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Saturday 4 October 2014 03:43:59 AM
नई दिल्ली। कुछ विद्वान पूरा का पूरा भक्ति काव्य आधुनिकता के सांचे में बदल देना चाहते हैं, जबकि भक्ति काव्य की विशेषता यह है कि उसमे आधुनिक भाव बोध से मेल वाली बहुत सारी बातें हैं पर सारा का सारा भक्ति काल आधुनिक नहीं हो सकता, किसी भी रूप में नहीं। सुपरिचित आलोचक डॉ जीवन सिंह ने हिंदू कालेज में भक्ति कविता की प्रासंगिकता विषय पर दीपक सिंहा स्मृति व्याख्यान माला में कहा कि भक्तिकाल की विशेषता संगीत, कला और स्थापत्य को भी मज़बूत विरासत देने में है, वह केवल भजन कीर्तन नहीं है, उसने इन कलाओं-स्थापत्यों को पुनः संस्कारित किया और इसी काल में शास्त्रीय संगीत श्रेष्ठ ध्रुपद को नई ऊंचाई मिली।
डॉ जीवन सिंह ने कहा कि भक्ति काव्य में जो अनुराग है, वह मनुष्य और मानव समाज के प्रति है, ईश्वर के प्रति अनुराग भाव की भूमिका अपेक्षाकृत कम है। भाषा के सवाल पर उन्होंने कहा कि मौलिकता सदैव अपनी भाषा में विकसित होती है और आश्चर्य नहीं कि भक्तिकाल के कवियों का मुख्य अलंकार सहजयोक्ति है। तुलसीदास की कविताओं को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कविता में जब कवि का त्रास व्यक्त होता है, तब वह सच्चाई के बेहद करीब चली जाती है, तुलसीदास का शास्त्रीय ज्ञान उनके जीवन-बोध में बाधा की तरह है, शास्त्र-सम्मत बात करने के चक्कर में उनके जीवन अनुभव की अभिव्यक्ति बाधित हो जाती है। वेद और लोक मार्ग के भेद को व्यक्त करते हुए डॉ जीवन सिंह का विश्लेषण है कि वेद के मार्ग पर जाने पर ही तुलसीदास की कविता पर सवाल खड़े होते हैं, आखिर में उन्होंने सूरदास की सामाजिक क्रांतिकारिता को सूरसागर के केवल पांच पदों के सहारे खोलने की बेजोड़ कोशिश की है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य गोपेश्वर सिंह ने व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए भक्तिकाव्य की शक्ति को रेखांकित किया और कहा कि गांधीजी आधुनिक भारत में भक्ति साहित्य के राजनीतिक भाष्य हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति काव्य स्वार्थ के धरातल से उठाकर मनुष्य को उदात्त बनाता है, आचरण के द्वैत से रहित भक्ति कविता को प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह ने नई मनुष्यता की प्रस्तावना करने वाला साहित्य बताया। उन्होंने कहा कि विश्वभर में अकेली भक्ति कविता है, जिसे ईश्वर की वाणी का दर्जा दिया गया है और इस ऊंचाई पर वह कोरी धार्मिकता से रहित हो जाती है। हिंदू कालेज के डॉ रामेश्वर राय ने दीपक सिंहा को याद करते हुए कहा कि वे ऐसे अध्यापक थे, जो अध्यापन कार्य को गहरी निष्ठा से देखते थे। हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ पल्लव ने अतिथियों का स्वागत किया। संयोजन प्राची तिवारी ने किया तथा मीडिया प्रभारी रंजीत कुमार यादव ने वक्ताओं का परिचय दिया। आयोजन में हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ विमलेंदु तीर्थंकर, बड़ी संख्या में अध्यापक, विद्यार्थी, शोधार्थी भी उपस्थित थे। लघु पत्रिकाओं की प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसका विद्यार्थियों ने उत्साह से अवलोकन किया।