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Thursday 9 January 2014 09:57:00 PM
लखनऊ। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में 'उच्च शिक्षा में चुनौतियां' विषय पर व्याख्यान में कहा है कि उच्च शिक्षा क्षेत्र में विद्यार्थी, फैकल्टी, शिक्षण, शोध तथा मूल्यांकन मानकों में व्यापक सुधार की आवश्यकता है, यदि ऐसे सुधार नहीं किए गए तो 2040 तक मिलने वाले जनसंख्या लाभ की स्थिति खतरे में पड़ जाएगी। हामिद अंसारी ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में कमियों की समीक्षा की शुरूआत स्कूली स्तर से की जानी चाहिए, हमारी शिक्षा व्यवस्था में माध्यमिक शिक्षा महत्वपूर्ण कड़ी है। उन्होंने कहा कि माध्यमिक स्तर पर सरकारी तथा निजी क्षेत्रों की गुणवत्ता में अंतर को पाटना हमारी चुनौती है।
उप राष्ट्रपति ने उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध पर जोर देने में आई कमी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत, प्रकाशित शोध के मामले में 11वें स्थान पर रहा। वैश्विक वैज्ञानिक प्रकाशनों में हमारा प्रतिशत 3.5 रहा, जबकि चीन 21 प्रतिशत था। वर्ष 2010 में केवल 0.3 प्रतिशत पेटेंट आवेदन भारतीयों की ओर से दिए गए। उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 7 लाख साइंस और इंजीनियरिंग स्नातक तैयार करता है और दूसरी ओर उद्योग जगत के सर्वेक्षण बताते हैं कि इन स्नातकों में से केवल 25 प्रतिशत आगे किसी प्रशिक्षण के बगैर रोज़गार योग्य हैं।
हामिद अंसारी ने कहा कि 21वीं सदी में विश्व, ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, जहां औद्योगिक व्यापार संबंधों की जगह सूचना आदान प्रदान की जटिल प्रणाली ले रही है। इससे ज्ञान के नए स्रोत विकसित करने की जिम्मेदारी देशों पर बढ़ी है। वैश्विक बाजार में स्पर्धी बने रहने के लिए मानव संसाधन को वैश्विक स्तर का बनाने की अपेक्षा की जा रही है, हमें इस क्षेत्र में वैश्विक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उप राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली के ढांचे में इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
उन्होंने कहा कि जनवरी 2013 में प्रधानमंत्री की घोषित नई विज्ञान टेक्नालॉजी तथा अन्वेषण नीति में अनुसंधान और विकास पर कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत से बढ़ाकर दो प्रतिशत करने, अनुसंधान और विकास कर्मियों की संख्या बढ़ाकर 66 प्रतिशत करने तथा वैश्विकी वैज्ञानिक प्रकाशनों में भारत की हिस्सेदारी 3.5 प्रतिशत से 7 प्रतिशत करने तथा अनुसंधान और विकास क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए माहौल तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।