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Sunday 03 February 2013 04:13:00 AM
इलाहाबाद। कुंभ मेले में क्रियायोग साधना का भी काफी जोर-शोर है। देशी-विदेशी श्रद्धालु लोग भी इसे जानने में गहरी रुचि ले रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि क्रियायोग साधना से मनुष्य की सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। योगी सत्यम जी महाराज गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर सैक्टर दस में बने अपने शिविर में सदियों पुरानी संपूर्ण पूजा पद्धति क्रियायोग में व्यस्त हैं। सुबह से लेकर देर रात तक देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का यहां अच्छा खासा जमावड़ा है। क्रियायोग आश्रम और अनुसंधान केंद्र के शिविर में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु के श्रद्धालुओं के साथ अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन के श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। शिविर में श्रद्धालुओं को क्रियायोग विज्ञान के बारे में जानकारी देने के लिए सुबह और शाम तीन-तीन घंटे की दो कक्षाएं चलती हैं। क्रियायोग प्राचीनतम आध्यात्मिक शिक्षा है।
क्रियायोग आश्रम और अनुसंधान केंद्र के प्रमुख योगी सत्यम जी महाराज कहते हैं कि योग मानव के विकास की उच्चतम अवस्था है, जिसमें मनुष्य दूरी, कठिनाईयों, समय और काल की अनुभूति के परे होता है। योग अवस्था की प्राप्ति के लिए जिस साधना क्रिया का अभ्यास करना पड़ता है, वही क्रियायोग है। योग अवस्था के प्रकट होने पर साधक अपने तथा आदिमध्य अनंत के बीच दूरी की शून्यता का अनुभव कर लेता है। ऐसी अवस्था में काल का विभाजन समाप्त हो जाता है। जिस तरह ब्रह्माँड की समस्त रचनाएं अविभाजित हैं, उसी तरह समय भी अविभाजित है। क्रियायोग का अभ्यास सभी आत्मज्ञानी ऋषियों ने किया है। क्रियायोग साधना से अद्वैत दृष्टि प्रकट होने पर समस्त पूजा पद्धतियों में निहित एकता का ज्ञान हो जाता है। क्रियायोग के अभ्यास से स्पष्ट हो चुका है कि मानव हाड़माँस का बना हुआ, सीमित व नश्वर स्वरूप नहीं बल्कि सर्वव्यापी परम चैतन्य अमर तत्व है।
क्रियायोग के अभ्यास से योग, साधक के अंदर अपने आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणाए ध्यान, समाधि के साथ प्रकट होता है। क्रियायोग शरीर और मन के बीच दूरी शून्य करने का विज्ञान है। शरीर व मन के बीच दूरी शून्य होने पर शरीर व मन दो अलग-अलग तत्वों के रूप में अनुभव नहीं होते हैं, बल्कि दोनों एक तत्व हैं, का अनुभव होता है। उसी एक तत्व को सत्, नित्य, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, परमतत्व आदि अनेक रूपों में वर्णित किया गया है। क्रियायोग के अभ्यास से साधक की दृष्टि निर्मल हो जाती है, जिससे वह कहीं पर गुणदोष, अच्छाई-बुराई, पाप-पुण्य आदि भावों से ऊपर उठकर एक परमशक्ति सर्वव्यापी परमात्मा का दर्शन करता है। इस अवस्था के प्रकट होने पर एक दूसरे के बीच शाश्वत प्रेम के अस्तित्व का दर्शन हो जाता है। मनुष्य एक दूसरे को ठीक वैसे ही प्रेम करता है, जैसे सर्वव्यापी परमात्मा से प्रेम करना चाहिए।
योगी सत्यम जी महाराज कहते हैं कि क्रियायोग का अभ्यास करने वाला चाहे वह पुरुष हो या महिला, जवान हो या बुजुर्ग, उसे कभी कोई बीमारी नहीं होती है। अगर उसे पहले से कोई बीमारी है तो वह क्रियायोग के अभ्यास से धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। क्रियायोग के अभ्यास से हृदय रोग, कैंसर, ब्लड शुगर को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। क्रियायोग का अभ्यास करना बहुत सरल है। रोजाना सुबह-शाम 10 मिनट क्रियायोग का अभ्यास करने से मनुष्य खुद को धीरे-धीरे अपने को परमात्मा के निकट महसूस करने लगता है और एक समय ऐसा भी आता है, जब उसे लगता है कि उसका परमात्मा से मिलन हो गया है। क्रियायोग परमात्मा की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है। क्रियायोग अतीत वर्तमान भविष्य से जुड़ने की क्रिया है। क्रियायोग साधना से स्वरूप में गहन एकाग्रता केंद्रित करके साधक अल्पकाल में संपूर्ण ब्रह्माँडीय रहस्यों को आविष्कृत कर लेता है।
महाराज कहते हैं कि क्रियायोग से देश को पूरी तरह बीमारी मुक्त बनाया जा सकता है। क्रियायोग की साधना से स्वरूप तथा ब्रह्माँड की समस्त रचनाओं की अमरता का ज्ञान प्राप्त होता है, इसलिए क्रियायोग स्वधर्म का अभ्यास है। जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान क्रियायोग की साधना से प्राप्त किया जा सकता है। श्रीमद्भागवत गीता में शरीर को धर्म कुरुक्षेत्र कहा गया है, जहां पर समस्त कौरव और पांडव शक्तियां विद्यमान हैं। क्रियायोग की साधना आध्यात्मिक युद्ध है जिसमें कौरव शक्तियों का पांडव में रूपांतरण हो जाता है तथा पांडव प्रवृत्तियों का परब्रह्म शक्ति में विलय हो जाता है। अब वह समय आ गया है, जब भारत के हर घर में क्रियायोग का दीप जले, जिससे भारत अपने शक्तिवान, ज्ञानवान स्वरूप में प्रकाशित हो। भारत की भारतीयता, आध्यात्मिकता व वैज्ञानिकता का अपूर्व गौरव विश्व मंच पर प्रकाशित हो।