स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 06 February 2013 06:31:16 AM
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के किसान गेहूं की फसल को गेरूई या रतुआ रोग के प्रकोप से बचाने हेतु फसलों की नियमित निगरानी करते रहें तथा रोग के प्रकोप की स्थिति में तत्काल रोकथाम के उपाय अपनाएं। गेरूई काली, भूरे एवं पीले रंग की होती है, गेरूई की फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते हैं, जो बाद में मिलकर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं, काली गेरूई तना तथा पत्तियों दोनों को प्रभावित करती है। इसके नियंत्रण के उपाय के लिए खेतों की नियमित निगरानी करें तथा वृ़क्षों के आस-पास उगाई गई फसल पर अधिक ध्यान दें।
रोग के प्रकोप की स्थिति प्रायः जनवरी के अंत या फरवरी के मध्य में आती है, अतएव फसल की नियमित निगरानी की जाए तथा रोग के लक्षण दिखाई देने पर कृषि रक्षा रसायनों में से किसी एक प्रस्तावित रसायन की मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करना चाहिए। पीली गेरूई में प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 500 मिली लीटर तथा भूरी गेरूई के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 500 मिली लीटर अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू पी 2 किलो ग्राम अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू पी 2 किलो ग्राम एवं काली गेरूई के होने पर थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू पी 700 ग्राम अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू पी 2 किलो ग्राम अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू पी 2 किलो ग्राम इनमें से किसी एक रसायन को 600 से 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव किया जाना चाहिए।