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कुंभ मेले को इकोफ्रेंडली बनाएं-आई रीड

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Sunday 13 January 2013 08:07:33 AM

लखनऊ। लखनऊ में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था आई रीड भारत ने सदी के सबसे बड़े मानव समागम कुंभ मेले को ‘इकोफ्रेंडली कुंभ मेला’ घोषित करने की मांग की है, क्योंकि मेले के माध्यम से करोड़ों लोगों तक पर्यावरण को बचाने का संदेश पहुंचेगा। आई रीड भारत के संस्थापक अध्यक्ष चंद्र कुमार छाबड़ा एवं निदेशक डॉ अर्चना ने कहा कि कुंभ मेला क्षेत्र को पालीथीन फ्री जोन तो सरकार ने घोषित किया है, लेकिन यह काफी नहीं है, क्योंकि करोड़ों लोगों के इस महाकुंभ में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली तमाम वस्तुओं का बड़े पैमाने पर प्रयोग होगा, जिसको रोकना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि कुंभ मेला क्षेत्र को ‘पर्यावरण मित्र’ या इकोफ्रेंडली कुंभ घोषित करने से करोड़ों लोगो तक पर्यावरण बचाने में आम जन की भूमिका का संदेश व्यापक रूप में पहुंचेगा, इस महा आयोजन में इस चर्चा का होना ही बड़ी उपलब्धी होगी। डॉ अर्चना ने कहा कि जहां हम पर्यावरण बचाने के गंभीर सवाल पर आयोजित कार्यक्रमों में भरसक कोशिश के बाद भी कुछ हजार लोगों को इकट्ठा कर पाते हैं, वहीं कुंभ मेले में मौजूद, लाखों लोगों तक पर्यावरण के सवाल पर लाखों लोगो को प्रभावी रूप से जागरूक कर सकते हैं, शर्त यह है कि हमारे प्रयास ईमानदार और व्यापक हों।
डॉ अर्चना ने बताया कि ‘कुंभ मेले’ को इकोफ्रेंडली बनाने के लिए एक ज्ञापन मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव को भेजा गया है। ज्ञापन में मांग है कि पूरे कुंभ मेले को इकोफ्रेंडली घोषित किया जाए, मेले की समस्त प्रचार सामग्री बैनर पोस्टर, होल्डिंग टिकट आदि सभी पर पर्यावरण मित्र मेले का संदेश हो तथा पूरे मेला क्षेत्र में कोई भी पालीथीन, प्लास्टिक का प्रयोग प्रतिबंधित रहे, विकल्प के रूप में कपड़े, जूट, दोने, कुल्हड़, पत्तल आदि के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाए तथा यह सब कम दरों पर मेले में उपलब्ध रहे। संगम में स्नान तथा कपड़े धोने में कास्टिक, डीटरजेंट आदि के प्रयोग के स्थान पर नीम, तुलसी, मुल्तानी मिट्टी आदि से बने इकोफ्रेंडली साबुन के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
चंद्र कुमार छाबड़ा ने कहा कि प्रदेश में प्रदूषण की मार झेल रही नदियों की स्थिति काफी खराब है और इनके प्रदूषण में जहां फैक्ट्रियों आदि से निकलने वाला गंदा पानी जिम्मेदार है, वहींपूजा-पाठ के बाद पूजन सामग्री को नदियों में डालने की एक पुरानी परंपरा भी जिम्मेदार है। मेले में संत सम्मेलन में इसकी व्यापक चर्चा तथा जन समुदाय से नदियों को प्रदूषित करने वाले कारकों को रोकने की अपील से व्यापक परिवर्तन आने की उम्मीद है।

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