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Friday 8 April 2016 04:59:10 AM
नई दिल्ली। भारतीय विदेश सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों (2014 तथा 2015 बैच) ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भेंट की। राष्ट्रपति ने विदेश सेवा के अधिकारियों से कहा है कि वे विश्व के लिए भारत के प्रवक्ता हैं और विश्व को भारत की कहानी बताने वाले हैं। राष्ट्रपति ने बताया कि कैसे कौटिल्य ने राजा को यह सलाह दी थी कि राजदूतों की नियुक्ति में किस तरह की सावधानी बरती जानी चाहिए, कौटिल्य ने कहा था कि राजदूत के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति को न तो लालची होना चाहिए और न ही मूर्ख, उसे झूंठ भी नहीं बोलना चाहिए, राजदूत को ज्ञानी होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हमारी सभ्यता के मूल्यों के आधार पर हमारी विदेश नीति की आधारशिला रखी, हमारे राष्ट्रीय नेता जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर नज़र रखते थे और इस बारे में सोचते थे कि इन घटनाओं को कैसे भारत के हित के साथ जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि विदेश नीति दूसरे देशों के मौजूदा माहौल के संदर्भ में देशहित का विस्तार है। राष्ट्रपति ने कहा कि यूरोप ने सदियों पुराने विवाद को परे रखते हुए एक शक्तिशाली संघ बनाया है, आज की दुनिया में भुगतान संतुलन और व्यापार शर्तों ने शक्ति संतुलन का स्थान ले लिया है। प्रणब मुखर्जी ने बताया कि उन्होंने दो बार विदेश मंत्रालय का कार्य संभाला और उसमें उन्हें काफी आनंद आया, वित्त मंत्रालय के बाद उनकी दूसरी पसंद विदेश मंत्रालय रही।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि उन्हें विदेश सेवा के अधिकारियों के साथ हुए बौद्धिक संवाद याद है और सभी के प्रति उनके लिए आदर है। उन्होंने प्रशिक्षु अधिकारियों को इस चुनौतीपूर्ण करियर को अपनाने के लिए बधाई दी। उन्होंने विदेश सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों से कहा कि वह विश्व में भारत की नीतियों की जानकारी दें। राष्ट्रपति ने कहा कि प्रारंभ के वर्ष कठिन हो सकते हैं, पारिवारिक जीवन में कठिनाईयां आ सकती हैं और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन एक बार स्थिर होने के बाद अधिकारी अपने कार्य में आनंद लेंगे और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रतिनिधि के रूप में अपना कार्य करेंगे।