स्वतंत्र आवाज़
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कमजोरों पर हमले पथभ्रष्टता-राष्ट्रपति

देश में धर्म के नाम पर आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं

स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति का देश को संदेश

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 15 August 2016 02:49:51 AM

president pranab mukherjee

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम संदेश में कहा है कि देश में धर्म के नाम पर आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इससे पहले उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगांठ पर देश-विदेश में रह रहे सभी भारतीयों को हार्दिक बधाई दी और स्वतंत्रता संग्राम के उन सभी ज्ञात और अज्ञात शूरवीरों को श्रद्धापूर्वक नमन किया, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष किया, कष्ट उठाए और अपना जीवन न्योछावर कर दिया, जिसके फलस्वरूप 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि जब हमने स्वतंत्रता हासिल की थी, तब किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा, तथापि सात दशकों से सवा अरब भारतीय अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया है और हमारा लोकतंत्र न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे की मजबूती से आगे बढ़ा है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है, जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं, ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं, जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है, ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमरीका, नाइजीरिया, केन्या, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है, ये ताकतें अब संपूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा। उन्होंने कहा कि उन सभी चुनौतियों के लिए, जो हमारे सामने हैं, मेरा प्राचीन देश के रूप में हमारी जन्मजात और विरासत में मिली क्षमता में पूरा विश्वास है, जिसकी मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जिजीविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि अनेक बाहरी और आंतरिक शक्तियों ने सहस्राब्दियों से भारत की इस मूल भावना को दबाने का प्रयास किया है, परंतु हर बार यह अपने सम्मुख प्रत्येक चुनौती को समाप्त, आत्मसात और समाहित करके और अधिक शक्तिशाली और यशस्वी होकर उभरी है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पांचवीं बार स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने देश में पिछले चार वर्ष के दौरान संतोषजनक ढंग से एक दल से दूसरे दल को एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के साथ एक स्थिर और प्रगतिशील लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक विचार की अलग-अलग धाराओं के बावजूद उन्होंने सत्ताधारी दल और विपक्ष को देश के विकास, एकता, अखंडता और सुरक्षा के राष्ट्रीय कार्य को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हुए देखा है। उन्होंने कहा कि संसद के सत्र में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए संविधान संशोधन बिल का पारित होना हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने कहा कि हमने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को भी सिर उठाते हुए देखा है, हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज और शासनतंत्र की सामूहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत ने अपने विशिष्ट सभ्यतागत योगदान से अशांत विश्व को बार-बार शांति और सौहार्द का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि सन् 1970 में इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी ने समकालीन इतिहास में भारत की भूमिका के बारे में कहा था कि आज हम विश्व इतिहास के इस संक्रमणकारी युग में जी रहे हैं, परंतु यह पहले ही स्पष्ट होता जा रहा है कि इस पश्चिमी शुरुआत का यदि अंत मानव जाति के आत्मविनाश से नहीं हो रहा है तो समापन भारतीय होगा। टॉयनबी ने भी कहा था कि मानव इतिहास के मुकाम पर मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय भारतीय तरीका है। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम हमारे सैन्य बलों, अर्द्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को विशेष बधाई और धन्यवाद देते हैं, जो हमारी मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा इन्हें कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा‌ कि हमारी महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है, एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। उन्होंने कहा कि यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहलाए जा सकते। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक है, स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं से निरंतर पोषित करना चाहिए, समूहों और व्यक्तियों में विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान, रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है, परिचर्चा भंग होने से सार्वजनिक संवाद में त्रुटियां ही बढ़ती हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज़ है, बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस पर कहा था कि हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है, लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं। उन्होंने कहा कि एक प्रभावी लोकतंत्र में इसके सदस्यों को विधि और विधिकशक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति, कोई समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट किया गया है, जहां तक राष्ट्र के प्राधिकरणों और संस्थानों की बात है, इसने ‘मर्यादा’ की प्राचीन भारतीय परंपरा को स्थापित किया है, कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने में इस ‘मर्यादा’ का पालन करके संविधान की मूल भावना को कायम रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक अनूठी विशेषता जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है, वह एक दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रति सम्मान है, बहुलवाद का मूल तत्व भारत की विविधता को सहेजने और अनेकता को महत्व देने में निहित है, आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में एक देखभालपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय से विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि विभिन्न प्रकार के पंथों के बीच सहभावना आवश्यक है, यह देखना होगा कि वे साथ खड़े हों या एकसाथ गिरें, एक ऐसी सहभावना, जो परस्पर सम्मान न कि अपमान, सद्भावना की अल्प अभिव्यक्ति को बनाए रखने से पैदा हो। उन्होंने कहा कि यह सच है, जैसा कि 69 वर्ष पहले आज ही के दिन पंडित नेहरू ने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र के इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति प्राप्त होती है, परंतु यह अनुभव करना आवश्यक है कि ऐसे क्षण अनायास ही भाग्य की वजह से न आएं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए भाग्य को अपनी मुट्ठी में करना होगा, सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति से हमें एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना होगा, जो साठ करोड़ युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाए, एक डिजीटल भारत, एक स्टार्ट-अप भारत और एक कुशल भारत का निर्माण करे, हम सैकड़ों स्मार्ट शहरों, नगरों और गांवों वाले भारत का निर्माण कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे मानवीय, हाइटेक और खुशहाल स्थान बनें, जो प्रौद्योगिकी प्रेरित हों, परंतु साथ-साथ सहृदय समाज के रूप में भी निर्मित हों। उन्होंने कहा कि हमें अपनी विचारशीलता के वैज्ञानिक तरीके से मेल न खाने वाले सिद्धांतों पर प्रश्न करके एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए, हमें यथास्थिति को चुनौती देना और अक्षमता और अव्यवस्थित कार्य को अस्वीकार करना सीखना होगा। उन्होंने कहा कि एक स्पर्द्धात्मक वातावरण में, तात्कालिकता और कुछ अधीरता की भावना आवश्यक गुण होता है। उन्होंने कहा कि भारत तभी विकास करेगा, जब समूचा भारत विकास करेगा, पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिक उन्नति के इस दौर में व्यक्तियों का स्थान मशीनें ले रही हैं, इससे बचने का एकमात्र उपाय ज्ञान और कौशल अर्जित करना और नवान्वेषण सीखना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के समय में भारतीय विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है, हमने अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझीदारों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुन: सशक्त किया है, हम सभी देशों, विशेषकर अपने निकटतम विस्तारित पड़ोस के साथ साझा मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं, हम अपनी ‘पड़ोस प्रथम नीति’ से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान करते हैं, इस अवसर को बिना देरी किए हासिल करना होगा। उन्होंने कहा कि विदेश नीति पर भारत का ध्यान शांत सह अस्तित्व और इसके आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित होगा। उन्होंने कहा कि हाल में की गई पहलों ने ऊर्जा सुरक्षा में संवर्धन किया है, खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया है और हमारे प्रमुख विकास कार्यक्रमों को आगे ले जाने में अंतरराष्ट्रीय साझीदारी का सर्जन किया है।

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