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Tuesday 12 May 2015 03:19:43 AM
लखनऊ। सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया गया। संस्थान ने इस दिन को 'ओपन दिवस' के रूप में मनाया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विभिन्न स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों से छात्र-छात्राओं ने संस्थान की विभिन्न प्रयोगशालाओं, प्रदर्शनी, वनस्पति संग्रहालय, पुस्तकालय, वनस्पतिक उद्यान का भ्रमण किया। पद्मश्री और पद्मभूषण प्रोफेसर जी पद्मनाभन आईएनएसए वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलौर और सीनियर विज्ञान एवं नवाचार सलाहकार बीआईआरएसी डीबीटी नई दिल्ली समारोह के मुख्य अतिथि थे। प्रोफेसर जी पद्मनाभन ने भारतीय कृषि के लिए जैव प्रौद्योगिकी की प्रासंगिकता विषय पर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस व्याख्यान दिया। डॉ पीवी साने पूर्व निदेशक सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान समारोह के अतिथि थे। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों और वैज्ञानिकों के साथ-साथ सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के कर्मचारी, शोधकर्ता और छात्र उपस्थित थे।
प्रोफेसर जी पद्मनाभन ने भारतीय कृषि के लिए जैव प्रौद्योगिकी की प्रासंगिकता विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत में दुनिया की आबादी का 18% और वैश्विक पशुधन का 15% मौजूद है, लेकिन यह वैश्विक भूमि क्षेत्र के मात्र 2.3% भाग में रह रहे हैं, भारत में किसी भी फसल की उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में लगभग 30 से 50 % कम है। उन्होंने सुझाव दिया कि शुष्क भूमि कृषि के क्षेत्र में नवीन शोधों में उत्पादकता बढ़ाने की जबरदस्त क्षमता है। कृषि जैव प्रौद्योगिकी के कई पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर पद्मनाभन ने कहा कि इतना बड़ा कैनवास दुर्भाग्य से भारत में मात्र बीटी (बैसिलस थुरिञ्जेंसिस विष) फसलों और मात्र बीटी कपास के विरोधियों के चलते बहुत छोटा हो गया है। उन्होंने कहा कि बीटी कपास की खेती के आगमन के साथ भारत एक कपास आयातक राष्ट्र से एक कपास निर्यातक देश बन गया है।
प्रोफेसर जी पद्मनाभन ने कहा कि दुर्भाग्य से भारत में सबसे सफल प्रौद्योगिकी नवाचार अर्थात बीटी कपास, विरोधियों की ऐसी आलोचनाओं के घेरे में आ गया है, जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। अनुसंधान के लगभग 20 वर्ष बीटी जीन का उपयोग प्रमुख कीटों का मुकाबला करने के लिए एक कीटनाशी के रूप में विकसित करने में लगे। बीटी फसलें पर्यावरण सुरक्षा और स्वास्थ्य मापदंडों दोनों के ही लिए प्रायोगिक पशुओं में व्यापक परीक्षणों से गुजरी हैं। बीटी की सुरक्षा से संबंधित जो वैज्ञानिक सबूत हैं, वह यह है कि यह महसूस किए जाने की जरूरत है कि अमेरिका, कनाडा, चीन, ब्राजील, अर्जेंटीना आदि में लाखों लोग 15 से अधिक वर्षों से बीटी मक्का प्रयोग कर रहे हैं, इन सभी के साथ यूरोप जीएम खाद्य पदार्थों का आयात कर रहा है, यह विश्वास करना मुश्किल है कि विकसित देश अपनी आबादी और पशुधन को असुरक्षित भोजन पर जीने देंगे? भारत ने जीएम परीक्षणों के संचालन के लिए बहुत सख्त दिशा निर्देश तैयार किए हैं, मगर यहां तो बीटी बैंगन के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध है, जबकि बांग्लादेश ने भारत से प्रौद्योगिकी का वाणिज्यीकरण किया है।
प्रोफेसर पद्मनाभन ने इस पर भी बल दिया कि मार्कर-असिस्टेड प्रजनन (मास) जो कि एक गैर-जीएम दृष्टिकोण है, इसका सफलतापूर्वक प्रयोग सूखा-प्रतिरोधी मक्का और क्वालिटी प्रोटीन युक्त मक्का के उत्पादन के लिए किया गया है। मास का प्रयोग उपयुक्त जर्मप्लाज्म के उपलब्ध होने पर किया जा सकता है, जबकि नए वांछित लक्षणों को विशिष्ट जीन स्थानांतरण प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है। प्रोफेसर पद्मनाभन ने कहा कि इस तथ्य पर विचार करने के लिए समय आ गया है कि भारत एक ऐसे चरण में प्रवेश कर चुका है, जहां प्रौद्योगिकी विकसित की जा रही हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभुत्व से लड़ने के नाम पर हम केवल स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास को आहत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें भारत को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए किसी भी फसल एवं लक्षण के लिए सबसे उपयुक्त प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की जरूरत है।
सीएसआईआर-एनबीआरआई एवं सीएसआईआर-आईआईटीआर के निदेशक डॉ सीएस नौटियाल ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के आयोजन के महत्व को रेखांकित किया एवं भारतीय वैज्ञानिकों की लगन, समर्पण एवं इच्छा शक्ति को याद किया, जो कि विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय नवाचारों में क्रांतिकारी विकास में दर्शित होती हैं। डॉ पीवी साने ने कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट शोधों के लिए सीएसआईआर-एनबीआरआई की प्रशंसा करते हुए वैज्ञानिकों से कुछ मुख्य फसलों विशेषकर कपास जैसी फसलों के लिए विपणन योग्य कृषि प्रौद्योगिकियों को विकसित करने हेतु भारत में विभिन्न संस्थानों एवं उद्योगों के साथ सहयोग विकसित करने की अपील की, जिससे ऊतक संवर्धन, रूपांतरण प्रौद्योगिकियों तथा सामान्य वातावरण में आनुवांशिक रूप से रूपांतरित एवं गैर-रूपांतरित पौधों के परीक्षण के लिए उच्च क्षमताओं का विकास किया जा सके। उन्होंने यह सलाह भी दी कि भारत में कृषि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में खाद्य फसलों विशेषकर बागवानी फसलों पर बल दिए जाने की आवश्यकता है।