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Monday 21 January 2013 08:51:41 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान का चौथा दीक्षांत समारोह आज नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इसमें 9 हजार से ज्यादा छात्रों ने पुरस्कार ग्रहण किया। इस मौके पर अपने अध्यक्षीय भाषण में मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ एमएम पल्लम राजू ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डॉ मुकुंदकम शर्मा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है, रिपोर्ट की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है। संस्कृत की भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल भाषा ही नहीं है, बल्कि एक उद्गम स्थल है जिसमें संस्कृति और सभ्यता का मिलन हुआ है।
डॉ राजू ने कहा कि यह प्राचीन भाषा भारत की सीमाओं के बाहर पहुंची है और इसने विश्व संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ गुरूकुल की परंपरा का समन्वय करके संस्कृत शिक्षा को और अधिक प्रासंगिक बनाया जाये। उन्होंने संस्कृत, पाली और प्राकृत के अध्यापन और अनुसंधान की सुविधा से संस्थान को बहुभाषी और सांस्कृतिक दृष्टि से संपन्न बनाने के लिए उसकी सराहना की।
इस अवसर पर न्यायमूर्ति डॉ मुकुंदकम शर्मा ने कहा कि संस्कृत विज्ञान और विज्ञान की बेशकीमती धरोहर है। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत भारत का सबसे बड़ा खजाना है। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय के कदमों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष विश्व संस्कृत सम्मेलन के दौरान की गई सिफारिशों की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन करके मंत्रालय ने भारत की इस प्राचीन भाषा को बढ़ावा देने में दिलचस्पी दिखाई है। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति प्रोफेसर राधा वल्लभ त्रिपाठी ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए उठाये गये कदमों की जानकारी दी।