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ज्ञानवान अधिकारियों की जरूरत-राष्ट्रपति

भारतीय आर्थिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों से मिले

'भारतीय अर्थव्यवस्था में अनेक उतार-चढ़ाव आए'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 11 May 2016 01:52:05 AM

pranab mukherjee meets with trainee officers of indian economic service

नई दिल्ली। भारतीय आर्थिक सेवा 2014 (II) के प्रशिक्षु अधिकारियों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन में प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा है कि वे जिस सेवा में शामिल हुए हैं, उसमें उन्हें वर्षों तक अनवरत जनता और देश की सेवा करने का अवसर मिलेगा, उन्हें नीतियों के निर्माण में राजनीतिज्ञों को परामर्श देना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद पर आमतौर पर किसी निपुण अर्थशास्त्री को ही तैनात किया जाता है, आर्थिक सर्वेक्षण आपकी सोच और उद्देश्य की स्पष्टता का एक बहुत प्रशंसित दस्तावेज होता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने क्या अर्जित किया है और वह क्या अर्जित करने की आशा रखता है, उसके बारे में उन्हें बहुत गर्व है। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अनेक उतार-चढ़ाव आए हैं, सन् 1950-51 से 1979 तक भारत की औसत विकास दर 3.5 प्रतिशत रही, जिससे हिंदू विकास दर कहा जाता था, हमारी अर्थव्यवस्था 1980 के दशक में औसत रूप से बढ़कर 5 से 5.6 प्रतिशत हुई, सन् 1991 के बाद हमारी विकास दर बढ़कर 7 प्रतिशत के औसत पर पहुंची। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी वर्तमान विकास दर लगभग 7.6 प्रतिशत है, लेकिन इससे हमें संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें अगले 15 से 20 वर्ष के लिए अपनी विकास दर को बढ़ाकर 8.5 से 9 प्रतिशत वार्षिक करना होगा तभी हम अपने विकास लक्ष्यों को अर्जित कर सकते हैं, इससे हम गरीबी उन्मूलन में सफल हो जाएंगे।
प्रणब मुखर्जी ने आर्थिक सेवा के अधिकारियों से कहा कि देश को उनसे बहुत उम्मीदें हैं और आपके युवा कंधों पर यह भारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि विश्व तेजी से विकास कर रहा है और भारत को उसके साथ तालमेल रखना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि उपलब्ध समय कम है, लेकिन भारत की ताकत उसके शक्तिशाली मस्तिष्क में है, भारत को नीति तैयार करने में मार्गदर्शन के लिए बहुत सक्षम और ज्ञानवान अधिकारियों की जरूरत है। उन्होंने युवा अधिकारियों से पूछा कि वे किस तरह का परिवर्तन चाहते हैं, उन्होंने महात्मा गांधी के इन शब्दों का उल्लेख किया कि आपने जिस सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी का चेहरा देखा है, उनका स्मरण करके अपने आप से यह पूछें कि जो कदम आप उठाने जा रहे हैं क्या वह उनके किसी काम का है।

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