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Thursday 24 December 2015 12:51:54 AM
नई दिल्ली। देश-दुनिया में ईद मिलादुन्नबी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस्लाम धर्म के मानने वालोंका मीलाद-उन-नबी एक प्रमुख त्यौहार है। इस शब्द का मूल मौलिद है, जिसका अर्थ अरबी में 'जन्म' है। अरबी भाषा में 'मौलिद-उन-नबी' का मतलब है-हज़रत मुहम्मद का जन्मदिन। यह त्यौहार बारहवीं रबी अल-अव्वल को मनाया जाता है। मान्यता हैकि अगर महानता इसपर निर्भर करती हैकि किसी ऐसी जाति का सुधार किया जाए, जो सर्वथा बर्बरता और असभ्यता से ग्रस्त हो और नैतिकदृष्टि से वह अत्यंत अंधकार में डूबीहुई हो तो उसे रौशनी देनेवाले हज़रत मुहम्मद हैं, जिन्होंने क़ौम को ऊंचा उठाया और उसे सभ्यता से सुसज्जित करके कुछसे कुछ कर दिया। इसतरह उनका महान होना पूर्णरूप से सिद्ध होता है। उन्होंने बिखरे हुए तत्वों को भाईचारे और दयाभाव के सूत्रोंमें बांध दिया, मरुस्थल में जन्मे पैग़म्बर निस्संदेह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र मानेजाते हैं। उन्होंने अंधविश्वासों हानिकारक प्रथाओं और आदतों से ग्रस्त लाखों लोगों को उनसे मुक्त किया। शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मुहम्मद साहब को अल-अमीन और अस-सादिक़ अर्थात विश्वसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने मिलादुन्नबी पर देश-विदेश में रहनेवाले भारतीयों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। राष्ट्रपति ने कहा हैकि पैगम्बर हज़रत ने मानवता केलिए प्रचारित और प्रसारित करुणा, सहिष्णुता एवं सेवाका संदेश दिया है और प्रेम तथा वैश्विक भाईचारे की राहपर बढ़ने केलिए सभीका मार्गदर्शन किया है। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने देशवासियों को पैगम्बर मोहम्मद के जन्मदिवस पर मनाए जाने वाले मिलाद-उन-नबी पर्व की शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण केलिए लोगों से प्रेम और धैर्य के मार्गपर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि देशकी खुशहाली में योगदान देनेके लिए सब मिलकर प्रयास करें और स्वयं को पुन: समर्पित करें।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेशवासियों, विशेषकर मुस्लिम समाज को हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस ‘ईद-मिलादुन्नबी’ पर हार्दिक बधाई देतेहुए उनके मंगलमय जीवन की कामना की है। राज्यपाल ने बारावफात पर जारी बधाई संदेश में कहा हैकि हज़रत मोहम्मद ने इंसान को इंसान से जोड़ने, भाईचारा, दूसरे धर्मों केप्रति सम्मान व एकता की जो शिक्षा दी है, वह किसी वर्ग विशेष केलिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता केलिए है। उन्होंने कहाकि हज़रत मोहम्मद साहब की शिक्षाएं आजभी प्रासंगिक हैं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुसलमानों को बारावफात की शुभकामनाएं दी हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत, उत्तराखंड के राज्यपाल कृष्णकांत पॉल, उत्तर प्रदेश के मंत्री मोहम्मद आज़म खां ने भी हज़रत मोहम्मद साहब के जन्मदिवस पर बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।
पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का जन्म अरब के रेगिस्तान में 20 अप्रैल 570 ईस्वी में हुआ था। मुहम्मद का अर्थ होता है-जिसकी अत्यंत प्रशंसा कीगई हो। इस्लाम की नज़र में वे अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ और सबसे उच्चबुद्धि के हैं। उनसे पहले और उनके बाद इस लाल रेतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा उनका प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है। जब हज़रत पैदा हुए तो अरब उपमहीद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता को जन्म दिया। उन्होंने एक ऐसे युग और राज्य की स्थापना की, जो मराकश से लेकर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया, अफ़्रीक़ा और यूरोप के विचार और जीवन पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला।
हज़रत की शिक्षाएं आत्मसंयम एवं अनुशासन की प्रेरणा देती हैं, यानी जो अपने क्रोध पर क़ाबू रखते हैं। एक क़बीले के मेहमान का ऊँट ग़लती से दूसरे क़बीले की चरागाह में चलेजाने की छोटीसी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष भयानक रूपसे लड़ते रहे, दोनों पक्षों के हज़ारों आदमी मारे गए, जिससे दोनों क़बीलों के पूर्णविनाश का भय पैदा हो गया, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दियाकि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे। पैगंबर ने विरोधियों से समझौते और मेल-मिलाप केलिए बार-बार प्रयास किए। उन्होंने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की नमाज़ की शिक्षा दी, अकेले-अकेले नमाज़ अदा करने की नहीं, बल्कि सामूहिक रूपसे नमाज़ अदा करने की, यहांतक कि युद्ध विभीषिका के दौरान भी नमाज़।
हज़रत मुहम्मद की शिक्षाओं में बर्बता के युग मेंभी रणभूमि तक मानवता का विस्तार किया गया। कड़े आदेश दिए गएकि न तो लाशों के अंग-भंग किएजाएं और न किसी को धोखा दिया जाए, न विश्वासघात कियाजाए और न ग़बन कियाजाए, न बच्चों औरतों या बूढ़ों का क़त्ल कियाजाए और न ख़जूरों और दूसरे फलदार पेड़ों को काटा या जलाया जाए और न ही संसार त्यागी संतों और उन लोगोंको छेड़ा जाए जो इबादत में लगे हों। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों केसाथ ख़ुद पैग़म्बर साहब का व्यवहार एक उत्तम आदर्श था। मक्का पर विजय के समय भी हज़रत मुहम्मद का हृदय प्रेम और करुणा से छलक पड़ा। उन्होंने ऐलान कियाकि आज तुमपर कोई इल्ज़ाम नहीं और तुमसब आज़ाद हो। आत्मरक्षा में युद्ध की अनुमति देनेके मुख्य लक्ष्यों में उनका एक लक्ष्य यहभी थाकि मानव को एकता के सूत्र में पिरोया जाए और जब यह लक्ष्य पूरा होजाए तो बदतरीन दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया जाए।
मुहम्मद साहब पैग़म्बरों और धार्मिक क्षेत्रके महान व्यक्तित्वों में सबसे ज़्यादा सफल हुए हैं। उनकी यह सफलता कोई आकस्मिक नहीं थी और न ऐसाही कि यह आसमान से अचानक आ गिरी हो, बल्कि यह वास्तविकता का फल थीकि उनके समकालीन लोगों ने उनके व्यक्तित्व को साहसी और निष्कपट पाया। यह उनके प्रशंसनीय और अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व का फल था। ऐतिहासिक दस्तावेज़ साक्षी हैंकि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद केसभी समकालीन लोगों ने जीवन केसभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बर-ए-इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, बेदाग़ छवि, ईमानदारी, महान नैतिक सद्गुणों, अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त उनकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहूदी और वे लोग जिनको उनके संदेश पर विश्वास नहीं था, वेभी उनको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें उनकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। पैग़म्बर-ए-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता सबके दिलोंपर उल्लेखनीय और अनुकरणीय है।