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Friday 22 November 2013 08:51:48 AM
नई दिल्ली। भारत की सशस्त्र सेनाओं के वरिष्ठतम नेतृत्व के संयुक्त सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि आस-पास के माहौल पर ध्यान देते हुए हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारी सशस्त्र सेनाएं इससे निपटने में पूरी तरह सक्षम हों। अपने पड़ोसियों के साथ सुरक्षा की अनोखी चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप पिछले दशक के वैश्विक सामरिक माहौल को देखें तो आप इस बात को नजरंदाज नहीं कर सकते कि जैसे-जैसे आर्थिक पेंडुलम पश्चिम से पूर्व की तरफ बढ़ रहा है वैसे-वैसे सामरिक महत्व की चीजों पर भी ध्यान केंद्रित हो रहा है, जैसा कि हमारे पूर्व के समुद्रों में बढ़ते विवाद और इस क्षेत्र में अमरीका के उससे संबंधित 'केंद्र बिंदु' या 'पुन:संतुलन' का उदाहरण है। यह अनिश्चितता के साथ विकास है। हम अभी तक नहीं जानते कि ये आर्थिक और सामरिक संक्रमण शांतिपूर्ण होगा अथवा नहीं, लेकिन इस चुनौती का यहां मौजूद कमांडरों को सामना करना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दूसरा वैश्वीकरण एक ऐसा विषय है, जिसका हमें हर क्षेत्र में सामना करना होगा, लेकिन यह नई अथवा शीत युद्ध के बाद की घटना नहीं है, हमें प्लीनी और रोमन साम्राज्य को याद करने की जरूरत है और यह सच्चाई है कि पूर्व से सिल्क और मसालों का आयात करने के लिए रोम के सम्राट के हाथ खाली हो गए थे, आज वैश्वीकरण की गति इंटरनेट सहित प्रौद्योगिकी से चलती है, हालांकि वैश्वीकरण ने आर्थिक और व्यापारिक मोर्चों पर देशों और नागरिकों के बीच आपस में निर्भरता को बढ़ा दिया है, उसने सुरक्षा के क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता पैदा की है। इन परस्पर विरोधी स्वरों का प्रबंधन, जिसे अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की बनाई वैश्विक निगरानी कार्यविधि से उजागर किया गया है, हमारी शासन नीति के लिए अनिवार्य है। निश्चित रूप से हमारा उद्देश्य ठोस राष्ट्रीय क्षमता हासिल करना होना चाहिए, अथवा शब्दकोष में जिसे व्यापक राष्ट्रीय ताकत के रूप में परिभाषित किया गया है। यह आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और औद्योगिक कौशल का मिश्रण है।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहले छ: दशकों में देश को अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा और देश तथा उसकी सेना हर मौके पर खरी उतरी। लोग भारतीय सेना की देशभक्ति और उसके पेशेवराना अंदाज का लोहा मानते हैं, लेकिन भारतीय सेना को आगे क्या करना है? हम शांति के रास्ते के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन यदि सेना को किसी खतरे अथवा चुनौती का सामना करना पड़ता है तो वह भारतीय हितों की रक्षा करने में सक्षम होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अब हम अपने पड़ोसियों की स्थिति पर आते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें लगातार चुनौतियों को सामना करना पड़ेगा। पश्चिम एशिया में जारी उथल-पुथल ने न केवल हमारी ऊर्जा सुरक्षा और जीविका तथा 70 लाख भारतीय की सुरक्षा को प्रभावित किया है, बल्कि कट्टरपंथ, आतंकवाद, हथियारों के प्रसार और सांप्रदायिक विवाद के लिए संकट बन गया है, जो हमारे समुद्रों को छू सकता है। एशिया प्रशांत क्षेत्र जिसके साथ हमारे संबंध हर क्षेत्र में बढ़ रहे हैं, समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
