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Thursday 7 November 2013 08:35:18 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि विदेश नीति को हमारी राष्ट्रीय नीति का ही हिस्सा होना चाहिए। मिशन सम्मेलन के पांचवें वार्षिक प्रमुखों के प्रतिनिधियों ने 6 नवंबर 2013 को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाक़ात की थी। उस अवसर पर राष्ट्रपति ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन का विषय 'बदलते विश्व क्रम में भारत का स्थान' अत्यंत प्रासांगिक है, हमारी विदेश नीति को हमारी राष्ट्रीय नीति का ही एक हिस्सा होना चाहिए, हमारी विदेश नीति में कुछ विशेष मूलभूत सिद्धांत हैं, जिन्हें हमने अपनी पुरानी सभ्यता के मूल्यों और अपने स्वतंत्रता आंदोलन से विरासत में प्राप्त किया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सदैव विश्वशांति के लिए प्रतिबद्ध रहा है, लेकिन वह इस तथ्य के प्रति भी जागरूक है कि इसके लिए प्रयास अपने पड़ोस से ही शुरू किये जाने चाहिएं, परिवर्तन एक शाश्वत क्रिया है और भारत की विदेश नीति को विश्व के बदलते परिदृश्य के अनुकूल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, भारत ऐसा पहला देश था, जिसने कहीं अधिक व्यक्तिगत मूल्य चुका कर इसके खतरे की पहचान की और विश्व को इसके बारे में सचेत किया।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक देश आतंकवाद के शिकार हुए हैं, इन देशों ने अपने नेताओं की अनेक राजनीतिक हत्याएं देखी हैं, आतंकवाद की चुनौती का व्यापक सामूहिक प्रयासों के माध्यम से सामना किये जाने की आवश्यकता है, कोई भी राष्ट्र अपने आप को इस संकट से अलग नहीं रख सकता, राष्ट्रों के समुदाय में भारत उचित स्थान का हक़दार है, उन्होंने मिशन प्रमुखों का इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करने का आह्वान किया।