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Monday 9 June 2014 12:44:03 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने साहित्य, कला और सामाजिक जागरूकता विषय पर ख्वाजा अहमद अब्बास शताब्दी व्याख्यान देते हुए कहा है कि ख्वाजा अहमद अब्बास ने पत्रकार, लघु कहानी लेखक, उपन्यास लेखक, फिल्म आलोचक और फिल्म आलेख लेखन के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास की शताब्दी के आयोजन को अगली पीढ़ी के लिए हमारी परंपराओं के श्रेष्ठ और नेक मूल्यों के प्रसार के प्रति हमारे सामाजिक दायित्व के रूप में देखा जाना चाहिए, आधुनिक भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को भुलाया नहीं जा सकता, वह खुद को आम आदमी मानते थे, लेकिन वह साहित्य के क्षेत्र की प्रमुख हस्ती थे, वह अपने आपको विचारों का संचारक कहा करते थे।
ख्वाजा अहमद अब्बास भारतीय नव वास्तविक सिनेमा के अग्रणियों में से एक थे और उन्होंने नीचा नगर, जागते रहो, धरती के लाल, आवारा, श्री चार सौ बीस, मेरा नाम जोकर, बॉबी और हिना जैसी फिल्में लिखीं। उन्होंने कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास की ओर से उच्चतम न्यायालय में फिल्मों को प्रदर्शन से पहले सेंसर किए जाने का मुद्दा उठाते हुए जोर देकर कहा था कि यह विचारों की अभिव्यक्ति के विरूद्ध है। उनकी तरफ से दलील देते हुए यह भी कहा गया कि सेंसरशिप के नियम अस्पष्ट और मनमाने हैं, तब प्रधान न्यायाधीश एम हिदायतुल्ला की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि सिनेमा को कला और अभिव्यक्ति के अन्य स्वरूपों से अलग रखा जाना चाहिए। पीठ ने व्यवस्था दी कि सुनवाई के दौरान सोलिस्टर जनरल के स्पष्टीकरण और आश्वासन तथा सरकार द्वारा स्वीकृत प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा से सेंसरशिप हमारे मूल कानून के अनुरूप बन जाएगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपने जीवन और कार्य में आधुनिक और खुला दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को स्पष्ट किया और इसका अपने जीवन और कार्य में जश्न मनाया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास की आत्म कथा में एक रेल गाड़ी में यात्रा करते हुए तीन गीत-जन गण मन, सारे जहां से अच्छा और देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है, गाते हुए उनकी फिल्म यात्रा का अनूठा वर्णन है।