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Saturday 27 August 2016 12:48:53 AM
नई दिल्ली। अमेरिका के पेनिसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया अध्ययन विभाग के प्रोफेसर डॉ ग्रेगरी यंग गुंडलिन ने हिंदू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के कार्यक्रम में 'मुक्तिबोध का वैश्विक दृष्टिकोण : संदर्भ और महत्व' विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की पेचीदा भाषा में हम अपनी दुनिया को समझ सकते हैं, वे इसी पेचीदा भाषा में आधुनिकता को देख रहे हैं, फासीवाद को देख रहे हैं और आगे की दुनिया दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध का संदर्भ स्वातंत्र्योत्तर है, भूमंडलीकरण हमारी स्वतंत्रता और संस्कृति पर खतरनाक असर डालेगा, यह बात मुक्तिबोध ने भांप ली थी और क्लाड इथरली जैसी कहानियों में इसका संकेत भी मिलता है।
डॉ ग्रेगरी यंग गुंडलिन ने कहा कि भले ही उनकी कुछ रचनाएं अपूर्ण लगती हों, लेकिन संभवत: यही उन रचनाओं की पूर्णता हो कि उनमें शीत युद्ध और अमेरीकी नीतियों की आलोचना मिलती है। उन्होंने सवाल उठाया कि इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि मुक्तिबोध ने लंबी कविताएं क्यों लिखीं? वे मार्क्सवादी जार्गन से बचना क्यों चाहते थे? उन्होंने कहा कि शायद वे यथार्थवाद में अपने अनुभव लाना चाहते थे। डॉ ग्रेगरी यंग गुंडलिन ने युवा शोधार्थियों और विद्यार्थियों के सवालों के उत्तर भी दिए। हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ रामेश्वर राय ने उनका स्वागत किया। महाविद्यालय के पूर्व छात्र और सत्यवती कालेज में आचार्य डॉ प्रवीण कुमार ने डॉ ग्रेगरी यंग गुंडलिन का परिचय दिया। तृतीय वर्ष के छात्र अनुपम त्रिपाठी ने मुक्तिबोध की कविताओं का पाठ किया। हिंदी विभाग की तरफ से डॉ विजया सती ने डॉ ग्रेगरी यंग गुंडलिन को हिंदी की पत्रिकाएं भेंटकर अभिनंदन किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ पल्लव ने आभार प्रदर्शित किया। गोष्ठी का संचालन तृतीय वर्ष के छात्र चंचल सचान ने किया।