गुरुप्रसाद गुप्त 'गुरु'
Friday 21 December 2012 07:26:09 AM
चौधरिया मेरा नौकर है, बुड्ढा-सा तन का जर्जर है।
कुछ सफेद कुछ काले बाल, चलता बिलकुल रद्दी चाल।
उसकी है पोशाक निराली, गंदा गमछा कुर्ता खाली।
प्रति दिन दस आने है पाता, डेढ़ पाव आटा ले आता।
साग आदि घर से ले आता, टिक्कड़ चार बनाकर खाता।
पीता है अफीम की बौंड़ी, नहीं टेंट में रखता कौड़ी।
ड्योढ़ी पर बैठा रहता है, बच्चों से ऐंठा करता है।
चूर नशे में रहता हरदम, अपनी ही कहता है हरदम।
कोई काम अगर पड़ता है, टाल टूल करने लगता है।
सुनकर करता आना-कानी, काम पड़े मर जाती नानी।
पढ़कर आता जब शिवबालक, अपने साथ लिवा कुछ बालक-
उसको सभी चिढ़ाने लगते, चोर चोर कह गाने लगते।
डांट बताकर लट्ठ उठाता, सब बच्चों का दल भग जाता।
नशेबाज बत्तड़ भड़भड़िया।
मेरा यह नौकर चौधरिया।