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Thursday 9 June 2016 06:24:36 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने 'द एजुकेशन प्रेसीडेंट' नामक पुस्तक की पहली प्रति भेंट की। उपराष्ट्रपति ने औपचारिक रूप से इस पुस्तक का विमोचन किया। 'द एजुकेशन प्रेसीडेंट' पुस्तक ओपी जिंदल ग्लोबल विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाली संस्था उच्चशिक्षा अनुसंधान और क्षमता निर्माण ने प्रकाशित की है, इसमें भारत के 116 संस्थानों में विजिटर के रूप में उच्चशिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के योगदान पर प्रकाश डाला गया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस मौके पर कहा कि उच्च श्रेणी के देशों में भारत के शामिल होने की आकांक्षा और देश में उच्च शिक्षा की वास्तिवकता के विरोधाभास ने उन्हें देश की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा की ओर ध्यान दिलाने के लिए प्रेरित किया।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत के पास 757 विश्वविद्यालयों और 38000 महाविद्यालयों का बड़ा उच्च शिक्षा नेटवर्क है, हालांकि गुणवत्ता युक्त शिक्षा और इस क्षेत्र में श्रेष्ठता बड़ी चुनौती बनी हुई है, इस समस्या को व्यापक तौर पर सुलझाना होगा, हमें शिक्षा के क्षेत्र में अपने अतीत को ध्यान में रख कर आगे बढ़ना होगा। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वालाभी, सोमपुरा और ओदंतपुरी जैसे ईसा पूर्व छठी सदी से लेकर 12वीं सदी तक ये विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनियाभर में अग्रणी रहे हैं, दुनियाभर के विद्यार्थी और शिक्षक इन विश्वविद्यालयों में आते थे, लेकिन आज देश में अच्छे शिक्षा संस्थानों के अभाव में दो लाख छात्र देश से बाहर चले जाते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों काफी प्रतिभाशाली हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि 1930 में सीवी रमन के बाद किसी भारतीय विश्वविद्यालय के किसी व्यक्ति ने नोबल नहीं जीता है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत शोध के क्षेत्र में न्यूनतम ध्यान देता है, भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 0.6 प्रतिशत ही शोध पर खर्च होता है, जबकि चीन अपनी 10.38 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का 2.8 प्रतिशत इस पर खर्च करता है। उन्होंने कहा कि जापान अपनी जीडीपी का 3 और अमेरिका इसका 5 प्रतिशत इस पर खर्च करता है, हमें शोध और विकास पर और खर्च करना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि विकसित समाज विद्वानों और शिक्षकों को पहचान देता है और उन्हें सम्मानित करता है। उन्होंने कहा कि विचारों और अकादमिक संस्कृति को एक दूसरे को पल्लवित-पुष्पित करने का मौका देना चाहिए। यही वजह है कि वह वाइस चासंलरों और शैक्षिक संस्थानों के प्रमुखों को अपनी सरकारी यात्रा में विदेश ले गए थे।
राष्ट्रपति ने पिछले चार साल के दौरान उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रपति भवन की ओर से किए गए प्रयासों को पहचानने के लिए इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हायर एजुकेशन रिसर्च एंड कैपिसिटी बिल्डिंग ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी को धन्यवाद दिया। उन्होंने इस सूचनाप्रद और विश्लेषणात्मक किताब को प्रकाशित करने के लिए भी धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों, शिक्षकों और छात्रों से विचारों के आदान-प्रदान की वजह से वह ज्यादा समृद्ध हुए हैं और उनके नजरिये को विस्तार मिला है।