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Thursday 19 June 2014 07:47:01 PM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन अखिलेश यादव सरकार ने विपक्ष के भारी आक्रोश का सामना किया। विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय सदन में इस आक्रोश को शांत कर सदस्यों को अपने स्थान पर वापस भेजने में जब पूरी तरह नाकाम हुए तो उन्होंने कल सवेरे ग्यारह बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। अपनी नाकामियों को बेशर्मी से छिपाती और दबाती अखिलेश सरकार की कार्यप्रणाली के खिलाफ विपक्ष में इतना भारी गुस्सा था कि उसने विधानसभा अध्यक्ष की एक भी नहीं सुनी और वे सदन के शुरू होने से सदन के स्थगित होने तक वैल में सरकार विरोधी बैनर हाथ में लिए और नारे लिखी टोपी लगाए लगातार सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। हद हो जाने पर विधानसभा अध्यक्ष ने बारह बजे तक के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी और जब बारह बजे कार्यवाही शुरू हुई तो सदस्यों ने फिर वही हंगामा शुरू कर दिया, तब अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर देनी पड़ी।
विधानसभा के इस बजट सत्र में जो होने की उम्मीद थी, वैसा ही हुआ। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की भारी पराजय के बाद और राज्य में अराजकता, बदतर कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर सरकार का विधानसभा में भारी विरोध होगा, इसकी सबको आशा थी। विपक्ष चाहता था कि विधानसभा अध्यक्ष समस्त कार्य रोक कर नियम 311 में चर्चा करा कर मतदान कराएं, जिसके लिए अध्यक्ष तैयार नहीं थे। विधानसभा अध्यक्ष ने विपक्ष की मांग खारिज कर दी और नियम 356 में चर्चा स्वीकार कर ली। इससे पहले जैसे ही सत्र का समय हुआ, भारतीय जनता पार्टी के सदस्य, अध्यक्ष विधानसभा के मंडप में प्रवेश द्वार को ही घेरकर धरने पर बैठ गए, जिससे विधानसभा अध्यक्ष का मार्ग अवरूद्ध हो गया। उन्हें अपने आसन तक पहुंचने के लिए मुख्यमंत्री के सदन में प्रवेश के परंपरागत द्वार से आना पड़ा। विधानसभा अध्यक्ष को भाजपा सदस्यों ने उनके मंडप के प्रवेश द्वार से नहीं आने दिया। विधानसभा में वंदेमातरम् होते ही बसपा, कांग्रेस, रालोद के सदस्यों ने अपनी जेब से बैनर और टोपियां निकाल लीं और उन्हें लहराते हुए वैल में आ गए। विधानसभा अध्यक्ष का प्रवेश द्वार घेरे बैठे भाजपा सदस्य भी वंदेमातरम् के बाद भारत माता की जय बोलते हुए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सदन में आ गए, जिससे नारेबाजी और ज्यादा जोर पकड़ गई।
विधानसभा अध्यक्ष ने सदस्यों को अपनी सीट पर बैठने लिए बार-बार अनुरोध किया, लेकिन सदस्य नहीं माने। नारेबाजी जारी रही। संसदीय कार्य मंत्री मोहम्मद आजम खां ने अध्यक्ष ने अनुरोध किया कि सदन की कार्रवाई स्थगित नहीं हो, किंतु परिस्थितियां इतनी दबाव में थीं कि अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी ही पड़ी। सदस्यों को समझाते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदस्य विधानसभा को हाईजेक करना चाहते हैं, भाजपा सदस्यों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि गेट पर धरना देने की परंपरा नहीं है, आप अलोकतांत्रिक हैं और आपके हाथों में विधानसभा गिरवी नहीं रहेगी। सदस्यों को अपनी सीट पर बैठने का अनुरोध करते हुए उन्होंने फिर कहा कि भाजपा सदस्यों ने उन्हें गेट पर रोका, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था, ये आचरण उचित नहीं था, आप धीरे-धीरे तानाशाही की तरफ बढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे उनकी बात सुनेंगे, लेकिन सभी सदस्यों का हंगामा नहीं रुका। कार्यवाही स्थगित होने के बाद भाजपा के सदस्य वैल में ही धरना देकर बैठ गए, बाकी दलों के सदस्य अपनी सीट पर पहुंच तो गए, किंतु जैसे ही दोबारा सदन की कार्यवाही शुरू हुई, फिर वही नारेबाजी और हंगामा शुरू हो गया। इस कारण अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही कल ग्यारह बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
विधानसभा मंडप में सदस्यों ने सरकार के खिलाफ जो नारेबाजी के बैनर लहराए, उनमें लिखा था-गुंडे माफिया सरकार चला रहे हैं, अखिलेश सरकार बर्खास्त करो, बिजली संकट दूर करो, बलात्कारियों से निजात दिलाओ, गन्ने का भुगतान करो, कानून व्यवस्था ठीक करो, स्थानांतरण उद्योग बंद करो, सपा सरकार शर्म करो। एक तरफ सदस्य नारेबाजी कर रहे थे और दूसरी तरफ सपा के सदस्यों ने हंगामे का लाभ उठाते हुए सदन में मौजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी चिट्ठियां और काम थमाने शुरू कर दिए। सदन में अध्यक्ष के अनुशासन के सामने किसी भी सदस्य की सदन की कार्यवाही के दौरान अपना स्थान छोड़ कर मुख्यमंत्री के पास आने की हिम्मत नहीं है, किंतु आज सपा के सदस्यों ने भी इस अनुशासन को तोड़ते हुए मुख्यमंत्री को अपने कागज देने की होड़ लगा दी। विधानसभा सत्र का पहला दिन इस प्रकार हंगामे और कोई कामकाज नहीं होने की भेंट चढ़ा। समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव में जिस शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा है, उसे देखते हुए आगे भी नहीं लगता है कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सकेगी। विधानसभा सत्र इस बार लंबा चलने की उम्मीद है। विधानसभा अध्यक्ष के सामने यह बड़ी चुनौती है कि बदली हुई परिस्थितियों में वे सदन को कुशलता पूर्वक चला ले जाएं।