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Monday 10 February 2014 10:48:29 PM
नई दिल्ली। हिंदुस्तान की हालिया राजनीति के नए 'अवतार' और भाग्य से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने 'आप' पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए यह देश शायद पलक-पांवडे़ बिछा देता और जैसा माहौल है, उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि उनको तीसरे मोर्चे के रास्ते भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी देखा जाता, लेकिन राजधानी के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी निराशजनक कार्यप्रणाली, राजनीतिक उदंडता और जनसामान्य के गंभीर मुददों पर जल्दी ही विश्वास खो देने से न केवल उनकी ऐसी भावी संभावनाओं पर विराम लग गया है, अपितु उनका आगे राजनीति में चलना भी मुश्किल हो गया है। अरविंद केजरीवाल जान गए हैं कि राजनीतिक टकराव का शोर मचाते हुए इस 'वायदा संकट' से बाहर निकलने का एक मात्र रास्ता है। जनता की अपेक्षाएं हनुमान की पूंछ की सदृश्य हैं, जितनी बढ़ाओगे, उतनी बढ़ेगी, उन्होंने जनता से ऐसे वादे किए हुए हैं, जिनका विवाद बढ़ने से घमासान ही होगा, जिसे वे दिल्ली की जनता की ओर धकेल देंगे, किंतु केजरीवाल की समझ में अब यह बात आने वाली नहीं है कि उन्होंने अपनी विफलता को ढकने के लिए फिर से जिस जन लोकपाल और अन्ना हजारे का कार्ड चला है, वह दिल्ली की जनता में 'आप' के खोए विश्वास को शायद ही लौटा सके।
दिल्ली विधानसभा में 'आप' सरकार का बहुमत साबित करने के दौरान विधानसभा में उठी देश द्रोही आवाज़ों और दिल्ली के लोगों से झूठे वादों के कारण आज अरविंद केजरीवाल बैकफुट पर हैं। दिल्ली विधानसभा में कश्मीर में जनमत संग्रह और बटाला हाउस पर 'आप' के लोगों के बयानों से जनता, मीडिया और सोशल मीडिया का भी रूख बदला हुआ है, अरविंद केजरीवाल जिसकी आंखों के तारे हुआ करते थे। देश के राजनेताओं का रातों-रात तख्ता पलटने और भारत को हरिश्चंद्रों का देश बनाने चले अरविंद केजरीवाल स्वयं कितने ईमानदार और प्रचंड शासनकर्ता हैं, यह देशवासियों को समझने में देर नहीं लगी है। जिस व्यक्ति को मुख्यमंत्री जैसे पद पर आसीन रहकर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए संविधान के खिलाफ जाकर धरना देना पड़े, क्या आप उसे शासनकर्ता कहेंगे? जिसने चुनाव आयोग को अपनी सही सूचनाएं देने में गुमराह किया हो, वह ईमानदार है? क्या 'आप' को दिल्ली की जनता ने कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए जनादेश दिया था, जो 'आप' के नेता दिल्ली में कश्मीर का मामला उठाते हुए अलगाववादियों के साथ खड़े हैं? 'आप' के पास इतना चंदा कहां से आया? देश की विघटनकारी ताकतों से कश्मीर और बटाला हाउस मुठभेड़ जैसे मामले उछालने के लिए करोड़ों रूपए फंड लेने की जो बात कही जा रही है, उसमें दम है और हो सकता है कि 'आप' के नेता प्रशांत भूषण कश्मीर में जनमत संग्रह की बात उछालकर चंदे के एहसान को हल्का कर रहे हों। इस मुददे पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी का क्या अर्थ निकाला जाए? दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता डॉ हर्षवर्धन ने अरविंद सरकार से सदन में माफी मांगने को कहा तो भी 'आप' के नेताओं की जुबान नहीं खुली, यहां तक कि जिस कांग्रेस का 'आप' की सरकार को समर्थन है, वह कांग्रेस भी कुछ नहीं बोली। 'आप' को समर्थन में बड़ा आदर्शवादी भाषण देने वाले कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह लवली भी इस मुददे को डकार गए और भाजपा पर ही हमला करने लगे।
यह बात सही है कि देश की जनता भ्रष्टाचारियों से तंग आ चुकी है और उसके भूख, पानी, बिजली, घर और सुरक्षा ऐसे मुददे हैं, जिनपर कांग्रेस और भाजपा ने भी उसे खूब रूलाया है। वह परिवर्तन चाहती है। वह चाहती है कि कोई ऐसी सरकार आए जो उसकी बुनियादी सुविधाओं का ख्याल रखे, मगर नेतानगरी उसे बार-बार छलती है, सब्जबाग दिखाती है और सत्ता पाकर पांच साल के सुख में चली जाती है। यूं तो जनता के जीवन को मंगलमय बनाने के लिए कई चेहरे अवतरित हुए, लेकिन ऐसे चेहरे कम ही देखने को मिले हैं, जिनपर तुरंत यकीन करके जनता उनके पीछे हो ली। अरविंद केजरीवाल भी उनमें से एक हैं, जिन्हें यह सौभाग्य हासिल हुआ कि दिल्ली की जनता ने सबको छोड़कर उन पर दांव लगाया और उम्मीद से भी ज्यादा उनकी पार्टी 'आप' को सफलता दी। अरविंद केजरीवाल को ईश्वर ने अभिव्यक्ति की आज़ादी और शैली बख्शी, जिससे उन्होंने आम आदमी को इतना प्रभावित किया कि आम जनता ने दिल्ली में कांग्रेस के पंद्रह साल के शासन को उखाड़ दिया और अरविंद केजरीवाल को एक अवसर दे दिया। 'आप' ने अपने प्रचार में जो वादे किए, वो ऐसे थे कि जनता का प्रभावित होना भी स्वाभाविक था। अब जब उन वादों की पोल खुल रही है तो 'आप' के नेता बौखलाकर उन मामलों को उछालने में लग गए हैं, जो दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं। सवाल है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार के रहते शीला दीक्षित दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन नहीं करा सकीं तो कांग्रेस की बैसाखी लगी 'आप' की सरकार क्या करा पाएगी? केजरीवाल जिन मुद्दों में टांग अड़ा रहे हैं, यह उनकी दिल्ली की जनता का ध्यान बंटाने की कोशिश मानी जा रही है। भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर देश के राजनेताओं का नाम लेकर उन्हें चुनौती देना, एक राजनीतिक टकराव को जन्म देता है। अरविंद केजरीवाल के सामने इस तरह जनता से अपना मुंह छिपाने के अलावा क्या और कोई रास्ता बचा है?
