स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 04 January 2013 06:44:37 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम का कहना है कि रोज़गार के अवसरों के सृजन में तेजी लाने के लिए निर्माता और सेवा क्षेत्र में ज्यादा निवेश की जरूरत है। नई दिल्ली में बजट पूर्व विभिन्न केंद्रीय मजदूर संघों के प्रतिनिधियों की एक बैठक में शुरूआती टिप्पणी करते हुए पी चिदंबरम ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि फिलहाल अर्थव्यवस्था एक मुश्किल दौर से गुजर रही है और इसके बाहरी कारण हैं, जिनसे चालू स्थिति से निपटने की तुरंत जरूरत है और इसके बाद हम तेज विकास की राह पकड़ेंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि हाल ही में निर्माता क्षेत्र में पूंजी निवेश में कमी आई जिसके परिणामस्वरूप रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित नहीं किये जा सके।
पी चिदंबरम ने कहा कि सरकार के विभिन्न कदमों के कारण पिछले कुछ महीनों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में निवेश का माहौल बदला है। ज्यादा पूंजी निवेश का परिणाम होता है, ज्यादा रोजगार के अवसर। उन्होंने कहा कि निर्माता क्षेत्र की तेजी बहाल करने में मजदूर संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इसका परिणाम होगा इस क्षेत्र में ज्यादा लोगों को रोज़गार। बैठक में वित्त मंत्रालय के दोनों राज्यमंत्री-एसएस पलानीमणिकम और नमो नारायण मीणा, वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसारथी शोम, वित्त सचिव आरएस गुजराल, वित्त सेवा एवं विनिवेश सचिव डीके मित्तल, राजस्व सचिव सुमित बोस, श्रम एवं रोजगार सचिव मृत्युंजय सारंगी, मुख्य आर्थिक सलाहकार डा रघुराम आर राजन तथा सीबीईसी अध्यक्ष जैसे वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
बैठक में 12 केंद्रीय मजदूर संघों के प्रतिनिधि आए। इनमें भारतीय मजदूर संघ, इंडियन ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आएटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन कोआर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एआईसीसीटयू), यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटक), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ), सेल्फ एमप्यायड वीमंस एसोसिएशन (सेवा) और नेशनल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (एनएफआईटीयू) शामिल हैं। इन सबने मिलकर वित्त मंत्री को एक संयुक्त ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने वर्ष 2013-14 के केंद्रीय बजट में शामिल करने के लिए प्रस्ताव दिये हैं, लेकिन एनएफआईटीयू इनमें शामिल नहीं था।
ज्ञापन में दिये गये प्रस्ताव मूल्य वृद्धि रोकने, जिंसों के व्यापार में अटकलबाजी बंद करने, सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने, आम आदमी पर करों का बोझ कम करने, अर्थव्यवस्था को गति देने, रोजगार सृजन वाली योजनाओं के लिए अधिक पूंजी निवेश करने, 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करने, कल्याणकारी योजनाओं में ज्यादा धन लगाने, सरकारी विभागों में भर्ती पर पाबंदी खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र और स्वायत्तशासी संस्थाओं में रोजगार के अवसर बढ़ाने, महात्मा गांधी नरेगा का कार्यक्षेत्र बढ़ाने, विद्या स्वयसेवकों, अतिथि अध्यापकों, शिक्षा मित्रों आदि की नौकरी नियमित करने और आशा जैसी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को वैधानिक न्यूनतम वेतन दिलाने तथा सामाजिक सुरक्षा आदि से संबंधित थे।
इसके अलावा ज्ञापन में लाभ अर्जित करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश पर रोक लगाने और बीमार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को फिर से लाभ कमाने के लिए बजट सहायता देने की बात भी कही गई। यूनियन ने मांग की कि एक प्रगतिशील कराधान व्यवस्था लागू की जाए और जिन लोगों पर बहुत ज्यादा टैक्स बकाया हैं, उनसे टैक्स वसूली के ठोस उपाय किये जाएं। ज्ञापन में अर्थव्यवस्था में काले धन का पता लगाने और बिना हिसाब-किताब वाला पैसा विदेश में सुरक्षित स्थानों पर जमा करने पर भी नियंत्रण की बात कही गई है। कुछ मजदूर संघों ने मांग की कि न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रति मास किया जाना चाहिए और पांच लाख से ज्यादा वेतन पाने वालों के मामले में आयकर की सीमा बढ़ा दी जानी चाहिए। कुछ मजदूर संघों ने संविदाकर्मियों को भी समान वेतन देने की मांग की और रिटायरमेंट की आयु बढ़ा देने को कहा। उनकी मांग थी कि पेंशन लाभ बढ़ाए जाने चाहिए, कृषि क्षेत्र में ज्यादा निवेश होना चाहिए और अन्य बातों के अलावा श्रम कानूनों पर कड़ाई से अमल किया जाना चाहिए।