प्रधानमंत्रीने कहा कि हमारे उच्च रक्षा संगठनों को इन विशेष घटनाक्रमों की तरफ खासतौर से ध्यान देना चाहिए, साथ ही हमारी सामरिक सीमाओं में वस्तुओं, ऊर्जा और खनिजों के वैश्विक समुद्री व्यापार, विश्वभर में पहले प्रवासी भारतीयों के कल्याण और भारत की राजधानी में बढ़ते वैश्विक पदचिन्हों की रक्षा करने की जरूरत है। जैसे-जैसे हमारी क्षमता बढ़ती जाएगी, हमारे सामने प्राकृतिक आपदाओं अथवा विवाद और अस्थिरता के क्षेत्रों में मदद का आह्वान बढ़ता जाएगा। इन स्थितियों से कैसे निपटा जाएगा, यही कार्य आपके सामने है। उन्होंने रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं के साथ-साथ डीआरडीओ से आग्रह किया कि वे इन अनुभवों को जोड़े और सरकार की पहल वाली विविध कार्यबल की रिपोर्टों की समीक्षा करें, ताकि सैनिक सामानों के उत्पादन में स्वदेशी क्षमता का उच्च सूचकांक हासिल किया जा सके। काफी लंबे समय से हम निजी बनाम सार्वजनिक क्षेत्र के फायदे-नुकसान पर बहस कर रहे हैं। यह अधिक उपयोगी होगा यदि हम अपने सार्वजनिक क्षेत्र, निजी उद्यमों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं को पूरी ताकत देने के लिए औसत राष्ट्रीय क्षमता के संदर्भ में विचार करें, ताकि उत्पादन, अनुसंधान और विकास के लिए सृजनात्मक और प्रभावी स्वदेशी आधार बनाए जा सकें। हमें घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार तैयार करने के लिए अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय माहौल का लाभ उठाना होगा।
मनमोहन सिंह ने कहा कि हमें उच्च रक्षा प्रबंधन के लिए सही ढांचा स्थापित करने के लिए तत्काल और ठोस प्रगति करने तथा निर्णय लेने में उचित नागरिक-सैनिक संतुलन बनाने की जरूरत है, जो हमारे जटिल सुरक्षा माहौल की मांग है, राजनीतिक नेतृत्व आपकी सिफारिशों पर सावधानीपूर्वक विचार करेगा। उन्होंने कहा कि सैनिक उपकरणों और सेनाओं में हमारा निवेश हमारे राष्ट्रीय संसाधनों से मेले खाता हुआ होना चाहिए। अधिकतर पिछले दशकों के दौरान, हमें 8 प्रतिशत की दर से औसत वार्षिक वृद्धि का लाभ मिला, लेकिन पिछले दो वर्षों में विकास की गति धीमी हुई है और हमें घटती-बढ़ती विनिमय दर और व्यापार के क्षेत्र में अड़चनों की संभावना सहित अनिश्चित अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक माहौल का सामना करना पड़ रहा है। हमारी सशस्त्र सेना के दिल में लोग बसते हैं। यह हमारी सेना की विशिष्ट मूल्य व्यवस्था है, जो उसके मानवीय संसाधन को सुसंगति प्रदान करता है। हाल के समय में हमारे देश में नागरिक-सैनिक संबंधों की प्रकृति के बारे में चिंताएं उठाई गई हैं। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी सेना और लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर उसके संस्थागत खरेपन पर पूरा भरोसा है। हमारी सेना की अराजनीतिक प्रकृति और उसका पेशेवराना अंदाज दुनिया के लिए ईर्ष्या पैदा करती है और इसने भारतीय लोकतांत्रिक अनुभव विकसित किया है। हमारे लोकतंत्र और संस्थानों ने किसी भी मुद्दे से निपटने में अपनी क्षमता साबित की है।
उन्होंने कहा कि हमारी सशस्त्र सेना अपने सिद्धांत के अनुरूप आचरण कर रही है और उसने शेष दुनिया के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। उसके पास जर्बदस्त ताकत है लेकिन उसने परिपक्वता और जिम्मेदारी के साथ इसका उपयोग किया है। वह कठिन से कठिन मिशन के लिए तैयार है, लेकिन शांति के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने देश की रक्षा के लिए तूफानों, कड़ाके की ठंड और तपती गर्मी का बहादुरी से मुकाबला किया है, इसलिए भारत अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता है। आने वाले हफ्तों और महीनों में हमारी सुरक्षा चुनौतियां कठिन बनी रहेंगी, लेकिन हमारा संकल्प अडिग रहेगा। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि हमारी सशस्त्र सेनाएं झंडे और देश के प्रति अपनी सामूहिक जिम्मेदारी उत्साह और जोश से निभाएंगी, जो उनका पर्याय बन चुका है।