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Wednesday 19 November 2014 05:30:19 AM
अहमदाबाद। न्यायमूर्ति जीटी नानावती आयोग ने मंगलवार को गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी और ऐसा मालूम पड़ा है कि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इन दंगों में कोई भूमिका सिद्ध नहीं हुई है, लिहाजा न्यायमूर्ति जीटी नानावती ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है। जांच आयोग के सदस्य और सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीटी नानावती एवं हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अक्षय मेहता कल मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के आवास पर गए और उन्हें यह रिपोर्ट सौंप दी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट सौंपने की जानकारी की पुष्टि भी कर दी है। रिपोर्ट सौंपने के बाद न्यायमूर्ति नानावती ने कहा कि हमने गुजरात दंगों पर जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जो दो हजार से ज्यादा पृष्ठों की है। उन्होंने रिपोर्ट के संबंध में मीडिया को कोई भी ब्योरा देने से इंकार कर दिया है।
गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों की जांच के लिए नानावती जांच आयोग का गठन किया गया था और अब जाकर यानी बारह साल बाद आयोग की अंतिम रिपोर्ट आई है। गुजरात दंगों की जांच बड़ी लंबी चली। इस दौरान न जाने कितने आरोप-प्रत्यारोप देश-दुनिया ने सुने और नरेंद्र मोदी का सार्वजनिक जीवन गुजरात दंगों से कलंकित कर दिया गया। नरेंद्र मोदी के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया, जब एक तरफ उनपर राजधर्म का नैतिक दबाव बनाकर उन्हें सत्ता से बेदखल कर देने की असफल कोशिश की गई और दूसरी ओर गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम के मुख्य आरोपी के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका ने अपने यहां वीजा देने से ही इंकार कर दिया। अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को तब भले ही वीजा नहीं दिया हो, किंतु गुजरात की जनता उन्हें अपना मुख्यमंत्री बनाती रही और इस बार भारत की जनता ने भी प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता सौंप दी। नरेंद्र मोदी को सत्ता सौंपते ही गुजरात दंगों का कलंक तभी धुल गया था, मगर वे नानावती जांच आयोग की नज़र में भी निर्दोष साबित हुए हैं।
गोधरा रेलवे स्टेशन पर रेल के डिब्बों पर ज्वलनशील पदार्थ फेंककर और उसमें आग लगाकर बड़ी संख्या में हुई मौतों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात को सांप्रदायिक दंगों में चले जाने से तब कोई भी नहीं रोक पाया था। गुजरात सरकार ने दंगे रोकने की भरसक कोशिश की तब भी करीब एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर मुसलमान समुदाय के थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कि वह दंगे नहीं रोक पाए और स्वयं भी दंगों में शामिल हो गए। नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि होने के कारण उनपर मुस्लिम विरोधी होने का इल्जाम बहुत तेजी से चला। दूसरे राजनीतिक दलों से लेकर कुछ भाजपा नेता भी नरेंद्र मोदी के पीछे पड़ गए। नरेंद्र मोदी की अपने ऊपर इन गंभीर आरोपों का सामना करने की हिम्मत और उनका धैर्य उनके साथ था। नरेंद्र मोदी के खिलाफ न्यायमूर्ति नानावती आयोग का तुरंत गठन कर दिया गया और फिर जांच और पूछताछ का दौर लंबा चला। इस बीच न जाने कितने नेता और अधिकारी इन दंगों के आरोप में जेल भेज दिए गए और न जाने कितनों को सजा हो गई। नानावती आयोग की जांच लंबी चली और आयोग को चौबीस विस्तार भी मिले। इस बार जांच आयोग ने कहा कि उसे 25वीं बार विस्तार मांगने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारी अंतिम रिपोर्ट तैयार हो गई है, उसकी अब छपाई चल रही है और जल्दी वह हमारे सामने आ जाएगी, लिहाजा कल अंतिम जांच रिपोर्ट सामने आ गई, गुजरात की मुख्यमंत्री को सौंप दी गई, जिसमें पता चला है कि नरेंद्र मोदी को निर्दोष पाया गया है।
नानावती जांच आयोग ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के संबंध में अपने निष्कर्षों का एक हिस्सा 2008 में भी सौंपा था, जिसमें यह नतीजा निकाला गया था कि साबरमती आश्रम के एस-6 डिब्बे में गोधरा स्टेशन के पास लगी आग ‘सुनियोजित साजिश’ का हिस्सा थी। जांच आयोग के विचारार्थ विषय वह घटनाक्रम, परिस्थिति और तथ्यों की जांच थे, जिनके बाद साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगी। गोधरा जंक्शन पर ट्रेन में 27 फरवरी 2002 के अग्निकांड और उसके बाद राज्य में भड़के सांप्रदायिक दंगों के मद्देनज़र राज्य सरकार ने तीन मार्च 2002 को जांच आयोग कानून के तहत आयोग का गठन किया था, जिसमें न्यायमूर्ति केजी शाह शामिल थे। मई 2002 में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीटी नानावती को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। जून 2002 में टीओआर में संशोधन किया गया, जिसके तहत आयोग को गोधरा घटना के बाद हुई हिंसा की घटनाओं की जांच करने को भी कहा गया। वर्ष 2008 में न्यायमूर्ति केजी शाह का निधन होने के बाद न्यायमूर्ति अक्षय मेहता को आयोग में नियुक्त किया गया। आयोग को जांच पूरी करने के लिए करीब छह-छह महीने का 24 बार विस्तार दिया गया। आयोग ने टीओआर के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके उस समय के कैबिनेट सहयोगियों, वरिष्ठ अधिकारियों एवं कुछ दक्षिणपंथी संगठनों के पदाधिकारियों की भूमिकाओं की जांच की।
नरेंद्र मोदी अब दंगों के कलंक से पूरी तरह मुक्त माने जा सकते हैं। जांच आयोग की रिपोर्ट विधिक रूप से अभी सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन उसके तथ्य जरूर पता चल गए हैं। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री भी हो चुके हैं। वे इस समय विदेश यात्रा पर हैं और इस रिपोर्ट का जो सार सामने आया है, उससे विपक्ष के हाथ में गुजरात दंगे का हथियार भी सर्वदा के लिए नष्ट हो गया है। इसमें एक बात सभी देशवासियों को सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि आखिर राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीतिक दलों या संगठनों अथवा समाज को ऐसे मामलों में आरोपों को लेकर कहां तक जाना चाहिए? नानावती जांच कमीशन को गुजरात दंगों के निष्कर्ष तक पहुंचने में बारह साल से भी ज्यादा का समय लगा। अब एक सवाल यह है कि इस दंगे में जो निर्दोष पाए गए हैं, उन्होंने जो बारह साल की यातना भोगी है, उनको न्याय कहां से मिलेगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह के आरोपों का सामना किया है, वे बहुत गंभीर थे, जो उनके राजनीतिक जीवन को नष्ट करने के लिए लगाए गए थे। यदि वास्तव में नानावती जांच आयोग ने उन्हें निर्दोष पाया है, तो इसे सच्चाई और न्याय की ही विजय कही जाएगी। अब इस रिपोर्ट को गुजरात विधानसभा के पटल पर रखकर सार्वजनिक किया जा सकता है।