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Monday 27 January 2014 05:35:53 PM
लखनऊ। चिन्मय मिशन: ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन के सत्र में प्रवचन करते हुए ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य ने कहा कि भगवान शंकराचार्य तत्व के स्वरूप का वर्णन करते हुए वर्तमान समस्त मान्यताओं को निरस्त करते हुए बताते हैं कि 'तत्व' कोई सत् नहीं, असत् भी नहीं और सत् असत् का मिश्रण भी नहीं, वो अणु, महान, स्त्री, पुरूष, नपुंसक कुछ भी नहीं है, वो तो मात्र चैतन्य, प्रकाश, जगत का अधिष्ठान और इस जगत प्रपंच का बीज मात्र है, ऐसे लोग ही धन्य हैं, जो ऐसे परम प्रकाशक एक मात्र चैतन्य का चिंतन करते हैं, अन्य लोग तो इस अपार संसार भवपाश में अज्ञान रूपी बंधन में निमज्जित हो रहे हैं, यदि जीवन में धन्यता लानी है तो एकमेव अद्वितीय चेतन तत्व का अपने ह्दय में अवलोकन करना चाहिए।
ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य ने कहा कि आगे भगवान शंकराचार्य कहते हैं कि यह जो दृश्यमान जगत है, वो अज्ञानजनित समस्त बंधनों का कारण और सार रहित है, यह तो दु:खालय है और मानव के द्वारा कभी भी ग्राह्य नहीं है, अत: विवेकीजनों को ज्ञानरूपी तलवार से इसे काट कर नष्ट कर देना चाहिए, जो जीवन में सदा एकांतवास करते हुए ब्रह्म चिंतन करते हुए आत्म स्वरूप की परम शांत अवस्था में बैठकर पूर्णत: मोह को त्याग कर एक ब्रह्म का निश्चय कर उसी में प्रतिष्ठित रहते हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। भगवान शंकराचार्य अपने ग्रंथ 'धन्याष्टकम्' के माध्यम से संदेश देना चाहते हैं कि अपने स्वरूप को जानना ही धन्यता है एवं अन्य किसी भी साधन से पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। मानव को चाहिए कि अपने परम चरम लक्ष्य आत्मतत्व की खोज करे तभी वो धन्य है। इस के सत्र के साथ ही ज्ञान यज्ञ का समापन हो गया। सत्र में श्रद्धालु भक्तों के अतिरिक्त चिन्मय मिशन के सदस्यों ऊषा गोविंद प्रसाद, विनीत तिवारी, अमरनाथ शुक्ल, एसपी अग्रवाल, भावना अवस्थी आदि ने श्रद्धापूर्वक हिस्सा लिया।