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Monday 3 February 2014 09:56:26 PM
नई दिल्ली। महिलाओं की स्थिति पर बनाई गई उच्च स्तरीय समिति ने महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट की पहली प्रति सौंप दी है। आज दिल्ली में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में उच्च स्तरीय समिति ने महिलाओं के विरूद्ध हिंसा, घटते लिंग अनुपात और महिलाओं के आर्थिक अशक्तिकरण के तीन मुख्य सामयिक मुद्दे बताये जिन पर देश को तत्काल ध्यान देने और सरकार को तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें प्रमुख सुझाव यह है कि सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का विधान लागू किया जाना चाहिए।
तत्काल कार्रवाई के लिए समिति की सिफारिशें हैं-महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के संवैधानिक वादे के बेहतर परिणाम के वास्ते सही प्रयास को बढ़ावा देने की आवश्यकता। महिलाओं के विरूद्ध हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई योजना बनाने की तत्काल आवश्यकता, क्योंकि यह महिला आबादी के जीवन काल को हर कदम पर प्रभावित करता है। संस्थागत व्यवस्थाएं मजबूत और संसाधनपूर्ण बनाइ जाएं। महिला एवं बाल विकास मंत्री का दर्जा कैबिनेट स्तर का किया जाए, जिससे महिलाओं के मुद्दों पर सरकार की गंभीरता परिलक्षित हो। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का संसाधन का बड़ा हिस्सा अभी बाल विकास में खर्च होता है, संसाधन बढ़ाए जाने से लैंगिग चिंताओं को भी प्राथमिकता दी जा सकेगी। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को अंतर्राष्ट्रीय विचार विमर्शों से भी जुड़ना और उनमें भाग लेना चाहिए, साथ ही सरकार को सीईडीएडब्ल्यू समिति की सिफारिशों पर गौर कर उन पर कदम उठाना चाहिए, जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति हमारी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है। महिलाओं के सशक्तिकरण पर संसदीय समिति को सभी प्रस्तावित विधेयकों का आकलन लैंगिक प्रभाव से करना चाहिए। इस बात की भी आवश्यकता है कि समिति की बैठकें ज्यादा आयोजित की जाएं। इन बैठकों में नागरिक समूहों को प्रेक्षकों के तौर पर आने दिया जाए।
आगे और सिफारिशें हैं-राष्ट्रीय महिला आयोग की भूमिका प्रतिक्रियात्मक पहल से आगे बढ़कर सक्रियता दिखाते हुए नीतियों, कानूनों, कार्यक्रमों और बजट में अध्ययन और सिफारिश की भूमिका निभाते हुए अपना प्रभाव दिखाना चाहिए, ताकि हितधारकों के लिए पूर्ण लाभ सुनिश्चित किया जा सके। राष्ट्रीय महिला आयोग एक शीर्ष संस्था है, जो भारत की आधी आबादी के लिए जवाबदेह है। इसको ध्यान में रखते हुए इसके सदस्यों का चयन और उसका संयोजन एक संस्थागत और पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए किया जाना चाहिए। एक विशेषज्ञ चयन समिति को प्रमाणित विशेषज्ञता वाले पेशेवर लोगों की खोज और चयन की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। सदस्यों की नियुक्ति उनकी योग्यता को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए न कि उनकी राजनीतिक संबद्धता को। लैंगिक बजट और लैंगिक लेखा-जोखा को और गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जिससे कि सोद्देश्यपूर्ण लैंगिक योजना परिलक्षित हो सके। विकास के प्रतिमान में प्रमुख जोर विकेंद्रीकरण पर होना चाहिए, जिससे विकासात्मक प्रक्रिया में महिलाओं की अधिक भागीदारी होगी। सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का विधान लागू किया जाना चाहिए। भारत में महिलाओं की स्थिति का आकलन नियमित रूप से होना चाहिए। इस संबंध में पहली स्थिति रिपोर्ट आने में 25 वर्ष लग गए, जबकि अभी की मौजूदा उच्चाधिकार समिति के गठन में चालीस साल लगे। महिलाओं की स्थिति के निरंतर आकलन के लिए एक नियमित व्यवस्था होनी चाहिए और द्विवार्षिक आधार पर देश में लोगों के सामने इसकी रिपोर्ट आनी चाहिए।
भारत सरकार ने 1989 के बाद महिलाओं की स्थिति के व्यापक अध्ययन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी, जो महिलाओं की आवश्यकता पर आधारित सामयिक आकलन पर नीतिगत पहल के लिए 27 फरवरी 2012 को इस मंत्रालय के प्रस्ताव पर आधारित थी, जिसमें अध्यक्ष, सदस्य सचिव और 17 सदस्य शामिल हैं। अध्यक्ष, सदस्य सचिव और समिति के तीन सदस्यों के त्यागपत्र के बाद इस उच्चाधिकार समिति को 21 मई 2013 को पुनर्गठित किया गया। डॉ पैम राजपूत को इसका अध्यक्ष बनाया गया और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को सदस्य सचिव। समिति की सदस्य हैं-डॉ स्म़ृति कौर, रजिया ए आर पटेल, डॉ मृदुल एआपेन, मनीरा पिंटो, मोनीषा बहन, कविता कुरूगांती, प्रोफेसर दर्शिनी महादेविया, डॉ अमिता बाभिष्कर, बिंदु अनंथ, रीता सरीन, डॉ रवि वर्मा, डॉ आर गोविंदा। समिति 1989 के बाद महिलाओं की स्थिति के बारे में व्यापक सर्वेक्षण करेगी। यह भारत में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और वैधानिक स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करेगी। इसकी रिपोर्ट दो वर्ष के भीतर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी जाएगी।