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Friday 20 May 2016 07:31:10 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने खान अब्दुल गफ्फार खान की 125वीं जयंती पर संस्कृति मंत्रालय की 'सीमांत गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन' नामक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान के वंशजों यानि उनकी प्रपौतियों यास्मिन खान, तनजीम खान और प्रपौत्र दानिश खान को इस अवसर पर शॉल भेंट करके सम्मानित किया। संस्कृति मंत्रालय 2015-16 में खान अब्दुल गफ्फार खान की 125वीं जयंती मना रहा है। स्मरणोत्सव के अधीन गतिविधियों के एक हिस्से के रूप में नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय नई दिल्ली ने इस प्रदर्शनी और कार्यक्रम का आयोजन किया है।
डॉ महेश शर्मा ने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान एक महान व्यक्ति थे, जो भारत की स्वतंत्रता और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए समर्पित थे, आज यह एक महान क्षण है कि उनके परिवार के सदस्य इस समारोह में मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान और गांधीजी एक दूसरे के पूरक थे और हम उनकी यादों को आने वाले दशकों के लिए जिंदा रखेंगे। उन्होंने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान की 125वीं जयंती उनके जीवन के बलिदान, प्रतिबद्धता और उपलब्धियों के विशेष अन्वेषण का आह्वान करती है, उनका जीवन और संदेश भारत और समस्त मानवता के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। उन्होंने बेहतरीन पठान चरित्र को अपनाया, जो उनके स्वतंत्रता, भगवान में निहित विश्वास, अदम्य साहस, निर्भीकता और निर्भयता के लिए उनके गहन जुनून से परिलक्षित होता है। डॉ महेश शर्मा ने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान एक कट्टर राष्ट्रवादी और मूलतः बहुलवादी व्यक्ति थे, उन्होंने कभी भी दो राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया और भारत के विभाजन का जोरदार विरोध किया था, उन्होंने एक राष्ट्र के रूप में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का समर्थन किया।
राज्यमंत्री डॉ महेश शर्मा ने कहा कि जब विभाजन की योजना के खिलाफ अनेक संवैधानिक फार्मूले असफल रहे और यह निर्णय लेने के लिए कि लोगों को कौन से देश में शामिल होना है, तब एक जनमत संग्रह कराने की सिफारिश की गई थी, इस निर्णय से खान अब्दुल गफ्फार खान दंग रह गए थे, उन्होंने कहा था कि महात्माजी आपने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है। डॉ महेश शर्मा ने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान बादशाह खान या सीमांत गांधी के नाम से लोकप्रिय थे और वास्तव में से सच्चे प्रतिष्ठित नेताओं में से एक थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक बड़े संघर्ष में जनता का नेतृत्व किया। राज्यमंत्री ने कहा कि वह बहुत धार्मिक व्यक्ति, प्रतिबद्ध समाज सुधारक, पश्तो भाषा के भावुक समर्थक, भारत की एकता में विश्वास करने वाले और इससे भी बढ़कर कट्टर गांधीवादी थे, उन्हें 1987 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया।
डॉ महेश शर्मा ने कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान एक सामाजिक धार्मिक सुधारक थे, इसलिए उन्होंने यह महसूस किया कि उचित शिक्षा के अभाव में पख्तून भटक जाते हैं, वे पख्तूनों की सभी जनजातियों को एकजुट करना, उन्हें शिक्षित करना और पख्तून समाज में सुधार करना चाहते थे और अंततः वे काफी हद तक अपने लक्ष्य में सफल भी रहे। एनएमएमएल के अध्यक्ष प्रोफेसर लोकेश चंद्र, भारत में अफगानिस्तान के राजदूत शैदा मोहम्मद अब्दाली, संस्कृति मंत्रालय के अपर सचिव केके मित्तल, संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव सोनिया सेठी और संस्कृति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी इस अवसर पर मौजूद थे।