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Sunday 28 August 2016 06:40:33 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया' व्याख्यानमाला के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा है कि तीव्र तरक्की के लिए भारत में कायापलट की जरूरत है, अब क्रमिक विकास से काम नहीं चलेगा, इसलिए भारत बड़े बदलावों के लिए तैयार रहे। उन्होंने कहा कि एक समय था, जब विकास को पूंजी और श्रम की मात्रा पर निर्भर माना जाता था, आज हम जानते हैं कि यह संस्थाओं और विचारों की गुणवत्ता पर अधिक निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की शुरूआत में भारत के रूपांतरण के लिए एक नई संस्था अर्थात राष्ट्रीय संस्थान या नीति को बनाया गया था, नीति का निर्माण भारत के रूपांतरण में मार्गदर्शन देने के लिए साक्ष्य आधारित थिंक टैंक के रूप में किया गया था। उनका संकेत था कि नीति आयोग देश को तरक्की के महान युग में ले जाने पर तेजी से काम कर रहा है और जल्द ही इसकी कार्ययोजना सामने आएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नीति के मुख्य कार्यों में से कुछ कार्य हैं-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ सहयोग के माध्यम से सरकार की विकास नीतियों की मुख्यधारा में बाहरी विचारों को शामिल करना। बाहर की दुनिया, बाहर के विशेषज्ञों और पेशेवरों और सरकार के बीच सेतु बनना, एक ऐसा साधन बनना, जिसके माध्यम से बाहर के विचारों को नीति निर्माण में सम्मिलित किया जा सके। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक लंबी प्रशासनिक परंपरा रही है, यह परंपरा भारत के अतीत को स्वदेशी और बाहरी विचारों से जोड़ती है, इस प्रशासनिक परंपरा ने भारत की कई मायनों में अच्छी तरह से सेवा की है, इस प्रशासनिक परंपरा ने शानदार विविधता के इस देश में लोकतंत्र और संघवाद, एकता और अखंडता को संरक्षित रखा है, ये छोटी उपलब्धियां नहीं हैं, फिर भी हम अब एक ऐसे युग में रह रहे हैं, जहां परिवर्तन सतत है और हम घटक हैं। उन्होंने कहा कि आंतरिक और बाह्य दोनों कारणों के लिए कारणों से बदलना ही होगा।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रत्येक देश के पास उसके स्वयं के अनुभव, संसाधन और अपनी ताकत होती है, तीस साल पहले, एक देश अपने अंदर की ओर देखने के लिए और अपने स्वयं के समाधान खोजने के लिए सक्षम हो सकता था, आज सभी देश एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि अब कोई भी देश अलग-थलग होकर अपना विकास नहीं कर सकता है, हर देश अपने क्रियाकलापों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना होता है या पीछे रह जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आतंरिक कारणों के लिए भी बदलाव आवश्यक है, हमारे देश में युवा पीढ़ी पूरी तरह से अलग सोच और महत्वकाक्षांए रख रही है कि सरकार अब लंबे समय तक अतीत के आधार पर नहीं चल सकती, यहां तक कि परिवारों में भी युवाओं और वृद्धों के बीच रिश्ता बदल गया है, एक समय था जब परिवार के बड़े लोग छोटे लोगों से अधिक जानकारी रखते थे, आज परिवार के छोटे लोग बड़ों से नई और ज्यादा जानकारियां रखते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज नई तकनीक के प्रसार के साथ स्थिति उलट हो गई है, यह स्थिति सरकार के लिए संवाद स्थापित करने और बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करने में सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि यदि भारत को परिवर्तन की चुनौती का सामना करना है तो इसके लिए क्रमिक विकास पर्याप्त नहीं है, बल्कि एक कायापलट की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए तीव्र रूपांतरण विकास की जरूरत है न कि क्रमिक विकास की। भारत का रूपांतरण शासन प्रणाली में परिवर्तन के बिना नहीं हो सकता है। शासन प्रणाली का रूपांतरण मानसिकता में परिवर्तन के बिना नहीं हो सकता है। मानसिकता में परिवर्तन परिवर्तनकारी विचारों के बिना संभव नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमें कानूनों को बदलना, अनावश्यक प्रक्रियाओं को समाप्त करना, प्रक्रियाओं में तेजी लाना और प्रौद्योगिकी को अपनाना है, हम उन्नीसवीं सदी की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ इक्कीसवीं सदी में नहीं चल सकते।