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Saturday 09 February 2013 06:36:38 AM
लखनऊ। समाजवादी पार्टी, समाजवाद के नाम पर डॉ लोहिया के सिद्धांतों को तिलांजलि देकर पारिवारिक एकाधिकार की ओर बढ़ रही है। समाजवादी पार्टी अब लोहियावादी न होकर सिर्फ ‘मुलायमवादी पार्टी’ बनकर रह गई है। इसका उदाहरण यह है कि जहां डॉ लोहिया लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण पर जोर देते थे, वहीं समाजवादी पार्टी सारे अधिकार एक छत में केंद्रित करके लोकतंत्र का मखौल उड़ा रही है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने एक बयान में कहा कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता जिन्हें, सरकार की कमियों को ढूंढकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए था, उन्होंने ही वाराणसी और आजमगढ़ में सरकार की कमियों को उजागर करने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी दागी करार देने में भी गुरेज नहीं किया है।
मीडिया पर सपा के राष्ट्रीय महासचिव की टिप्पणी न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि अलोकतांत्रिक भी है। उन्होंने कहा कि विरोध को बर्दाश्त करना लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, परंतु ऐसा लगता है कि इस मामले में समाजवादी पार्टी के नेता बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को भी मात देने की कोशिश कर रहे हैं।