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Monday 2 February 2015 06:42:26 AM
लखनऊ। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उत्तर प्रदेश विधान भवन में आयोजित ‘भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 77वें सम्मेलन’ का उद्घाटन करते हुए कहा कि देश की प्रगति में विधायी निकायों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि राज्यों की प्रगति से ही देश आगे बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि सदन में जितनी रचनात्मक चर्चा होगी कानून उतने ही बेहतर बनेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनने से पहले सांसद भी रहे हैं, इसलिए वे भी विधायी निकायों की भूमिका को अच्छी तरह से समझते हैं। सम्मेलन शुरू होने से पूर्व उन्होंने ‘भारत में संसदीय लोकतंत्र-एक सिंहावलोकन’ प्रदर्शनी का दीप जलाकर उद्घाटन भी किया। देश के विभिन्न राज्यों से आए पीठासीन अधिकारियों, आमंत्रित अतिथियों एवं लोकसभा अध्यक्ष का उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने स्वागत किया।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि आजादी के बाद के वर्षों में लोकतंत्र की जड़े और अधिक गहरी हुईं हैं। देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं पहले से अधिक सुदृढ़ हुई हैं और उनका स्वरूप भी निखरा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संसद और विधान मंडलों का इतिहास ऐसे पीठासीन अधिकारियों के नाम से भरा है, जिन्होंने संसदीय लोकतंत्र की उच्च परंपराओं को स्थापित करने और उन्हें सुदृढ़ करने की दिशा में नए आयाम गढ़े हैं, पीठासीन अधिकारियों ने सदन की जिन महान परंपराओं को अपनी सूझ-बूझ, बुद्धिमत्ता एवं निष्पक्षता से निभाया है, उसकी सराहना देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी हुई है। सदन को लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि जनता की आशाएं और अपेक्षाएं प्रत्यक्ष रूप से सदन से जुड़ी हैं, इसलिए सदस्यों की पहली प्राथमिकता जनता के विश्वास को सदन के प्रति लगातार मजबूत बनाने की होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विधायी संस्थाएं आजादी के संघर्ष की देन हैं। आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाने में उत्तर प्रदेश विधान मंडल की सशक्त मंच की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसी मंच से राज्य के महान नेताओं ने राजनैतिक क्रांति और सामाजिक परिवर्तन की आवाज़ को बुलंद किया है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए विख्यात ऐतिहासिक नगर लखनऊ में उत्तर प्रदेश विधान मंडल को देश का सबसे बड़ा विधान मंडल बताते हुए उन्होंने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे राजनेताओं ने इसी सदन से होते हुए देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया है।
अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान सभा में पीठासीन अधिकारी के पद की गरिमा को राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ने स्थापित किया है, जिसे नफीसुल हसन, आत्माराम गोविंद खेर, मदनमोहन वर्मा, नियाज हसन सहित कई अध्यक्षों ने दृढ़ता के साथ निभाया। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय को इस परंपरा की एक मिसाल बताते हुए विधान परिषद के सभापतियों की भूमिका की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सर सीताराम से लेकर सभापति गणेश शंकर पांडेय ने परिषद की गौरवशाली मर्यादा को बनाए रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ने समाजवादी आंदोलन को पृष्ठभूमि प्रदान की है, इन्हीं आंदोलनों के संघर्ष से निकले डॉ राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विरासत और चौधरी चरण सिंह की विचारधारा को मुलायम सिंह यादव ने और आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण काम किया है।
ज्ञातव्य है कि विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन वर्ष 1921 से आयोजित हो रहा है। इस सम्मेलन का भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली का दीर्घ अनुभव है। समय-समय पर यह सम्मेलन विभिन्न राज्यों में आयोजित होते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यह सम्मेलन इससे पूर्व वर्ष 1961 तथा वर्ष 1985 में आयोजित हो चुके हैं। लोकसभा अध्यक्ष सहित विभिन्न प्रदेशों के पीठासीन अधिकारियों एवं आमंत्रित अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन विधान परिषद के सभापति गणेश शंकर पांडेय ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की धरती विधायिका को स्वस्थ और प्रभावी दिशा देने में सार्थक होगी। देश के विभिन्न प्रांतों के विधान सभा एवं विधान परिषद के पीठासीन अधिकारी, लोकसभा एवं राज्यसभा के पदाधिकारी आमंत्रित अतिथि, पूर्व पीठासीन अधिकारी आदि इस अवसर पर उपस्थित थे। विधान भवन में विधायी इतिहास और उससे जुड़े महानुभावों की शानदार फोटो दीर्घा को सराहा गया। सम्मेलन के सुव्यवस्थित आयोजन के लिए सम्मेलन के संयोजक और राज्य के मंत्री अंबिका चौधरी और उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे की लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रांतों से आए अतिथि प्रतिभागियों ने प्रशंसा की।