जाए। उक्त सारे ग्रह पृथ्वी से आकार में बड़े हैं। इन ग्रहों में वायुमंडल है। परंतु किस प्रकार का वायुमंडल है यही जानना है। पहले वैज्ञानिकों ने एवं खगोलशास्त्रियों ने बृहस्पति ग्रह के विषय में जो सिद्धांत खोजा था वह गलत निकला। बृहस्पति ग्रह के विषय में उनकी धारणा यह थी कि वहां हमेशा पिघला हुआ लावा बहता है और यह ग्रह सूर्य की तरह तपा हुआ अग्निपिंड है। पर यह धारणा गलत है। देखा गया है कि जब बृहस्पति का कोई उपग्रह सूर्य एवं बृहस्पति के बीचोंबीच आ जाता है तब उसकी छाया बृहस्पति पर पड़ती है। यदि बृहस्पति ग्रह स्वयं प्रकाशित होता तो ऐसा न होता।
उक्त तीनों ग्रहों की समानता से खगोलशास्त्रियों ने ये निष्कर्ष निकाले हैं-- इन तीनों ग्रहों के वायुमंडल में हाइड्रोजन, हिलियम एवं एक जहरीली गैस है। इन ग्रहों में ओषजन एवं कार्बन द्विओषिद नाम को भी नहीं है। नाइट्रोजन भी नहीं है। इन तीनों ग्रहों में अमोनिया जमकर बरफ हो गई है। किसी भी स्थान में खूब कड़ाके की ठंड पड़ने पर जीवों का अस्तित्व होना संभव है- पर ओषजन-विहीन एवं जहरीली गैसों से भरे वायुमंडल में जीव नहीं रह सकते अतएव पृथ्वी के प्राणी यदि इन तीनों ग्रहों में से किसी में उतरें तो गैस की नलियां नाक में लगाकर उतरना होगा। इन ग्रहों के भूमंडल पर पृथ्वी के प्राणी का ज्यादा समय तक ठहरना असंभव ही है। लाखों मील तक फैली जहरीली गैस के वायुमंडल को ओषजन से युक्त वायुमंडल में परिवर्तित करना भी कठिन है।
सौर मंडल का एक अन्य ग्रह है बुध। इसे पृथ्वी की जुड़वा बहिन कहा जा सकता है। आकार, वजन एवं बनावट की दृष्टि से यह ग्रह पृथ्वी के अनुरूप ही है। अपने कक्ष में घूमता हुआ यह ग्रह पृथ्वी के काफी निकट आ जाता है। अन्य कोई ग्रह अपने कक्ष में परिक्रमा करता हुआ इतने निकट नहीं आता। फिर भी पृथ्वी के सबसे नजदीक की स्थिति में भी इस ग्रह की दूरी 2 करोड़ 60 लाख मील रहती है। यह ग्रह सूर्योदय से पहले वह सूर्यास्त के बाद दिखाई देता है। अतएव पहले कई लोग इस एक ही ग्रह को दो भिन्न्-भिन्न ग्रह मान लिया करते थे।
हमारी पृथ्वी से इस ग्रह का काफी मेल है, इसीलिए यह धारणा जागना सहज है कि बुध ग्रह में महासागर होंगे। परंतु यह धारणा सही नहीं है। यदि महासागर होते तो जल से भरी भाप भी बनती। यद्यपि बुधग्रह के वायुमंडल में मेघ दिखाई पड़ते हैं, पर वे खाली मेघ हैं। खुर्दबीन से देखने से यह भली भांति समझ में आ जाता है। तो ये मेघ किन तत्वों के बने हैं, यह समस्या ही है। नए समाचारों के अनुसार बुध ग्रह में ओषजनवायु नाम मात्र को भी नहीं है-- है सिर्फ कार्बन द्विओषिद। सारा ग्रह सूखा एवं मरुस्थल- सा है पानी का कहीं नाम नहीं; ऊपर से भयानक तापक्रम है। अतएव तुम सोच ही सकते हो कि यहां पेड़ पौधों का अस्तित्व असंभव है। पेड़-पौधे ही क्यों, किसी भी प्राणी का अस्तित्व संभव नहीं है।
अणुवीक्षण यंत्र द्वारा देखने पर पता चला है कि इस ग्रह में प्रचंड आंधी रात दिन चलती रहती है। हमारी पृथ्वी पर भी मरुस्थलों में तेज आंधी चलती है, परंतु बुध ग्रह की आंधी की तुलना में हमारी पृथ्वी की यह आंधी कुछ भी नहीं। यहां का तापमान भी बहुत अधिक है। यदि हांड़ी में ठंडा पानी रखा जाय तो वह शीघ्र ही खौलने लगे। इसीलिए बुध ग्रह में प्राणियों एवं पेड़-पौधों का कोई अस्तित्व नहीं है। भूतकाल में था, इसका भी कोई प्रमाण नहीं है।
सबसे अंत में मंगल ग्रह की यात्रा की जाय। इस ग्रह के संबंध में पृथ्वी-निवासियों के मन में बहुत कुतूहल है। पृथ्वी के बाहर इसी एक ग्रह में प्राणियों के अस्तित्व की संभावना सबसे अधिक है। किसी-किसी वैज्ञानिक ने तो यहां तक कहा है कि यहां मनुष्य की तरह बुद्धिमान प्राणी रहते हैं।
