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Sunday 27 January 2013 10:36:33 AM
लखनऊ। अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री एवं वैश्य आर्गनाइजेशन कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन बाबूराम गुप्ता ने कहा है कि देश में वैश्य समाज की 28 से 30 हजार संस्थाएं हैं, किंतु उनकी अधिकांशतः ऊर्जा कथा करवाने, मंदिर बनवाने आदि धार्मिक कार्यों में ही खर्च हो रही है, जबकि आज जरूरत है-सामाजिक संगठनों को एकजुट करने की, जिससे समाज का उत्थान हो, रोज़गार मिले, व्यापार में उन्नति हो। वैश्य समुदाय सदियों से सेवाभावी तथा परोपकारी रहा है, किंतु बदलते संदर्भों में जागरूकता व एकजुट होकर सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार होने से बचाने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी, भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान की चुनौतियों का मुकाबला किया जाना चाहिए।
रविवार को कैपिटल सेंटर के संगम सभागार में अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन की युवा इकाई की ‘वैश्य समाज और सामाजिक सरोकार’ विषयक संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सामाजिक बंधन जब ढीला पड़ता है, तो विकृतियां बढ़ जाती हैं, इसलिए समाज को एकजुट करने तथा जनजागरूकता के माध्यम से कुरीतियों के विनाश हेतु वैश्य समाज को अपनी सक्रियता और बढ़ानी होगी। वैश्य महासम्मेलन के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ नीरज बोरा ने कहा कि धर्मशालाएं, मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय आदि सेवा प्रकल्प वैश्यों के ही खड़े किए गए हैं, अर्थव्यवस्था का संचालन हो या देश पर आई कोई भी विपदा, वैश्य समाज ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है और आज भी निभा रहे हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए नवयुवकों को आगे आने का आह्वान किया। डॉ बोरा ने कुंभ हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसे सरकार की लापरवाही करार दिया, मांग की कि सभी घायलों को सरकार दस-दस लाख रूपए तत्काल मुआवजा दे।
अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन की युवा इकाई के प्रदेश अध्यक्ष अनूप अग्रवाल ने सामाजिक विसंगतियों के निदान हेतु वैश्य समाज के सभी संगठनों को समवेत रूप से कार्य करने की आवश्यकता बताई। कहा कि समाज के लोग न केवल अपने उपवर्ग अपितु संपूर्ण समाज के लिए कार्य करते हैं, किंतु जब राजनीतिक लाभ की बारी आती है, तो वैश्यों की भावनाओं को पूरा सम्मान नहीं मिलता। वैश्य महासम्मेलन के पूर्व प्रदेश महामंत्री बृजेश गुप्ता ‘चंचल’ ने समाज को लोकहित में अपनी जिम्मेदारी तय करने की बात कही। संगोष्ठी में मीना वार्ष्णेय, रेनू जायसवाल, महेश प्रसाद साहू ‘दद्दू’, दिलीप साहू, मनीष अग्रवाल, गिरिजाशंकर जायसवाल, अवधेश कुमार आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।