स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 12 February 2014 12:29:08 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्रीय सतर्कता आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह में कहा है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग भ्रष्टाचार से लड़ने और सरकारी कर्मचारियों के काम और आचरण में इमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत ढांचे का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसकी स्थापना 50 वर्ष पहले की गई थी और इसने तभी से देश की विशिष्टता के साथ सेवा की है। प्रधानमंत्री का कहना है कि जरूरी नीति निर्माण और कार्यान्वयन से संबंधित जटिल निर्णयों का विश्लेषण और छानबीन करने में उच्च श्रेणी की विशेषज्ञता और दक्षता आवश्यक है, इसलिए सीवीसी और सीबीआई जैसी एजेंसियों को विविध क्षेत्रों में अधिक पेशेवर विशेषज्ञों की आवश्यकता है, ऐसी एजेंसियां अन्य विशेषज्ञ संगठनों के अधिकारी शामिल करके अच्छा कार्य कर सकेंगी। मनमोहन सिंह ने कहा कि जांच एजेंसियों को आपराधिक मामलों की जांच में हमेशा ही पूर्ण स्वायत्तता मिली है, सरकार सीबीआई को भी बाहरी प्रभावों से बचाने के लिए और अधिक कार्य करने की इच्छुक है।
पिछले 50 वर्ष में सीवीसी के काम के दायरे और कार्य जटिलता में वृद्धि देखी गई है, इसे जब एक कार्यकारी आदेश से 1964 में स्थापित किया गया था तो इससे केंद्र सरकार में सभी सतर्कता गतिविधियों की निगरानी करने और केंद्र सरकार के संगठनों की योजना बनाने, कार्य निष्पादन करने, समीक्षा करने और अपने सतर्कता कार्य में सुधार लाने के बारे में सलाह देने की उम्मीद की गई थी, बाद में विनीत नारायण मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुपालन में इसे सांविधिक दर्जा दिया गया और सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में जांच की निगरानी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की सीबीआई के निदेशक और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के चयन में मुख्य भूमिका होती है, अभी हाल में भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सीवीसी को सौंपी गई है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम में लोकपाल द्वारा इसे सौंपे गए मामलों में जांच करने और झूठी और दुखदायी शिकायतें करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। लोकपाल द्वारा केंद्र सरकार के ग्रुप-बी, सी और डी कर्मचारियों के भेजे गए शिकायती मामलों के कारण सीवीसी का अधिकार क्षेत्र बढ़ गया है। वर्षों से सीवीसी के कार्य और अधिकार क्षेत्र में वृद्धि होने से जटिलता में भी वृद्धि हुई है, क्योंकि सार्वजनिक नीति तैयार करना और उसे लागू करना समय के साथ-साथ और अधिक जटिल हो गया है।
वास्तव में केवल सीवीसी में ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए स्थापित पूरे संस्थागत ढांचे में ही समय के साथ-साथ परिवर्तन हुआ है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों में बढ़ी है। प्रशासन में ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नये नियम बनाए गए हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम और लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अनेक नए नियम संसद के विचाराधीन हैं। वस्तुओं की समयबद्ध डिलीवरी और सेवाएं तथा उनकी शिकायतों का निवारण विधेयक, सार्वजनिक खरीद विधेयक और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन करने से संबंधित विधेयक इनमें शामिल हैं, यह विधायी पहल इस दिशा में उठाए गए प्रशासनिक कदम हैं। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक उपयोग ने पारदर्शिता बढ़ाने और भ्रष्टाचार प्रक्रिया के अवसर घटाने में बहुत मदद की है। पिछले कुछ वर्षों में देश में भ्रष्टाचार पर बहुत जोरदार बहस हुई है, जिसमें सिविल सोसायटी और सोशल मीडिया की सक्रिय भागीदारी रही है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इस बहस से काफी भलाई हुई है, इससे न केवल जनता में अपने अधिकारों और सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ी है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों को यह भी महसूस हुआ है कि लोगों को हमसे बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं।
स्वर्ण जयंती समारोह की कार्यसूची में इन सब गतिविधियों को शामिल किया गया है। वास्तव में यह विस्तृत कार्यसूची है, जिसमें भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कानूनी और संस्थागत ढांचे की प्रभावपूर्णता से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग, जांच एजेंसियों की भूमिका से मीडिया और सिविल सोसायटी की भूमिका, जांच एजेंसियों की स्वायत्तता और जवाबदेही से चुनाव सुधार और राजनीतिक जवाबदेही शामिल हैं। यह सम्मेलन विविध क्षेत्रों, सरकारी सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों, कानून और अकादमिक क्षेत्रों से विशिष्ट महिलाओं और पुरूषों को एक साथ भी लाया है, वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में प्रयासों को मजबूती प्रदान करने में योगदान देंगे। अपनी ओर से कुछ मुद्दों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र का मुख्य उद्देश्य सुशासन की प्रक्रिया और सेवाएं प्रदान करने के कार्य में सुधार लाने हेतु अपना योगदान देना है और ऐसा तभी हो सकता है, जब हम किसी मुख्य और अभिनव निर्णय को प्रोत्साहित करें, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इमानदार अधिकारी को अच्छे उद्देश्य वाले निर्णय लेते समय होने वाली गलतियों के लिए परेशान न किया जाए। सीवीसी की स्थापना के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह पाया था कि यह आयोग इमानदार मनुष्य का एक निडर चैंपियन और भ्रष्टाचारी अधिकारियों के लिए आतंक का स्रोत है, इसलिए हमें भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इमानदार व्यक्ति ही सर्वोत्तम हो, ऐसा न होने वाले परिदृश्य में निर्णय लेने वाला पूरी तरह प्रभावित होगा और सुशासन की प्रक्रिया में सुधार लाने की बजाए हम उन्हें दमघोंटू बना देंगे।
सीवीसी जैसी एजेंसियों को आवश्यकता के समय सावधान रहने और कार्य में गतिशीलता की आवश्यकता के मध्य संतुलन कायम करना है, अनुशासनिक कार्रवाई और सतर्कता क्लीरेंस प्रदान करने जैसे मामले समय पर निपटाए जाने चाहिएं, इनमें हुई अत्यधिक देरी ऐसी कार्रवाई को अर्थहीन बना देती हैं। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार पर सार्वजनिक बहस में संयम की आवश्यकता है, मगर पिछले कुछ वर्षों में, भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों पर बहुत जोरदार सार्वजनिक बहस होते देखा गया है, जिनमें अनाप-शनाप आरोप लगाए गए हैं, ऐसे मामलों में सूचनाप्रद विचार-विमर्श निश्चित रूप से वांछनीय है, लेकिन हमने सार्वजनिक नीति के छोटे-छोटे मुद्दों को जटिल मुद्दे बनते देखा है, इनमें लिए गए निर्णयों की अनुचित निंदा और ऐसे निर्णय लेने वालों के ऊपर आरोप और दुर्भावना के लांछन लगते हैं, मैं इमानदारी से ऐसी स्थिति को बदलने की जरूरत महसूस करता हूं।