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Thursday 03 January 2013 01:45:10 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ सी रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट हाल ही में प्रधानमंत्री को प्रस्तुत की गई है और इसे पब्लिक डोमेन में डाल दिया गया है। उत्पादन में साझेदारी संबंधी संविदा के तंत्र पर यह रिपोर्ट वेबसाइट (www.eac.gov.in) पर उपलब्ध है। इस समिति के सदस्य थे-न्यायमूर्ति जगनाधा राव, वीके चतुर्वेदी, प्रोफेसर रामप्रसाद सेन गुप्ता, जेएम मोस्कर और जोमैन थॉमस। डॉ केपी कृष्णन समिति के आयोजक थे और गिरिधर अरमाने सचिव। इस रिपोर्ट की खास-खास सिफ़ारिशें इस प्रकार हैं-
मौजूदा उत्पादन साझेदारी संविदा (पीएससी) के अंतर्गत ठेकेदार को अपनी पूरी लागत वसूल करने की इजाजत है। सरकार को ठेकेदार को प्राप्त होने वाले राजस्व की अदायगी से पहले वह ऐसा कर सकता है, बशर्ते कि व्यापारिक स्तर पर तेल की खोज हो जाये और उससे उत्पादन होने लगे। शेष राजस्व का कुछ हिस्सा ठेकेदार से सरकार ले सकती है। यह इस बात पर आधारित होगा कि हर साल कितना निवेश किया गया है। ये ऐसे मापदंड हैं, जिनके बारे में बोली लगाई जा सकती है। खोज और विकास पर जितनी लागत आई है, उसके हिसाब से पूँजीनिवेश का अनुपात और संचयी सकल नकद राजस्व का अनुपात तय किया जाता है। जैसे-जैसे पूंजीनिवेश में वृद्धि होती है, उसके अनुसार ही सरकार का अंश बढ़ जाता है। ऐसा तब होता है जब संचयी लागत, संचयी आय से ज्यादा हो जाती है।
इस व्यवस्था के अंतर्गत सरकार के लिए लागत की बारीकी से जांच महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि ठेकेदार के लिए उन लागतों को खर्च के रूप में लिखे जाने पर सरकार को प्रोत्साहन मिलता है, जो ठेकेदार की सही लागत नहीं दिखाती। इसे व्यापारिक फैसलों में ठेकेदार की दखलंदाजी माना जाता है, लेकिन सरकार और सीएजी की राय है कि यह जरूरी और वैध है। फैसले एक संयुक्त समिति मे किये जाते हैं, जिसे प्रबंधन समिति कहते हैं। इस समिति में सरकार और निजी पक्षकारों के प्रतिनिधि होते हैं। अत: फैसले लेने में देर लगती है और इससे ठेके के काम में बाधा पड़ती है। समिति ने भविष्य में तेल ब्लॉकों में खोज के लिए समय बढ़ाने की सिफारिश की है। यह सिफारिश भविष्य के सीमावर्ती, गहरे पानी (आफशोर यानि चार सौ मीटर से ज्यादा गहरे) और बहुत गहरे (आफशोर 1500 मीटर से ज्यादा गहरे) ब्लॉकों पर लागू होगी।
अनुभव के अनुसार लागत की वसूली समस्याओं की जड़ है, अत: प्रस्ताव है कि इसे समाप्त कर दिया जाये और लागत वसूल किये बिना ठेकेदार के साथ राजस्व की साझेदारी की जायेगी। इसका अंश प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए तय किया जायेगा। बोली प्रक्रिया ऐसी होगी कि बोलीदाता को उत्पादन के विभिन्न स्तरों के हिसाब से राजस्व अंश मिलेगा। ये बोलियां उत्पादन और मूल्य स्तर के अनुरूप होंगी। इस समिति ने सिफारिश की है कि कर अवकाश की अवधि बढ़ाकर सात वर्ष से दस वर्ष कर दिया जाए। यह शर्त सभी ब्लॉकों पर लागू होगी और उन कुंओं पर भी लागू होगी, जिनकी खुदाई 1500 मीटर या ज्यादा गहरी हो सकती है और जिन पर 150 मिलियन अमरीकी डॉलर तक का खर्च आ सकता है।
वर्तमान में संविदा प्रबंधन में अनुभव की जा रही समस्याओं के अलावा, समिति ने सुझाव दिया है कि तेल खोज और ब्लॉकों के विकास के लिए दो तंत्र अपनाये जाएं। नीति संबंधी मुद्दों के बारे में सुझाव दिया गया है कि एक अंतर मंत्रालय की समिति गठित की जाये जो नीति संबंधी समस्याएं सुलझाये। ठेकेदार द्वारा विलंब के मुद्दों को माफ करने के लिए मौजूदा सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति काम करती रहेगी। मामूली तकनीकी मुद्दों के लिए सचिवों की सशक्तीकृत वर्तमान समिति का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। यह समिति तेल खोज में विलंब को माफ कर सकेगी। पहले भी इस समिति को आर्थिक मामलों से संबद्ध मंत्रिमंडल की समिति के अनुमोदन से विलंब माफ करने का अधिकार था।
प्रस्तावित आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत लेखा-परीक्षा से संबंधित मुद्दे नहीं उठेंगे। इसके अलावा सीएजी से सलाह करके सिफारिश की गई है कि सीएजी को समय-समय पर ब्लॉकों की सूची उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे उन ब्लॉकों का चयन कर सके जिनकी सीधे तौर पर लेखा परीक्षा होगी। सीएजी के चयन का आधार उनकी वित्तीय क्षमता होगी। अन्य ब्लॉकों की लेखा परीक्षा समान्यत: सीएजी की सूची वाले लेखा परीक्षक करेंगे। फिलहाल एपीएम गैस होती है और इसकी कुछ मात्रा गैर एपीएम गैस होती है। गैस मूल्यांकन में सरकार के अंश तय करने की मुश्किल इसलिए आती है, क्योंकि गैस मूल्य एक जैसा नहीं होता। भारत में कुछ गैस लम्बे समय तक आयात करने के लिए किए गए ठेकों से मिलती है। कुछ गैस विदेशी बाजारों से आयात की जाती है। इसलिए इसके मूल्य में एकरूपता नहीं होती, लेकिन पुन: गैसीफिकेशन मूल सुविधा सेवाओं के चलते आयात सीमित होता है। घरेलू गैस को भी इधर-उधर ले जाने की पर्याप्त सुविधाएं नहीं है, जिससे घरेलू बाजार नहीं बन पाता।
उत्पादन साझेदारी संविदा तंत्र में आर्म्स लैंथ प्रायइसिंग और गैस प्रायसिंग के आधार पर जो भी फार्मूला तैयार किया जाये, उस पर सरकार से पहले अनुमोदन लेने की व्यवस्था है। ये प्रावधान भी प्राकृतिक गैस मूल्य निर्धारण नीति के अध्यधीन होगा। फिलहाल बाजार द्वारा तय की जाने वाली आर्म्स लैंथ प्राइस उपलब्ध नहीं है और अगले कुछ वर्षों तक इसके उपलब्ध न होने की संभावना को देखते हुए प्राकृतिक गैस की मूल्य निर्धारण संबंधी नीति का प्रस्ताव किया गया है। जिस फार्मूले का सुझाव दिया गया है वह भविष्य में किये जाने वाले मूल्य निर्धारण संबंधी फैसलों पर लागू होगा। पांच वर्ष बाद इसकी तब समीक्षा की जा सकती है, जब गैस ऑन गैस कंपीटिशन के सीधे आकलन के आधार पर मूल्य निर्धारण की संभावना बन जाती है।