जन लोकपाल कानून विवाद पर अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि कांग्रेस 'आप' सरकार से समर्थन वापस ले-ले, ताकि 'आप' सरकार गिरे और फिर वे दिल्ली और देश में यह कहते हुए निकलें कि कांग्रेस ने 'आप' की सरकार नहीं चलने दी। कांग्रेस भी कम चालाक नहीं है और वह भी 'आप' को तब तक समर्थन जारी रखेगी, जबतक केजरीवाल सरकार के खिलाफ गुस्से में दिल्ली की जनता सड़कों पर न उतर जाए। केजरीवाल 'आप' के पक्ष में दिल्ली की जनता में फिर से जिस क्रांति की उम्मीद कर रहे हैं, वह अब शायद ही लौटे। 'आप' लोकसभा चुनाव की भी तैयारी में है और उसकी प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ 'आप' का प्रत्याशी उतारने की तैयारी भी है। 'आप' का लोकसभा प्रत्याशी बनने के लिए कुछ जगहों पर उत्सुकता और सक्रियता भी देखी जा रही है, उन क्षेत्रों में 'आप' की तैयारी कुछ खास है, जहां दूसरों के पैसे से प्रायोजित 'आप' की चुनावी नौटंकी देखने को मिलेगी। 'आप' का प्रत्याशी एक तरह से वोट कटवा होगा, जो चुनाव में सक्रिय न रहने के लिए दूसरे प्रबल प्रत्याशी से सौदेबाज़ी करेगा। उत्तराखंड में 'आप' के अनेक लोग इसी मिशन पर चलते दिख रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के कई नायक ऐसे बताए जाते हैं, जिनका इतिहास ही ब्लैकमेलिंग का है। 'आप' के जिन नमूनों को प्रमुख राजनेताओं के विरुद्ध चुनाव में उतारा जाएगा, 'आप' उनके नाम और उनका इतिहास सुनकर अंदाजा लगा सकते हैं कि 'आप' का असली मकसद क्या है और भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर वह क्या कर रही है। अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल को एक समय सलाह दी थी कि वह अभी लोकसभा चुनाव के चक्कर में न पड़ें और दिल्ली में जनता के बीच 'आप' की सरकार के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करें, किंतु अरविंद केजरीवाल ने तब अपने गुरू की सलाह को हवा में उड़ा दिया था।
केजरीवाल चारों तरफ से फंसे हैं, उन्हें अन्ना याद आ रहे हैं। अन्ना 'आप' सरकार के संकट समाधान में कितने सहायक होंगे, यह समय ही बताएगा और वह समय है-लोकसभा चुनाव। इसमें 'आप' से जनता के भी सवाल होंगे कि कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग किससे प्रायोजित है? दिल्ली की जनता ने 'आप' को क्या कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए जनादेश दिया है? क्या दिल्ली की जनता बिजली पानी या घर के बजाए देश के टुकड़े-टुकड़े चाहती है? अरविंद केजरीवाल क्या आम आदमी हैं? मनीष सिसौदिया आम आदमी हैं? प्रशांत भूषण क्या आम आदमी हैं? आशुतोष क्या आम आदमी हैं? कुमार विश्वास क्या आम आदमी हैं? इन नेताओं के बयान दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग को भी निशाना बना रहे हैं। दिल्ली में आप के नेताओं ने शासन व्यवस्था को एक मज़ाक बना दिया है। अरविंद केजरीवाल से एक आदर्श शासन की अपेक्षा की जा रही थी, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने घेर लिया है। 'आप' में असंतोष सामने आ चुका है, उसके समर्थक विधायक खुली बग़ावत कर रहे हैं, जिससे यह बात लगभग साफ होती जा रही है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार शायद ही ज्यादा चल पाए। देखिए आगे और क्या होता है।