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Monday 16 May 2016 02:51:15 AM
नई दिल्ली। भारतीय सिविल लेखा सेवा, भारतीय रक्षा लेखा सेवा, भारतीय डाक और टेलीग्राफ वित्त एवं लेखा सेवा और भारतीय रेलवे लेखा सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के एक समूह ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। इस अवसर पर प्रशिक्षु अधिकारियों से राष्ट्रपति ने कहा कि लोक सेवक के रूप में उनके कंधों पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, उनको 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता से बाहर निकालकर इस राष्ट्र को आधुनिक स्वरूप प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि युवाओं और चुस्त मस्तिष्कों के लिए योगदान करने का यह अनूठा अवसर है।
राष्ट्रपति ने उनसे साझा किया कि भारत की सभ्यता बहुत प्राचीन है, लेकिन भारत एक युवा राष्ट्र है, जो 190 साल के औपनिवेशिक शोषण तथा संसाधनों के अवशोषण, गरीबी और अभाव से पीड़ित होकर अपने भविष्य का निर्माण करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे असाधारण विविधता वाले राष्ट्र में जहां 128 करोड़ लोग रहते हों, 122 भाषाएं और 1800 बोलियों के साथ-साथ सात धर्म मौजूद हों, प्रशासन की एक आधुनिक और साझा प्रणाली की स्थापना करना आसान काम नहीं है। राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान का आदर्श वाक्य है, मनुष्यवती भूमिरार्थ, जो यह बताता है कि सभी संसाधनों में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मानव संसाधन है। उन्होंने कहा कि अच्छे मानव संसाधन के विकास से अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों का पूरा उपयोग सक्षम हो जाएगा, उच्च गुणवत्ता वाली मानव संपत्ति का निर्माण करना हमारे सामने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने इस आदर्श वाक्य को चुनने के लिए एनआईएफएम को बधाई दी।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था नए आयाम स्थापित कर रही है और आज निर्णय लेना किसी भी देश के भौगोलिक क्षेत्र के भीतर ही सीमित नहीं है। उन्होंने प्रशिक्षु लोकसेवकों से कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए, उनकी सोच में लचीलापन होना चाहिए और उन्हें नई तकनीकों व उपकरणों को अपनाना चाहिए, उन्हें सदैव अपने मन और बुद्धि का उपयोग करना चाहिए, एक-दूसरे की कार्बन प्रतियां होने के बजाय, उनकी हर गतिविधि में उनकी सरलता की छाप होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में वे सफल होंगे तो देश और समाज का निर्माण करने में अपना योगदान करने में सफल होंगे। राष्ट्रपति ने गांधीजी का हवाला देते हुए प्रशिक्षुओं से कहा कि वे ऐसा परिवर्तन लाएं, जो वे विश्व में देखने की इच्छा रखते हैं।