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Saturday 21 December 2013 03:04:07 PM
नई दिल्ली। भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि दुनिया के प्रमुख व्यापारिक देशों में भारत को शामिल होना ही होगा, आमतौर पर यह नहीं माना जाता कि भारत उपलब्ध महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं कर सकता, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लगातार बढ़ाकर ही हम इस कमी को दूर कर सकते हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व हमारे देश के आर्थिक विकास के लिए एक उद्देश्यपूर्ण उपकरण के तौर पर है। उन्होंने बताया कि उन्हें भी इस संस्थान के साथ जुड़ने का मौका मिला था। चार दशक पहले जब वे दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स में कार्यरत थे, तब आईआईएफटी के परिपत्र “विदेश व्यापार समीक्षा” में उनका एक पेपर प्रकाशित हुआ था। नवंबर 1993 में भी एक आर्थिक सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए वित्त मंत्री के रुप में वे इस संस्थान में आए थे। भारत की व्यापार वृद्धि की संभावनाओं को देखते हुए संस्थान के रचनात्मक कार्य से जाहिर है कि भारत, तेजी से विश्व अर्थव्यवस्था के साथ आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दूसरे उत्कृष्ट संस्थानों जैसी ही आईआईएफटी की स्थापना पंडित जवाहर लाल नेहरु की दूरदर्शिता का ही परिणाम है। इस संस्थान ने साल दर साल अपनी भूमिका को बढ़ाया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पूरे तौर तरीके शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कार्यक्रम में अपने विशेष एमबीए के तहत 28 से अधिक बैचों में आईआईएफटी ने 4000 पेशेवर तैयार किये हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले कुछ सालों में हमारे उद्योग और सेवाओं के क्षेत्र में आधुनिकीकरण हुआ है और गैर-परम्परागत तरीके से विविधता आई है, हम सूचना तकनीक, अनुसंधान और विकास तथा नवीनीकरण के लिए वैश्विक केंद्र के रुप में उभरे हैं, हमारे वित्तीय क्षेत्र और शेयर बाजार भी आधुनिक हुए हैं, इस परिपेक्ष में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में पेशेवरों की मांग बढ़ने की आशा है, आईआईएफटी जैसे संस्थानों की इस मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका है
उन्होंने कहा कि एक प्रमुख अर्थव्यवस्था, जिसका भविष्य वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जटिल रूप में जुड़ा है, वहां हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे शैक्षणिक संस्थान दुनियाभर में उभर रही नई व्यापार प्रणाली का विश्लेषण करेंगे। विश्व व्यापार संगठन की हमेशा से विस्तारित होती भूमिका, क्षेत्रीय व्यापार समझौते और नवीन मुक्त व्यापार समझौते, आईआईएफटी जैसे संस्थानों के लिए अनुसंधान प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में होने चाहिएं। उन्होंने कहा कि हाल ही में, दुनिया में उदारीकरण की एक नई लहर स्थान ले रही है, अंतर-महाद्वीपीय देश एक समझौते पर वार्ता कर रहे हैं, जिसे अंतर-महाद्वीपीय समझौता कहा जाता है। इसी प्रकार से प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमरीका, प्रशांत महासागर रिम के अंतर्गत व्यापार करने वाले देशों को एक साथ लाने की पहल कर रहा है, यदि ये प्रबंध नहीं किए जाते हैं और हम विश्व की इस नई व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनते और यदि हम अत्यधिक प्रतिस्पर्धी और अभिनव राष्ट्रों में शामिल होने के लिए उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदल रहे तरीकों और रूझानों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते हैं तो आप सब कल्पना कर सकते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था कैसे विस्थापित हो सकती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आईआईएफटी ने उम्मीद के मुताबिक गौरव के साथ शानदार भूमिका निभाई है, यह ना सिर्फ आंतरिक क्षेत्र के अनुसंधान कार्यक्रमों में बल्कि केंद्र, राज्य सरकारों, विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे विश्व बैंक, एफएओ तथा विश्व व्यापार संगठन के साथ भी बेहतर तालमेल निभा रहा है। उन्होंने कहा कि संस्थान ने द्वीपक्षीय और बहुपक्षीय तरजीह व्यापार समझौतों के मामलों में हुई वार्ताओं में सरकार को सलाह देते हुए भारत में व्यापार नीति के गठन में भी योगदान प्रदान किया है। यह एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमरीका के अन्य विकासशील देशों में एजेंसियों को भी सेवाएं प्रदान कर चुका है, यह हमारी व्यापार नीति के गठन में भी विशेषज्ञ के तौर पर सलाह प्रदान करने में और भी व्यापक भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि यह संस्थान अपनी स्थापना के बाद से अब तक 50 वर्ष तक देश को महत्वपूर्ण सेवा प्रदान कर चुका है, मैं मानता हूं कि संस्थान अपने विशेषज्ञों के साथ व्यापार नीति अनुसंधान के महत्वपूर्ण क्षेत्र में ज्ञान में सुधार और प्रगति के साथ मिलकर कार्य करना जारी रखेगा। डाक विभाग ने भारतीय विदेश व्यापार संस्थान की स्वर्ण जयंती एक डाक टिकट जारी किया है।