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रशासनिक मानसिकता में मौलिक परिवर्तन आमतौर पर अचानक झटके या संकट के माध्यम से होते हैं। उन्होंने कहा कि भारत को एक स्थिर लोकतांत्रिक राजव्यवस्था होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इस तरह के झटकों के अभाव में हमें रूपांतरकारी बदलाव करने के लिए अपने आप को मजबूत करने के लिए विशेष प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों के रूप में हम किताबों या लेखों को पढ़कर नए विचारों को ग्रहण कर सकते हैं, पुस्तकें हमारे मस्तिष्क की खिड़कियां खोल सकती हैं, किंतु जब तक हम सामूहिक मंथन नहीं करते, विचार कुछ व्यक्तियों के मस्तिष्क तक ही सीमित रहते हैं। उन्होंने कहा कि हम अक्सर नए विचारों के बारे में सुनते हैं और उन्हें समझते हैं, लेकिन हम उन पर कार्य नहीं करतें हैं, क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत क्षमता से परे हैं, अगर हम एक साथ बैठते हैं तो हमारे पास विचारों को कार्यों में परिवर्तित करने का सामूहिक बल होगा। उन्होंने कहा कि नए वैश्विक परिदृश्य में जाने के लिए हमें सामूहिक तौर पर हमारे दिमागों को खोलने की जरूरत है, ऐसा करने के लिए हमें नए विचारों को सामूहिक रूप से अवशोषित करना है न कि व्यक्तिगत तौर पर इसके लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने बैंकरों, पुलिस अधिकारियों, सरकार के सचिवों और अन्य लोगों के साथ व्यक्तिगत तौर पर सुसंरचित विचार-विमर्श कार्यक्रमों में भागीदारी की है, इन सत्रों से आने वाले विचारों को सरकारी नीतियों में शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये प्रयास अंदर से विचारों का दोहन करने के लिए किए गए हैं, अगला कदम बाहर से विचारों को अंदर लाने के लिए है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक तौर पर भारतीय लोग हमेशा कहीं से भी विचारों को स्वीकार करने में सक्षम रहे हैं, ऋग्वेद में कहा गया है कि आ नो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वतः, जिसका अर्थ है सभी दिशाओं से आ रहे महान विचारों का स्वागत है, यही भारत रूपांतरण व्याख्यानमाला का उद्देश्य है, यह एक ऐसी व्याख्यानमाला है, जिसमें हम व्यक्तिगत तौर पर नहीं, बल्कि एक टीम के हिस्से की तरह भाग ले रहे हैं, जो सामूहिक तौर पर परिवर्तन को संभव बना सकता है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सर्वश्रेष्ठ बुद्धि और ज्ञान से सीखेंगे, जिन्होंने अपने देश को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान बनाने के लिए अनेक लोगों का जीवन परिवर्तन किया होगा या अनेक लोगों को जीवन परिवर्तन के लिए प्रभावित किया।
व्याख्यानमाला में सभी को एक प्रतिक्रिया फॉर्म दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए मैं सभी से विस्तृत और खुली प्रतिक्रिया की उम्मीद करता हूं, मैं भारत के अंदर और भारत के बाहर से विशेषज्ञों और पैनल के नामों पर सुझाव देने का आपसे अनुरोध करता हूं, सरकार के सभी सचिवों से भी उनके मंत्रालयों से प्रतिभागियों के साथ एक सप्ताह के समय में आगे एक अनुवर्ती चर्चा के संचालन का अनुरोध करता हूं। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य इस सत्र में सभी संबंधित समूहों से उभर कर आए विचारों को विशिष्ट कार्ययोजना में परिवर्तित करना है, जहां भी संभव हो, मैं मंत्रियों से भी इन सत्रों में भाग लेने का अनुरोध करता हूं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे समय के सबसे बड़े सुधारकों और प्रशासकों में ली कुआन यू थे, जिन्होंने सिंगापुर को आज के सिंगापुर में बदल डाला था, इसलिए यह संयोग ही है कि हम सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री थर्मन शनमुगरत्नम के साथ इस व्याख्यानमाला का उद्घाटन कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने थर्मन शनमुगरत्नम का परिचय देते हुए कहा कि वह एक सफल विद्वान और सार्वजनिक नीति निर्माता हैं, उप प्रधानमंत्री होने के अलावा वह आर्थिक और सामाजिक नीतियों के लिए समन्वय मंत्री, वित्तमंत्री और सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकरण के अध्यक्ष भी हैं, इन्होंने इससे पहले श्रमशक्तिमंत्री, द्वितीयवित्त मंत्री और शिक्षामंत्री के रूप में भी कार्य किया है। थर्मन शनमुगरत्नम का जन्म 1957 में हुआ था और वह तमिल मूल के श्रीलंकाई हैं। इन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में एक और मास्टर डिग्री प्राप्त की है। हार्वर्ड में इन्हें इनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि थर्मन शनमुगरत्नम दुनिया के अग्रणी बुद्धिजीवियों में से एक हैं, उनके विचारों की व्याप्ति और प्रभाव क्षेत्र का दायरा बहुत बड़ा है। थर्मन शनमुगरत्नम को प्राप्त उपलब्धियों और सम्मान की सूची काफ़ी लंबी है। थर्मन शनमुगरत्नम ने इस अवसर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत विषय पर अपने विचारों को साझा किया।