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Friday 6 December 2013 07:50:45 AM
नई दिल्ली। रक्षा विभाग में शोध और विकास सचिव तथा रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार अविनाश चंदर ने विश्व के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के योगदान पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की और कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से दुनिया में तेजी से प्रगति हुई है, मगर तीसरी दुनिया के देश अभी भी इसके लाभ से वंचित हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान का विकास दुनिया में सभी लोगों तक नहीं पहुंचा है और इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इन उपायों तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन जैसे संगठनों के प्रयासों से वैज्ञानिक शोध में हिंदी के विकास में मदद मिलेगी, जिससे राष्ट्रीय लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा।
मेटकाफ हाउस के भगवंतम सभागार में आयोजित इस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यह विषय बहुत ही समाचीन है और यह सम्मेलन हमारे महान वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के कार्यों की समीक्षा का एक अवसर है। खगोल शास्त्र, गणित और चिकित्सा विज्ञान में महान भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ये सभी कार्य संस्कृत या हिंदी में लिखे गए हैं, हिंदी में वैज्ञानिक लेखक और लेखन बहुत कम है और आशा है कि इस सम्मेलन में ऐसे लेखन पर ध्यान दिया जाएगा, जिससे यह कमी दूर हो पाएगी। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में प्रस्तुत 604 शोध पत्र और लेख अपने आप में रिकार्ड है। उन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की एक किताब को उद्धृत करते हुए कहा कि कोई भी देश विदेशी भाषा का प्रयोग करके विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मौलिक रूप से विकास नहीं कर सकता न ही इस क्षेत्र में वह अपनी पहचान स्थापित कर सकता है, इसलिए विज्ञान और प्राद्योगिकी का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक लेखन हिंदी में उपलब्ध कराए जाएं।
सम्मेलन का उद्घाटन गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के सचिव अरुण कुमार जैन ने किया। उन्होंने सभी क्षेत्रों में हिंदी के सरलीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी उन लोगों के लिए एक जवाब है, जो इस निराशाजनक नतीजे पर पहुंचे हुए हैं कि वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन केवल अंग्रेजी भाषा में ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि मुख्य मुद्दा माध्यम के तौर पर हिंदी उपयुक्तता नहीं, बल्कि पर्याप्त संख्या में वैज्ञानिक लेखन का सृजन करना है, ताकि विज्ञान और शोध के अध्ययन के क्षेत्र में कोई बाधा न आए। उन्होंने राजभाषा अमल समिति की सिफारिश के अनुरूप सभी मंत्रालयों और विभागों के कार्यों का उल्लेख किया, जिसमें प्रशासनिक तथा तकनीकी शब्दावली, पुस्तकों का प्रकाशन तथा वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में संदर्भ नियम पुस्तिका शामिल है।