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Monday 21 January 2013 06:20:12 AM
चमोली। पिंडरगंगा को अविरल बहने दो, हमें सुरक्षित रहने दो, उर्जा जरुरत से नहीं इंकार, विनाशकारी परियोजना नहीं स्वीकार, पिंडरगंगगा चिरंजीव रहे के नारों के साथ पिडंरगंगा चिरंजीवी दिवस पर रैली निकाली गई। देवाल के पिंडरगंगा के पंचप्रयाग से जलकलश लिया गया और वहां से रैली पूरे देवाल बाजार में निकाली गई। एक वर्ष पूर्व 20 जनवरी 2012 को चेपड़ो गांव में धोखे से देवसारी बांध के लिए पर्यावरणीय जन सुनवाई पूरी की गई थी। भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन ने तय किया था कि इस दिन को पिंडरगंगा चिरंजीवी दिवस के रुप में मनाया जाए।
विभिन्न गांवो से पहुंचे महिला पुरुषों ने पिंडरगंगा को चिरंजीव बहते रहने देने का उद्घोष करते हुए बांध को नकारा। विभिन्न वक्ताओं दिनेश मिश्रा, मदन मिश्रा, महिपत सिंह कठैत, पुष्कर सिंह, शोभन सिंह खत्री, नर्मदा देवी, केडी मिश्रा, मुन्नी देवी, देवन राम, महेश राम, रामचंद्र, जशोदा देवी, भूपेन सिंह रावत, बृजमोहन शाह आदि ने मुख्यतः कहा कि पिंडरगंगा हमारे लिए है जीवन, संस्कृति, सभ्यता, रोजगार का स्थाई साधन, घाटी का सौंदर्य। यह हमारी धार्मिक आस्था का केंद्र बिंदु और संसार भर में पूज्य है। नंदा देवी की राज जात यात्रा मार्ग पिंडरगंगा के किनारे ही है। अभी राष्ट्रीय नदी गंगा की यही एक मात्र सहायिका है, जो कि निर्बाध रूपबह रही है। इसी सुंदर घाटी में बांधों की कतार लगने वाली है, जिसका घाटी के लोगों ने कड़ा विरोध किया है। जनता के संघर्ष का ही परिणाम था कि 3 बार जनसुनवाई हुई और तीनो बार घाटी ने बांध को नकारा और कंपनी की पोल खुल गई। प्रशासन की मिली भगत से चेपड़ो गांव में बैरीकेट लगाकर जनसुनवाई का नाटक किया गया। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने कंपनी का साथ दिया और जनता से डर कर लोगों का विरोध सुने बिना ही भाग गए।
बीस जनवरी, 2011 से आज तक बांध कंपनी के साथ तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल चल रहा है। पर्यावरण मंत्रालय ने अभी बांध की स्वीकृति नहीं दी। वन स्वीकृति के लिए आवश्यक कागजात भी जनता के सामने नही रखे। इसके बावजूद भी बांधों को लादने की कोशिशें जारी हैं। बांध कंपनी की कोशिश यही रही हैं कि किसी भी तरह से बिना किसी स्वीकृति के ही बांध के काम को आगे बढ़ाया जा, जिसके लिए कानूनों का नीतियों का उलंघन, थोड़े पैसों का लालच देना और दलाल खड़े करवाना इनकी कारगर नीतियां हैं।
बांध स्वीकृति को 2009 से आज तक जनता ने रोककर रखा है, जिसमें घाटी के गांव-गांव के मजदूर किसानों खासकर बहनों के संघर्ष की हिस्सेदारी रही है। बांध के लिए वन स्वीकृति की कोशिशें बांध कंपनी कर रही है, पर्यावरण स्वीकृति, वन स्वीकृति के बाद ही मिल पाएगी। बांध कंपनी की कोशिश यह भी है कि वो वन स्वीकृति के लिए आवश्यक कागजातों को सार्वजनिक ना करे। जनता ने इस बात को पकड़ा तो पर्यावरण मंत्रालय की वन समिति ने बांध कंपनी से कागजात को वेबसाइट पर रखने को कहा। यह खेल कई बार चला, किंतु किन्ही दबावों के चलते 22 दिसंबर 2012 को हुई वन समिति की बैठक में देवसारी बांध का विषय लाया गया, किंतु अभी वन स्वीकृति नहीं हुई है।
ज्ञातव्य है कि बांध के लिए आवश्यक है-पर्यावरण स्वीकृति, वन स्वीकृति चरण एक, वन स्वीकृति चरण दो, राज्य सरकार की वन स्वीकृति आदि स्वीकृतियां बांध कंपनी को अभी नहीं मिली हैं, जिनके बिना बांध नहीं बन सकता है। वन सलाहकार समिति ने 22 दिसंबर 2012 को कहा कि वो चतुर्वेदी समिति की रिर्पोट के बाद ही बांध कंपनी के प्रस्ताव पर विचार करेगी। सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो, यह तय करने के लिए योजना आयोग के सदस्य बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है, जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है।
पूरे उत्तराखंड में बांधों से विस्थापन, स्थाई रोज़गार का छिनना, पानी की समस्या, सब जारी है। चमोली में ही विष्णुगाड बांध से विस्थापित 30 परिवारों का पुनर्वास नहीं हो पाया है, इसलिए जीवन भर रोज-रोज की समस्याएं हम भी क्यों झेलें? क्यों नहीं जन आधारित घराट जैसी बिजली परियोजनाएं बनें, जिसमें स्थानीय लोगों को स्थाई रोज़गार भी मिले और पिंडरगंगा घाटी भी सुरक्षित रहे। चंद लोगों के अपने लालच के लिए पिंडर की जनता अपनी घाटी की तबाही नहीं देख सकती।