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Tuesday 12 April 2016 05:58:08 AM
नई दिल्ली। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने आम लोगों को ऐसी अवैध कंपनियों के झांसे में आने के खिलाफ आगाह किया है, जो स्मार्ट कार्ड के नाम पर प्लास्टिक पर आधार कार्ड छापने के लिए 50 रुपए से 200 रुपए तक वसूल रहे हैं, जबकि आधार पत्र या इसका काटा गया हिस्सा या किसी सामान्य कागज पर आधार का डाउनलोड किया गया संस्करण ही पूरी तरह वैध है। शिकायतें आ रही हैं कि कुछ कंपनियों ने आधार के डाउनलोड संस्करण के सामान्य लैमीनेशन के लिए भी अवैधरूप से सामान्य से अधिक धनराशि वसूलना शुरु कर दी है।
यूआईडीएआई के महानिदेशक एवं मिशन निदेशक डॉ अजय भूषण पांडेय ने जनसामान्य की जानकारी के लिए बताया कि आधार पत्र या किसी भी सामान्य कागज पर डाउनलोड किया गया आधार का संस्करण सभी उपयोगकर्ताओं के लिए पूरी तरह से वैध है, अगर किसी व्यक्ति के पास एक कागजी आधार कार्ड है तो उसे अपने आधार कार्ड को लैमीनेट कराने या पैसे देकर तथाकथित स्मार्ट कार्ड प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि स्मार्ट आधार कार्ड जैसी कोई भी चीज नहीं है, अगर कोई व्यक्ति अपना आधार कार्ड खो देता है तो वह अपने आधार कार्ड को निःशुल्क https://eaadhaar.uidai.gov.in से डाउनलोड कर सकता है, डाउन किए गए आधार का प्रिंट आउट भले ही वह श्वेत या श्याम रूप में क्यों न हो, वह उतना ही वैध है, जितना यूआईडीएआई से भेजा गया मौलिक आधार पत्र। इसे प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट करने या इसे लेमिनेट करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
यूआईडीएआई के महानिदेशक डॉ अजय भूषण पांडेय ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति फिर भी चाहता है कि उसका आधार कार्ड लैमीनेट किया जाए या प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट किया जाए तो वह इसे केवल अधिकृत समान सेवा केंद्रों पर या अनुशंसित दर पर जो 30 रुपए से अधिक न हो, कीमत अदा करके आधार स्थायी नामांकन केंद्रों पर ऐसा कर सकते हैं। उन्होंने सलाह दी कि अपनी गोपनीयता की सुरक्षा के लिए वे अपने आधार नंबर या व्यक्तिगत विवरणों को अवैध एजेंसियों से लैमीनेट कराने या प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट कराने के लिए साझा न करें। ई-बे, फ्लिपकार्ट, अमेजन आदि जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को भी सूचित किया गया है कि वे आम लोगों से आधार की जानकारी एकत्रित करने के लिए या ऐसी सूचना प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड को प्रिंट करने या आधार कार्ड को अवैध रूप से छापने या किसी भी प्रकार से ऐसा करने के लिए अपने व्यापारियों या व्यक्तियों को अनुमति न दें, ऐसा करना भारतीय दंड संहिता और आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडियों, लाभों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति) अधिनियम 2016 के अध्याय-VI के तहत भी दंडनीय अपराध है।