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Wednesday 20 November 2013 09:57:11 AM
नई दिल्ली। भारत में बाल विवाह चिंता का विषय है। बाल विवाह किसी बच्चे को अच्छे स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के अधिकार से वंचित करता है। ऐसा माना जाता है कि कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का अधिक सामना करना पड़ता है। कम उम्र में विवाह का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, शिक्षा के अवसर कम हो जाते हैं और व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नही हो पाता है। हालॉकि बाल विवाह से लड़के भी प्रभावित होते हैं, लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है, जिससे लड़कियां बड़ी संख्या में प्रभावित होती हैं। वर्ष 18-29 (46 प्रतिशत) आयु वर्ग में करीब आधी महिलाएं और 21-29 (27 प्रतिशत) पुरुषों में एक चौथाई से ज्यादा का कानूनी तौर पर तय न्यूनतम आयु सीमा तक पहुंचने से पहले ही विवाह हो जाता है। माना जाता है कि कम उम्र के विवाह के मुख्य कारणो में सांस्कृतिक चलन, सामाजिक परंपराएं और आर्थिक दबाव गरीबी और असमानता है।
केंद्र सरकार ने 1929 के बाल विवाह निषेध अधिनियम को निरस्त करके और उसके स्थान पर 2006 में अधिक प्रगतिशील बाल विवाह निषेध अधिनियम लाकर हाल के वर्षों में इस प्रथा को रोकने की दिशा में काम किया है। इसके अंतर्गत उन लोगों के खिलाफ कठोर उपाय किये गये हैं, जो बाल विवाह की इजाजत देते हैं और उसे बढ़ावा देते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल-विवाह के रुप में परिभाषित किया गया है।। यह कानून नवंबर 2007 में प्रभावी हुआ। राज्यों संघ राज्य क्षेत्रों की सूचना के अनुसार अब तक 24 संघ राज्य क्षेत्रों राज्यों ने नियम बनाये हैं और 20 संघ राज्य क्षेत्रों राज्यों ने बाल-विवाह निषेध अधिकारियों की नियुक्ति की है। केंद्र सरकार लगातार राज्य सरकारों से बाल-विवाह निषेध अधिकारियों कि नियुक्ति करने की बात कहती रहती है।
बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना 2005 में बाल-विवाह को समाप्त करने का लक्ष्य शामिल है। लड़कियों सहित बच्चों के संरक्षण के लिए भारत की प्रमुख पहलों में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए 2007 में राष्ट्रीय आयोग कि स्थापना करना शामिल है, ताकि बच्चों के अधिकारों को सही तरीके से और उनसे जुड़े कानून और कार्यक्रम को प्रभावी तौर पर लागू किये जा सके।