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Wednesday 2 April 2014 03:34:27 PM
लखनऊ। श्रीरामस्वरूप मेमोरियल कॉलेज आफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट लखनऊ के एमबीए डिपार्टमेंट ने 'व्यावसायिक उद्यमशीलता' विषय पर कार्यशाला का 1 अप्रैल को आयोजन किया। कालेज के अधिशासी निदेशक पंकज अग्रवाल तथा डीन पूजा अग्रवाल ने द्वीप प्रज्जवलन कर कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। कालेज के निदेशक प्रोफेसर आरके जायसवाल ने कार्यशाला के मुख्य वक्ता प्रोफेसर जतिन श्रीवास्तव को पुष्पगुच्छ प्रदान करके उनका स्वागत किया।
अधिशासी निदेशक पंकज अग्रवाल ने इस अवसर पर कहा कि आज आवश्यकता है नए-नए उद्यमशील छात्र-छात्राओं के निर्माण की, जो भविष्य में ज्यादा से ज्यादा रोज़गार के अवसर सृजित करके देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे सकें। उन्होंने कहा कि ऐसे छात्र जो अपनी व्यावसायिक शिक्षा पूरी करके बाजार में रोज़गार के अवसर खोज रहे हैं, कहीं न कहीं अपनी योग्यता और क्षमता के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।
कार्यशाला के संयोजक प्रोफेसर मनीष श्रीवास्तव एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रगति मलिक ने कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कार्यशाला को चार भागों में विभाजित किया। प्रथम भाग में छात्र-छात्राओं को छोटे-छोटे समूह में बांटकर उन्हें एक समस्या की स्थिति को समझने और उसका समाधान करते हुए व्यावसायिक माडल का विकास करने को कहा गया, द्वितीय भाग में समस्या समाधान हेतु सभी अलग-अलग समूहों को संभावित समाधान उपलब्ध कराकर पुन: अंतिम उपाय सुझाने हेतु कार्य करने को कहा गया, तृतीय भाग में सभी समूह से अपने सुझाये मॉडल समाधान का आर्थिक व्यावहारिकता प्रस्तुत करने को कहा गया और चतुर्थ भाग में सभी समूह से अपने-अपने व्यावसायिक माडल के प्रस्तुतीकरण तथा आलोचनात्मक मूल्यांकन और सुझाव देने को कहा गया।
प्रोफेसर जतिन श्रीवास्तव ने कहा कि व्यावसायिक उद्यमिता क्षमता और लाभ बनाने के क्रम में अपने जोखिम के विकास, संगठित और प्रबंधित करने की इच्छा, एक नये व्यवसाय के साथ शुरू होती है। एसोसिएट डायरेक्टर प्रोफेसर एमबी जौहरी ने कहा कि उद्यमशीलता की भावना नई तकनीकी खोज और जोखिम लेने की विशेषता से युक्त होती है और यही विशेषता तेजी से बदलते प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार में सफल होने के लिए एक देश की क्षमता का अनिवार्य हिस्सा होती है। कार्यशाला के प्रतिभागियों, विषय-विशेषज्ञों और मुख्य वक्ता का प्रोफेसर बॉबी बी लायल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर विभाग के सभी आचार्यों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।