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Thursday 14 April 2016 06:35:54 AM
लखनऊ। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की 150वीं वर्षगांठ के आज लखनऊ में आयोजित समारोह में कहा है कि कानून के नियमों के प्रतिपादन का बोझ न्यायाधीशों पर है। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, वकील और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरोकारों के मामले में सुधारों को लागू करने में कार्यकारिणी की विफलता के विपरीत न्यायपालिका के लिए लोगों में स्थापित परंपरागत प्रतिष्ठा को अपनी सक्रियता से फिर से स्थापित करना होगा और अधिकारों के बढ़ते दायरों में अच्छे कामों के संदर्भ में यह विशेष रूप से सच है। उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच में कमी, इसकी ऊंची लागत, न्याय होने में देरी, जवाबदेही के लिए एक तंत्र की कमी और भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस संस्थान की प्रभावोत्पादकता के बारे में निराशा और संदेह पैदा किया, जिसके प्रति सजग होना होगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि चिंता का एक अन्य क्षेत्र समय-समय पर न्यायपालिका के सदस्यों की घोषणाओं में उजागर होने वाला अत्यधिक उत्साह है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायधीशों को स्पष्ट और निष्पक्ष होकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होगा। उन्होंने कहा कि जिंदगी के अन्य पहलुओं की तरह ईमानदारी न्याय पालिका का आधार स्तंभ है और यह हर समय और हर स्तर पर झलकनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि बदलती दुनिया ने वैश्वीकरण को अपरिहार्य बना दिया है, इसीलिए न सिर्फ आर्थिक और व्यापारिक नीतियों में बल्कि, न्यायपालिका सहित अन्य क्षेत्रों में भी वैश्विक मानकों का विस्तार हुआ है, जिसके कारण स्थानीय विशेषताओं का दायरा सिकुड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विधिवेताओं, वकीलों, न्यायधीशों और लाभन्वित होने वाले लोगों-सभी के लिए बेहतर होगा कि हम इसके साथ सहयोजित हो जाएं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय देश के सर्वाधिक प्राचीन उच्च न्यायालयों में से एक है, वर्तमान में यह न्यायाधीशों की संख्या और पीठ में रिक्तियों की संख्या की दृष्टि से भी सबसे बड़ा न्यायालय है, लखनऊ पीठ का भी अपना सुदीर्घ और विशिष्ट इतिहास रहा है।