मंगल ग्रह हमारी पृथ्वी के आयतन से कुछ बड़ा है। इस ग्रह का वजन भी पृथ्वी से एक दशांश ज्यादा है। पृथ्वी की जो माध्याकर्षण शक्ति हमें अपनी ओर खींचें रहती है वही माध्याकर्षण शक्ति मंगल ग्रह में भी है, परंतु यह माध्याकर्षण शक्ति पृथ्वी की आकर्षण शक्ति की तरह ज्यादा नहीं है।
इस ग्रह के ऊपरी पृष्ठ पर बहुत से निशान दीख पड़ते हैं और दिखाई देते हैं उत्तर एवं दक्षिणी छोर पर सफेद टोप। इन दो चिन्हों को देखकर ही मंगल के प्राणियों के अस्तित्व के विषय में प्रश्न जागा था पृथ्वी के वैज्ञानिकों के मन में। इन गहरे निशानों को सर्वप्रथम देखा था वीघेन्स ने सन् 1657 ई में। बाद में 1877 ई में इटली के खगोलशास्त्री 'स्कीयापेरेली' ने इन निशानों की जांच बारीकी से की। इन निशानों को देख 'स्कीयापेरेली' ने कहा कि ये निशान मंगल ग्रह की नहरें हैं जिन्हें मंगल ग्रहवासियों ने सिंचाई के लिए खोदा है।
अब प्रश्न होता है दोनों ध्रुवों के सफेद टोप के विषय में। वैज्ञानिकों का कहना है कि, चांद के दोनों ध्रुव (उत्तरी एवं दक्षिणी) प्रदेशों का बर्फ जमने से ये बने हैं। इस खोज के बाद इन टोपों की घटती-बढ़ती की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान गया एवं नहरें कभी तो संकरी और कभी चौड़ी दिखाई दीं तब बहुतों ने निश्चित रूप से यही निष्कर्ष निकाला कि मंगल ग्रह के मध्यभाग में जल की कमी दूर करने के लिए मंगलवासियों ने नहरें खोदीं और ध्रुव प्रदेशों को जलापूर्ति का साधन बनाया।
जांच-पड़ताल करने से पता चला कि मंगल ग्रह में पर्वत नहीं हैं। मध्य भाग मरुस्थल सदृश है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मंगल में जीवन संभव है तो भी सिर्फ ग्रीष्म ऋतु में पिघली बर्फ की नहरों द्वारा वे इस मरुस्थल जैसे बंजर प्रदेश में कब तक जीवित रहेंगे? मंगल ग्रह में ओषजन वायु है और शायद कहीं-कहीं पेड़-पौधे भी होंगे, पर किसी भी प्रकार के प्राणियों का अस्तित्व आज तक सिद्ध नहीं हुआ।
वर्तमान युग के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह को मरणोन्मुख ग्रह कहा है, अर्थात् इस ग्रह की आयु समाप्त हो चली है। इस ग्रह के वायुमंडल में भी परिवर्तन हो रहा है। जल से भरी भाप कम होती जा रही है और जो ओषजन वायु आज बची है उसमें किसी प्राणी का जीवित रहना संभव नहीं।
सौर जगत् परिवार का सबसे अंतिम आविष्कृत ग्रह है प्लूटो। 1930 ई में यह ग्रह ढूंढ़ा गया था। पर इस आविष्कार के 25 वर्ष पहले से इस ग्रह के अस्तित्व का अनुभव वैज्ञानिक कर रहे थे। प्लूटों ग्रह के देर से पाये जाने का कारण था इसकी दूरी। इसकी दूरी सूर्य से 380 करोड़ मील है। इतनी दूर स्थित होने के कारण इसके संबंध में कुछ ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
इस वर्णन से तुम सहज ही अंदाजा लगा सकते हो कि इस ग्रहों की यात्रा के विषय में तुम्हारे मन में जो उत्साह है वह ग्रह पर पहुंचने पर ठंडा पड़ जाएगा। कई ग्रहों में तो शायद मनुष्य उतर ही न सके। उसे राकेट के विशेष कमरे में ही बैठा रहना पड़े।
तो सबसे पहले हम कहां जाएंगे? संभवत: चांद में। कारण, चांद से पृथ्वी की दूरी है प्राय: 3,84,000 किलोमीटर। इतनी दूरी कई इंजिन-ड्राइवरों एवं नाविकों ने अपने जीवन में ही तय की है। कोई भी राकेट यदि एक सेकिंड में 112 किलोमीटर की रफ्तार से चले तो वह 51 घंटे में चांद पर पहुंच जायेगा। पर चांद के संबंध में हमारे जो स्वप्न हैं वे छिन्न-भिन्न हो जायेंगे, क्योंकि दूर से दिखाई देने वाला सुंदर स्निग्ध प्रकाशवाला चांद जल और वायु से विहीन, सूखे गढ़ों से भरा हुआ है। वहां एक साधारण-सा हरा तिनका भी नहीं है जो खड़ा-खड़ा हमारा अर्थात् पृथ्वीवासियों का स्वागत करे।